RANCHI: एक ऐसा खास शादी समारोह, जहां अलग-अलग संस्कृति के रंग देखने को मिले। एक ओर पंडित हवन करा रहे थे तो दूसरी ओर से इसाई धर्म गुरु जोड़ों के लिए बाइबल का पाठ कर रहे थे। एक हिस्से में सरना माता और धरम-करम की कहानी के साथ जीवन जीने की कसमें खिलाई जा रहीं र्थी, तो म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट पर विभिन्न धर्म के मिश्रित ध्वनि परिसर में सम्यक गूंज रहे थे। मौका था सामाजिक संस्था निमित्त व लायंस क्लब की ओर से रविवार को मोरहाबादी के सीएसओआई क्लब में लिव इन में रह रहे जोड़ों के सामूहिक विवाह का। समारोह में लिव इन में रह रहे विभिन्न धर्म के 137 जोड़ों ने सात फेरा लेकर रिश्ते को अपना नाम दिया।

अनूठी शादी

इस अनूठी शादी में वर-वधू के परिजन के साथ बड़ी संख्या में उनके सगे-संबंधी भी आये थे। इसमें कई ऐसे भी जोड़े थे जो वर्षो से साथ रह रहे थे। बच्चे की उम्र भी शादी की हो गई लेकिन अपने रिश्ते को अब तक नाम न दे सके। कारण यह कि शादी के बाद सगे-संबंधियों व पड़ोसियों को भोज देना होता है और इस जोड़े के पास पैसे नहीं थे। सामाजिक मान्यता नहीं मिलने के कारण ये जोड़े अपने गांव में हिकारत की जिंदगी जी रहे थे। निमित्त संस्था ने लिव इन में रह रहे ऐसे जोड़ों को ढूंढ कर इनकी शादी कराई। इसमें ¨हदू धर्म के 72, सरना समाज के 53 व ईसाई समाज के 10 जोड़े शामिल थे। शादी अपने-अपने रीति-रिवाज के अनुरूप हुई। शादी के बाद नव दंपत्ति को शुभकामना के साथ गिफ्ट भी दिए गए। सामूहिक भोज का भी आयोजन किया गया।

30 साल के रिश्ते को मिला नाम तो खिल उठे चेहरे

कांके प्रखंड के सांगा निवासी सुदेश्वर गोप(55) व परमी (50) पिछले तीस सालों से साथ रह रहे थे। इस दौरान चार बच्चों का जन्म हो गया लेकिन शादी नहीं कर पाये। सुदेश्वर ईंट भट्ठा पर काम करते हैं। बताया कि परंपरा है कि शादी के बाद सगे-संबंधियों व पड़ोसियों को भोज देना है तभी शादी की मान्यता मिलेगी। न कभी भोज के पैसे हुए न शादी कर पाए। यही नहीं सुदेश्वर की बेटी भी छह साल से लिव इन में रह रही थी। एक ही मंडप में सुदेश्वर-परमी और उसकी बेटी कलावती-प्रताप की शादी हुई। इस शादी का गवाह बना कलावती का ढाई साल का नन्हा बेटा गोपाल। शादी संपन्न होने के बाद दोनों दंपत्ति ने एक दूसरे को बधाई दी।