रांची (ब्यूरो)। इस एमओयू के अंतर्गत इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट प्रोडक्टिविटी को 441 लाख रूपये उपलब्ध कराया जायेगा। एमओयू के अनुसार खदान क्षेत्र की मिट्टी के संरक्षण और उपयोग एवं देशी पारिस्थितिकी तंत्र के प्रत्यारोपण के लिए कार्यप्रणाली के विकास के लिए एक वैज्ञानिक अध्ययन किया जाएगा। अध्ययन में लैंडस्केप डिजाइनिंग, स्थलों की पुष्प विविधता अध्ययन, उपयुक्त प्रजातियों की जांच, मिट्टी का अध्ययन/संशोधन, वृक्षारोपण तकनीक, वृक्षारोपण पर खदान का भौतिक-रासायनिक गुणों का प्रभाव का आकलन, प्रजातियों की मिट्टी की जांच सहित कई विषयों को शामिल किया जाएगा। सर्वप्रथम शोध के लिए सीसीएल के रजरप्पा, आम्रपाली एवं अशोका परियोजना को चिन्ह्ति किया गया है जिसकी अवधि पांच वर्षों की होगी। इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट प्रोडक्टिविटी के निदेशक श्री नितिन कुलकर्णी एवं सीसीएल की ओर से मुख्?य प्रबंधक (पर्यावरण) आलोक कुमार त्रिपाठी ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए। इस अवसर पर एफसीसी के हेड डॉ संजीव कुमार एवं सीसीएल से सीएमडी के तकनीकी सचिव श्री ओलाक सिंह, मुख्य प्रबंधक (पर्यावरण) संगीता एवं अन्य अधिकारीगण सोशल डिस्टेंशिंग का पालन करते हुये उपस्थित थे। ज्ञातव्य हो कि पर्यावरण संरक्षण को सर्वोपरि स्थान देना सीसीएल का प्राथमिकता रहा है। सीसीएल द्वारा कोयला उत्पादन करने के बाद वहॉ की भूमि पर पौधारोपण कर उसे हराभरा कर 'ईको सिस्टम रेस्टोरेशनÓ यानी पर्यावरण को हुये नुकसान की भरपाई करने का सतत प्रयास किया जाता है। खनन के दौरान नवीनतम तकनीकी एवं ईको फ्रेंडली प्रक्रिया अपनाकर पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाये। सस्टेनेबल माईनिंग द्वारा देश की उर्जा जरूरत को पूरा करने के लिए सीसीएल प्रतिबद्ध है।