---अब एनजीओ नहीं सरकार चलाएगी क्रेच व डे केयर

कैबिनेट का फैसला

---743 क्रेच और डे केयर हैं राज्य में

---59 करोड़ रुपए की दी गई स्वीकृति

---06 माह से छह साल के बच्चे रहेंगे क्रेच में

रांची : अगर हसबैंड-वाइफ दोनों वर्किग हैं तो उनके बच्चे अब राज्य सरकार संभालेगी। झारखंड में संचालित 743 पालना घरों (क्रेच) सह डे केयर होम का संचालन अब राज्य सरकार स्वयं करेगी। इससे पूर्व यह कार्य समाज कल्याण बोर्ड के निर्देशन में गैर सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) की मदद से होता था। सरकार इनका टेकओवर करेगी। कैबिनेट ने मंगलवार को महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग के इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। साथ ही क्रेच एवं डे केयर की सुविधा के 59.25 करोड़ की योजना तथा चालू वित्तीय वर्ष के लिए 6.40 करोड़ रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति दी है।

पोषण का विशेष ख्याल

अपर मुख्य सचिव एसकेजी रहाटे (प्रभारी कैबिनेट सचिव) के अनुसार क्रेच के माध्यम से कामकाजी माताओं के छह माह से छह साल तक के बच्चों की दिन की कार्यावधि में समुचित देखभाल, पोषण, भावनात्मक एवं सामान्य समझ के विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार ने यह फैसला लिया है। सरकार का मानना है कि नियोजन के अवसर में वृद्धि, औद्योगिकरण, शहरी विकास, एकल परिवार में वृद्धि क्रेच को आवश्यक बना दिया है। रोजी रोटी की जुगाड़ में कामकाजी माता-पिता बच्चों को घर में अकेले छोड़ देते थे, जिसका प्रभाव बच्चों की शारीरिक और मानसिक स्थिति पर पड़ती थी। कई बार बच्चे यौनाचार के शिकार भी हो जाते थे।

दया याचिका खारिज

कैबिनेट ने इसी तरह आजीवन कारावास सजा प्राप्त गढ़वा के बंदी पप्पू तिवारी की दया याचिका खारिज कर दी है। पप्पू तिवारी ने अन्य पांच लोगों के साथ मिलकर विकास कुमार सिंह की गोली मारकर तथा पूरे शरीर को चाकू से गोदकर हत्या कर दी थी। पप्पू के पिता ने इस मामले में गृह विभाग, झारखंड को प्रधानमंत्री को संबोधित पत्र भेजकर दया याचना की थी। गृह ने यह मामला राज्यपाल को भेजा था, जहां से विधि विभाग होते हुए यह मामला कैबिनेट पहुंचा था। कैबिनेट ने इसे जघन्य अपराध मानते हुए दया याचिका को अस्वीकृत कर दिया।

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दिव्यांग नहीं बन सकेंगे निरीक्षक उत्पाद या उत्पाद सिपाही

कैबिनेट ने इसी तरह निरीक्षक उत्पाद, सहायक अवर निरीक्षक एवं उत्पाद सिपाही के पदों की नियुक्तियों को दिव्यांग व्यक्ति(समान अधिकार, सुरक्षा एवं पूर्ण भागीदारी) अधिनियम 1956 के प्रभाव से मुक्तकरने का फैसला लिया है। इस फैसले के बाद अब दिव्यांगजनों की बहाली उपरोक्त पदों पर नहीं हो सकेगी। कैबिनेट ने इसी तरह उत्तर कोयल परियोजना के अंतर्गत सिंचाई क्षेत्र के जल प्रबंधन तथा कमांड एरिया डवलपमेंट का डीपीआर तैयार करने की जवाबदेही मनोनयन के आधार पर वैपकॉस लिमिटेड, नई दिल्ली को सौंपी है। इस एवज में वैपकॉस में 1.77 करोड़ रुपये दिए जाएंगे।

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कैबिनेट के अन्य फैसले

- योजना सह वित्त विभाग के प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट (पीएमयू) के लिए प्रोग्रामर के 14, सहायक प्रोग्रामर के 19 तथा डाटा इंट्री आपरेटर के चार पदों के सृजन की स्वीकृति।

-झारखंड वरीय न्यायिक सेवा के सेलेक्शन ग्रेड तथा सुपर टाइम स्केल में पदों के विभाजन की मंजूरी। संबंधित पदों पर क्रमश: 25 और 10 फीसद बहाली विभागीय प्रोन्नति के आधार पर होगी।

-उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में अनुबंध पर नियुक्त 2500 सहायक पुलिसकर्मियों के वेतन तथा वर्दी मद में 20 करोड़ मंजूर।

-औद्योगिक विवाद अधिनियम में संशोधन। अब संबंधित मामले तीन साल की जगह तीन महीने में दायर होंगे। विवादों के त्वरित निष्पादन के उद्देश्य से हुआ संशोधन।

-झारखंड उच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में रविश्वर बसाक को कोषागार लिपिक के पद पर समायोजन की मंजूरी। बसाक जिला कोषागार, गिरिडीह में प्रतिनियुक्तथे।

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