रांची (ब्यूरो)। जस्टिस स्व एलपीएन शाहदेव की 11वीं पुण्यतिथि मंगलवार को मनाई जाएगी। 10 जनवरी के दिन ही न्यायमूर्ति शाहदेव ने अंतिम सांस ली थी। न्यायमूर्ति शाहदेव न सिर्फ झारखंड क्षेत्र से पहले मूलवासी न्यायाधीश थे, बल्कि झारखंड आंदोलन को उन्होंने अपनी बौद्धिक ऊर्जा से भी सोचा था तो न्यायमूर्ति शाहदेव को लोग झारखंड आंदोलन के अंतिम एवं निर्णायक लड़ाई के नायक (1998-99 ) के तौर पर भी याद करते हैं, लेकिन उन्होंने झारखंड आंदोलन को संवैधानिक भूल-भुलैया में फंसने नहीं दिया था।

झारखंड की मांग

1992 में हाईकोर्ट की रांची पीठ से सेवानिवृत्त होने के बाद से न्यायमूर्ति शाहदेव ने सार्वजनिक मंचों एवं अपने लेखों के जरिए झारखंड की मांग बुलंद की थी। सर्वप्रथम केंद्र सरकार ने राज्य गठन हेतु 2/3 बहुमत की बात कही थी। इस दौरान न्यायमूर्ति शाहदेव ने स्पष्ट किया था कि आर्टिकल-3 के तहत रा'य गठन के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत नहीं, बल्कि साधारण बहुमत से अलग राज्य का गठन हो जाएगा। न्यायमूर्ति शाहदेव ने झारखंड आंदोलन में सदान व आदिवासियों को एक मंच पर लाकर संघर्ष कराने में बड़ी भूमिका निभाई। झारखंड में बसे लोगों के हितों के प्रति भ्रांतियां दूर हुई थी।

गिरफ्तार होने वाले पहले जज

झारखंड आंदोलन के इतिहास में 21 सितंबर और जस्टिस एलपीएन शाहदेव दोनों का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। 1998 में 21 सितंबर के दिन ही लोगों ने ऐतिहासिक बंदी कर झारखंड अलग राज्य की मांग को बल दिया था। इस आंदोलन का नेतृत्व रिटायर जस्टिस एलपीएन शाहदेव कर रहे थे। वे पहले जज थे, जिन्होंने किसी जनआंदोलन मैं अपनी गिरफ्तारी दी थी। जस्टिस शाहदेव ने पहले माटी फिर पार्टी का नारा दिया और उसी के आधार पर उन्होंने प्रदेश के 16 राजनीतिक दलों को एक मंच पर लाकर झारखंड आन्दोलन को गति दी, जिसका प्रतिफल झारखंड राज्य के गठन के रूप में हुआ ।

आज दी जाएगी श्रद्धांजलि

न्यायमूर्ति एलपीएन शाहदेव फाउंडेशन के निदेशक व भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने बताया कि जस्टिस एलपीएन शाहदेव हमारे बीच नहीं रहे, मगर उनकी सोच व विचारधारा हमेशा जीवित रहेगी। इस बार भी कांके रोड स्थित एलपीएन शाहदेव चौक पर दोपहर 12 बजे उन्हें श्रद्धांजति दी जाएगी। वहीं, मुख्यमंत्री आवास के पास स्थित जस्टिस एलपीएन शाहदेव चौक पर प्रतीकात्मक रूप से श्रद्धांजलि दी जाएगी।