रांची(ब्यूरो)। मुहर्रम की नवमी शनिवार को मनाई जाएगी। गम और माफी के इस महीने की नौवीं तारीख काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी दिन इंसानियत की भलाई के लिए ईमाम हुसैन कर्बला में शहीद हो गए थे। उनकी शहादत को याद करते हुए मुहर्रम के महीने में इबादत और मगफिरत की दुआएं की जाती हैैं। शहादत की याद में जुलूस निकाला जाता है, जिसमें मातमी ढोल से कर्बला के वाकये को याद किया जाता है। शनिवार को रांची में भी सुन्नी और शिया समुदाय की ओर से जुलूस निकाला जाएगा। इस बीच कई अखाड़ों में रस्म-ए-पगड़ी का आयोजन किया गया। आठवीं के मौके पर अखाड़ों में लोगों को सम्मानित भी किया गया। इसी कड़ी में पहाड़ी टोला नौजवान मुहर्रम कमिटी में खलीफा मो समसू के नेतृत्व में रस्म-ए-पगड़ी का आयोजन किया गया, जिसमें कई लोगों को सम्मानित किया गया।

क्या है मुहर्रम का महीना

कुरान में अल्लाह बताता है कि इस्लाम में हमेशा बारह महीने रहे हैं। जिसमें चार महीने हुरमत (पवित्र) के हैं। इस्लामी कैलेंडर को हिजरी कहा जाता है, जिसका पहला माह मुहर्रम और आखिरी माह जिलहिज्जा है। एक बड़ी इबादत है हज, जो हर साल होती है। पूरी दुनिया से मुसलमान हज के मौके पर मक्का जाते हैं। पुराने जमाने में सफर काफी कठिन था। इसलिए तीन माह का और कम-से-कम एक माह उमरा के लिए अल्लाह ने जंग को नाजायज ठहराया। वैसे उमरा के लिए आम दिनों में भी किया जाता है।

दो दिन रोजा रखने का हुक्म

मुहर्रम की दसवीं तारीख को फिरौन भारी लश्कर लेकर हजरत मूसा (अ) के पीछे रवाना हुआ। यहां तक फिरौन की फौज बनी इसराइल के करीब पहुंच गई। इसी हाल में हजरत जिब्राइल आए और हजरत मूसा (अ) से कहा, ऐ मूसा! अपना असा (लाठी) दरिया पर मारो। लाठी मारते ही दरिया (नील नदी) में रास्ता निकल आया और हजरत मूसा और बनी इसराइल के लोग दरिया के अंदर से होते हुए आगे बढ़े। फिरौन साहिल पर पहुंचा तो दरिया का यह हाल देखकर डरा और उसे सोचा कि मिस्र लौट जाएं और मूसा का पीछा ना करें। पर फिरौन हामान के बहकावे में आ गया और घोड़ा दरिया में डाल दिया फिरौन के पीछे उसका लश्कर भी दरिया में उतर आया तो खुदा ने दरिया के पानी दो भाग में बांट दिया था, उसे मिला दिया। फिरौन और उसकी फौज तबाह बर्बाद हो गई। इस दृश्य को साठ के दशक में बनी फिल्म 'द टेन कमांडमेंट्सÓ में बखूबी फिल्माया गया है। फिरौन से बनी इसराइल के लोगों की आज़ादी के उपलक्ष्य में यहूदी एक दिन का रोजा रखते थे। अल्लाह के नबी पैगंबर मोहम्मद (स) ने मुहर्रम की नौवीं और दसवीं तारीख को रोजा रखने का हुक्म दिया।

72 लोग हुए थे शहीद

मुहर्रम के महीने में कर्बला का दर्दनाक वाकया पेश आया। जिसमें पैगंबर मोहम्मद (स) के नवासे हजऱत हुसैन (रजि) सहित 72 लोग शहीद हुए। कर्बला की दर्दनाक घटना रहती दुनिया तक अन्याय-जुल्म के समक्ष समर्पण नहीं करने की प्रेरणा देता है, चाहे इसके लिए कितनी बड़ी कुर्बानी क्यों ने देनी पड़े।

यजीद का गवर्नर उबैदुल्लाह बिन जयाद ने अपनी सारी हदें पार कर दी और उन पर जुल्म ढाया, उसकी इस कारगुजारी ने इस्लाम को बड़ा नुकसान पहुंचाया। फिलिप हिट्टी लिखते हैैं कि हुसैन का रक्त, अपने पिता अली के रक्त से भी अधिक, शिया धर्म की आधारशिला बना। इस्लाम दो गुटों में विभाजित हुई। इससे इस्लाम उन्नति और समृद्धि को काफी हानि पहुंची।

डॉ मोहम्मद जाकिर, शिक्षाविद