रांची: झारखंड हाई कोर्ट की जस्टिस अनुभा रावत चौधरी की अदालत ने एक मामले में सुनवाई करते हुए माना कि किसी ऋण को चुकाने के लिए दावे का उल्लंघन करना आइपीसी की धारा 420 के तहत सजा का आधार नहीं हो सकता है। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि दोनों पक्षों को सुनने से प्रतीत होता है कि प्रार्थी और शिकायतकर्ता के बीच का विवाद दीवानी विवाद के दायरे में आता है और इस बात कोई सबूत नहीं है कि प्रार्थी का इरादा ऋण के लेनदेन के समय से ही शिकायतकर्ता को धोखा देने का था। इसलिए प्रार्थी को धोखाधड़ी की धारा 420 के अनुसार मिली सजा को निरस्त किया जाता है। इसके बाद अदालत ने प्रार्थी सलुका देवगम को बरी करने का आदेश दिया है।

पहले हुई थी सजा

दरअसल, प्रार्थी सलुका देवगम को चाईबासा की निचली अदालत ने वर्ष 2013 में धोखाधड़ी के मामले में दोषी करार देते हुए दो साल के कठोर कारावास और 500 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है। प्रार्थी के अधिवक्ता अदालत को बताया कि इस मामले में प्रार्थी की ऋण लेने के समय से कोई गलत इरादा नहीं था। इसके अलावा यह पूरा विवाद सिविल प्रकृति का है। निचली अदालतों ने इस पर ठीक से विचार नहीं किया है। इसलिए प्रार्थी को इसका लाभ मिलना चाहिए। सलुका देवगम ने शिकायतकर्ता से वर्ष 2010 में नकदी, मोबाइल फोन और सोने की अंगूठी वापस करने के वादे के साथ लिया था। लेकिन उसने न तो मोबाइल फोन और न ही कर्ज की राशि लौटाई। इसके लिए दोनों के बीच दो हजार रुपये की मासिक किश्तों पर राशि वापस करने की सहमति भी बनी थी। लेकिन बाद में प्रार्थी ने अपना वादा पूरा नहीं किया। आरोप है कि प्रार्थी ने शिकायतकर्ता के साथ मारपीट की और जान से मारने की धमकी दी थी।