रांची (ब्यूरो) । पैसे की बर्बादी किसी एक विभाग की कहानी नहीं, बल्कि राजधानी रांची में दर्जनों ऑफिस, स्टोर ऐसे हैं, जहां पब्लिक प्रॉपर्टी या तो बर्बाद हो रही है या फिर यूजलेस हो गई है। डीजे आईनेक्स्ट के अभियान में हम लगातार आपको ऐसे ऑफिस और कैंपस की स्थिति से अवगत करा रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग में जिस प्रकार करोड़ो रुपए के व्हीकल सड़ रहे हैं, ऐसी ही कहानी पेयजल विभाग की भी है। यह विभाग एक कदम और आगे है। यहां सिर्फ गाडिय़ों को ही नहीं सड़ाया गया बल्कि पानी के लिए जरूरी एसेट्स भी कबाड़ कर दिए गए।
सड़ रहे गोदाम में
सिटी में एक ओर जहां मामूली खराबी के कारण सैकड़ों चापानल बेकार पड़े हैं। वहीं दूसरी ओर इन चापानलों की मरम्मत में यूज होने वाले उपकरण को भी सरकारी उदासीनता के कारण कबाड़ बना दिया गया है। जिन सामान से डैमेज चापाकलों की रिपेयरिंग की जाती, वह अब किसी काम के नहीं रहे। नगर निगम के बगल स्थित लकड़ी गोदाम में रखे लगभग 35 लाख के सामान या तो कंडम हो चुके हैं या फिर कंडम होने के कगार पर हैैं। इस गोदाम में रखे नए चापाकल के सामान से लेकर रिपेयरिंग पाट्र्स का कभी यूज ही नहीं किया गया। 15 साल से भी अधिक समय से ये सामान गोदाम में सड़ रहे हैं। बारिश का मौसम हो या गर्मी, हर मौसम में सामान ऐसे ही पड़े रहते हैं। आधे से अधिक सामान में तो अब जंग भी लग चुके हैैं। ये अब किसी काम के भी नहीं रहे।
ऑक्शन की प्लानिंग बेकार
गोदाम में रखे गए सभी सामान की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि यह किसी काम में नहीं आ सकते। इसे हटाने के लिए नीलाम करने की प्लानिंग कई बार तैयार की गई, लेकिन हर बार पंचवर्षीय योजना की तरह यह प्लानिंग भी लटका रह गई। नगर निगम की लिस्ट के अनुसार सिटी मेेंं 3800 चापाकल हैं, जिसमें 1600 चापाकल या तो डेड हो चुके हैं या फिर खराब पड़े हैं। इनमे कई ऐसे भी जो मामूली खराबी के कारण बेकार पड़े हैं। शहर में चापाकल खराब होने की शिकायत तो की जाती है लेकिन विरले ही इसकी रिपेयरिंग हो पाती है। यह दुर्भाग्य की ही बात है कि सारे साधन मौजूद होते हुए भी इसका सही इस्तेमाल नहीं किया जा रहा।
बदल गए मॉडल
स्टोर इंचार्ज युवराज ने बताया कि पांच साल पहले चापाकल के लिए इंडिया 3 मार्क का सामान लगाया जाता था। लेकिन अब यह पूरी तरह से बंद हो चुका है। वहीं पाइप भी पहले सीआई यूज किया जाता था, लेकिन अब वो भी डीआई ही यूज किया जाने लगा है। गोदाम में सभी पुराने समय के इक्विपमेंट पड़े हुए हैं, जिस कारण ये अब पूरी तरह से यूजलेस हो चुके हैं। धीरे-धीरे यह कबाड़ में तब्दील होते जा रहे हैं। जानकारी के मुताबिक इन स्क्रैप की कीमत करीब 35 लाख हैं। नए में इनकी कीमत इससे डबल रही होगी। रिपेयरिंग सामान के अलावा पानी टंकी, पाइप, कल-पुर्जे और नट-बोल्ट जैसे छोटे-छोटे सामान भी कंडम हो रहे हैं।

सड़क किनारे पाइप ले जा रहे चोर
राजधानी रांची के कई इलाकों में पाइपलाइन बिछाने का काम चल रहा है। लेकिन काम की रफ्तार काफी सुस्त है। बीत दस सालों में अबतक सिर्फ 46 किमी ही राइजिंग पाइपलाइन बिछ सकी है। जबकि 127 किमी पाइपलाइन बिछाने की योजना थी। सिटी में सड़क किनारे ऐसे ही बड़े पाइप पड़े हुए हैं। अब तो आलम यह है कि कई जगह से पाइप चोरी भी होने लगे हंै। कुछ महीने पहले ही हवाई नगर से चोर करीब 25 लाख रुपए के 35 पाइप की चोरी हो गई थी। हालांकि पुलिस ने चोरों को रास्ते में दबोच लिया था। लेकिन ऐसे भी कई केस हैं जिसमे न तो चोर धराया और न ही चोरी हुआ पाइप वापस आया। पब्लिक के टैक्स से खरीदे गए संसाधनों का न तो समय पर और न ही सही से इस्तेमाल किया जा रहा है। बार-बार सड़क खोदने की परेशानी अलग। समय-समय पर सड़क की खुदाई कर पाइप बिछाने का काम किया जाता है। जिससे पूरा शहर अस्त-व्यस्त हो जाता है।
क्या कहते हैैं लोग
टैक्स के रूप में सरकार पैसा लेती है। लेकिन फैसिलिटीज के नाम पर कुछ नहीं दिया जाता है। हर विभाग में लाखों-करोड़ों के एसे्स बर्बाद हो रहे हैैं।
- मधुकर आनंद


डिफरेंट्स लोकेशन पर पब्लिक प्रॉपर्टी को बर्बाद किया जा रहा है। कई थानों में भी जब्त गाडिय़ां कबाड़ हो रही हैैं। इसका सही इस्तेमाल किया जा सकता है।
- सुधीर कुमार


सामान खराब होने की जानकारी नहीं है। गर्मी के मौसम कंप्लेन होने पर मरम्मत कराई जाती है।
- मिथिलेश पांडे
एग्जिक्यूटिव इंजीनियर