-नेचुरल कॉल आने पर चौक-चौराहों पर लोगों को झेलनी पड़ रही शर्मिदगी

-स्वच्छता सर्वे की रिपोर्ट आने के बाद कहीं और न बिगड़ जाए शहर की सूरत

-सर्वे के समय सभी टॉयलेट के खोल दिए गए थे ताले

RANCHI (6 May): स्वच्छता सर्वे में रांची की स्थिति(ख्0क्7 में रैंकिंग क्क्7, ख्0क्ब् में रैंकिंग ख्ख्फ्) पिछली बार की अपेक्षा भले ही सुधरी हो, लेकिन सच्चाई यही है कि राजधानी के मॉड्यूलर टॉयलेट्स में ताले लटक रहे हैं। नतीजन, नेचुरल कॉल आने पर लोगों को शर्मिदगी झेलनी पड़ रही है। जबकि स्वच्छता सर्वे के दौरान टीम को दिखाने के लिए मॉड्यूलर टॉयलेट्स आम लोगों के लिए खोल दिए गए थे। ऐसे में आशंका है कि सर्वे रिपोर्ट आने के बाद शहर की सूरत कहीं और न बिगड़ जाए।

नंबर के लिए आरएमसी ने क्या नहीं किया

नंबर पाने के लिए रांची नगर निगम ने क्या-क्या नहीं किया। सेंट्रल से इंस्पेक्शन के लिए आई टीम को दिखाने के लिए दिन-रात सफाई कराई, तो माड्यूलर टॉयलेट भी आम लोगों के लिए खोल दिए। जगह-जगह डस्टबीन भी लगाए गए, ताकि सर्वे के लिए आई टीम को कहीं भी गंदगी न दिखाई दे। कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक भी रहा। पर टीम के जाने के तीन महीने बाद तक टॉयलेट्स में ताले लटक रहे हैं। वहीं जगह-जगह गंदगी का अंबार भी लग गया। इधर, सर्वे में तो हमारी रांची क्00 की लिस्ट से भी बाहर हो गई है। इसके बाद तो यही लग रहा है कि कहीं सिटी की सूरत और न बिगड़ जाए।

तीन महीने बाद भी नहीं खुले ताले

सर्वे टीम के जाने के तीन महीने बाद भी अधिकतर टॉयलेट में ताले लटक रहे है। वहीं कुछ टॉयलेट्स में पुलिस ने भी कब्जा जमा रखा है। ये लोग अपनी मर्जी से ताला खोलकर टॉयलेट का यूज करते हैं और फिर उसमें ताला लगा देते हैं। ऐसे में लोगों के सामने खुले में यूरीन करने के अलावा और कोई चारा ही नहीं है। मॉड्यूलर टॉयलेट्स के नाम पर सिर्फ पैसे की बर्बादी हुई।

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यह केवल जनता के पैसों की बर्बादी है। लाखों रुपए इसे बनाने में खर्च तो कर दिए गए लेकिन जब इसका फायदा जनता को नहीं मिलेगा, तो ऐसा टॉयलेट ही क्यों बनाया। अधिकतर टॉयलेट में लटके रहते है ताले। ऐसे में हमारी रांची को बेहतर रैंकिंग नहीं मिली है तो इसके लिए रांची नगर निगम जिम्मेवार है।

विवेक भारती

टॉयलेट दिखाने के लिए तो नहीं बनाए गए हैं न। अगर ताला ही लगाकर रखना था तो इसे बनाया क्यों। दिखावे के लिए पैसों की बर्बादी की जा रही है। आखिर किसी को नेचुरल कॉल आ जाए, तो क्या वह ताला खुलने का इंतजार करेगा। जाहिर है ख्रुले में जाने के अलावा कोई चारा नहीं होगा।

गोपाल पांडेय

सिटी के अधिकतर टॉयलेट्स में तो ताले ही लटके हुए हैं। लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। आखिर ताला लगाकर रखने से निगम को क्या फायदा है। उल्टे सिटी में और गंदगी बढ़ जाएगी जब लोग खुले में जाएंगे। कुछ जगहों पर तो पुलिस ने उसे अपने कब्जे में ले लिया है।

पिंटू अग्रवाल

पब्लिक की चिंता निगम के अधिकारियों को नहीं है। इसलिए तो लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी टॉयलेट्स में ताला लगा दिया है। इस वजह से लोगों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। ये टॉयलेट्स केवल शोपीस बनकर रह गए हैं।

धनु साहू