रांची(ब्यूरो)। हॉस्पिटल एक ऐसा स्थान है जहां बीमारी का इलाज होता है। गंभीर बीमारी से लड़ रहे मरीजों को नया जीवन मिलता है। लेकिन जब अस्पताल खुद ही बीमार हो तो मरीज का इलाज कौन करेगा। कुछ ऐसे ही सवालों के साथ दैनिक जागरण आईनेक्स्ट एक अभियान शुरू कर रहा है, जिसमें शहर के अलग-अलग सरकारी हॉस्पिटल की सफाई व्यवस्था की पोल खोली जाएगी। राजधानी में स्थित रिम्स राज्य भर में सबसे बडा अस्पताल माना जाता है। यहां हर दिन दो हजार से अधिक मरीज इलाज के लिए आते हैं। लेकिन यहां की सफाई व्यवस्था देख ऐसा लग रहा जैसे अस्पताल खुद बीमार हो। रिम्स में सफाई के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। लेकिन यह पैसा कहां जा रहा है किसी को पता नहीं है। मैनेजमेंट का कहना हैै रिम्स में सफाई का काम लगातार हो रहा है। लेकिन तस्वीर देखकर और यहां इलाज के लिए आने वाले लोगों की सुनकर अंदाजा हो जाएगा कि प्रबंधन कितना सही बोल रहा है। रिम्स के सिर्फ बाथरूम में नहीं बल्कि वार्ड में, वार्ड के वॉशरूम, इमरजेंसी समेत हर फ्लोर पर गंदगी नजर आती है। मरीज और उनके अटेंडेंट के लिए कोई साफ-सफाई नहीं, लेकिन जिस टॉयलेट का इस्तेमाल डॉक्टर और नर्स अपने लिए करते हैं, वो बिल्कुल चकाचक रहता है। यहां टाइम टू टाइम सफाई भी होती है और दवा का भी छिड़काव किया जाता है। मगर मरीजों और उनके अटेंडेंट के लिए सिर्फ और सिर्फ बदइंतजामी ही है यहां।

अन हाइजीन इंतजाम

हॉस्पीटल में हाइजीन का ख्याल रखना काफी जरूरी होता है। जरा भी लापरवाही मरीजों को और बीमार बना सकती है। इंफेक्शन का भी खतरा बना रहता है। लेकिन इसी स्थान पर हाइजीन का कोई ख्याल नहीं रखा जा रहा है। अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले मरीजों को इंफेक्शन का खतरा बना रहता है। फिर भी इन सबसे हॉस्पिटल प्रबंधन को मतलब नहीं। रिम्स में सफाई की जिम्मेवारी प्राइवेट एजेंसी अन्न्नपूर्णा को दी गई है। अस्पताल से मिली जानकारी के अनुसार, रिम्स परिसर में हर महीने सफाई के नाम लाखों रुपए खर्च होते हैं। कैंपस के स्क्वायर फिट के आधार पर आउटसोर्सिंग एजेंसी को यह जिम्मेदारी गई है। लेकिन न तो एजेंसी के कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभा रहे हैं और न ही इनपर कंट्रोल रखने वाले हॉस्पिटल के अधिकारी अपने कर्तव्य का निर्वहन निष्ठा से कर रहे हंै। जिसका नतीजा है कि अस्पताल परिसर के अंदर और बाहर दोनों ओर गंदगी के अंबार लगे हुए हैं।

प्राइवेट हॉस्पिटल का 10 परसेंट भी इंतजाम नहीं

ऐसा नहीं है कि सरकारी अस्पतालों के पास फंड की कोई कमी है। हर साल तीन सौ करोड़ रुपए का बजट सिर्फ रिम्स का तैयार किया जाता है, जिसमें सफाई व्यवस्था भी शामिल है। अस्पताल और कॉलेज की सफाई के नाम पर रिम्स प्रबंधन हर माह करीब 20 लाख रुपए खर्च करता है। फिर भी मरीज व परिजनों को उसका समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है। दूसरी तरफ बेहतर सफाई के नाम पर रिम्स में सालभर लाखों का रिपेयरिंग वर्क कराया जाता है। इसके बावजूद अधिकारी से लेकर कर्मचारी सभी सफाई हुई या नहीं इसपर ध्यान नहीं देते। वहीं सरकारी हॉस्पिटल की तुलना में प्राइवेट हॉस्पिटल में सारी चीजें व्यवस्थित नजर आती है। प्राइवेट हॉस्पिटल्स में सफाई का खास ख्याल रखा जाता है। सिर्फ टॉयलेट ही नहीं, बल्कि एंट्री गेट से लेकर, सीढिय़ां, लिफ्ट हर जगह चकाचक नजर आता है। सिर्फ कंट्रोलिंग और मॉनिटरिंग के कारण ही यह संभव हो पाता है, जिसका अभाव सरकारी अस्पताल में साफ नजर आता है। हॉस्पिटल में इलाज के लिए मौजूद डॉक्टर भी मरीजों को स्वच्छता का संदेश देते हैं। लोगों को साफ-सफाई पर ध्यान देने की सलाह दी जाती हो। लेकिन यहीं पर व्याप्त गंदगी की सफाई करने का बीड़ा कोई नहीं उठाता।

बाथरूममें गंदगी, बदबू व सीवरेज जाम की समस्या

रिम्स के बाथरूम से बदबू आती है। यहां की सीवरेज लाइन हमेशा जाम ही रहती है। जिस वजह से शौचालय की गंदगी बाहर नहीं निकल पाती है। बाथरूम का पानी खुली नालियों के माध्यम से बहता है। जिससे अस्पताल परिसर में बीमारी फैलने का खतरा बना रहता है। रिम्स प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है। रिम्स परिसर में फेंके गए कबाड़ के बीच में मरीज के साथ उनके परिजनों को रहना पड़ रहा है। यह दृश्य परिसर की साफ-सफाई व्यवस्था को आईना दिखा रहा है। बर्न वार्ड और कैदी वार्ड के बीच जगह-जगह फैली गंदगी के बीच से गंभीर मरीजों को भी गुजरना पड़ता है। आर्थो वार्ड में भी गंदगी फैली हुई है तो वहीं महिला ओपीडी के बाथरूम भी बदबूदार है।