रांची: शिक्षिका रंजना पालितमौत की तारीख 22 अक्तूबर 1998 हत्या का आरोपी पुलिस इंस्पेक्टर भगवान दास, डोरंडा थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी। शहर के चर्चित पुलिस अधिकारियों में एक और कई आरोपों से घिरे रहने वाले भगवान दास पर शिक्षिका रंजना की हत्या के गम्भीर आरोप लगे थे। भगवान दास का रसूख कहें या लोकल पुलिस का फेल्योर लोकल पुलिस को भगवान दास के खिलाफ कोई सबूत ही नहीं मिले। मामला गम्भीर था इसलिए जांच की जिम्मेदारी सीबीआई को सौंपी गई। हत्या के इस हाईप्रोफाइल मामले में आरोपी इंस्पेक्टर भगवान दास को सीबीआई ने दोषी पाया था। सीबीआई की विशेष अदालत ने परिस्थिति के अनुसार साक्ष्यों के आधार पर इंस्पेक्टर को गुनहगार माना।

2003 में दिया आजीवन कारावास

साल 2003 में दिसंबर महीने में भगवान दास को सीबीआई के विशेष न्यायाधीश नुमान अली ने उम्रकैद की सजा सुनाई। लेकिन 8 सालों के बाद इंस्पेक्टर को हाईकोर्ट से राहत मिली। घटना का कोई चश्मदीद नहीं था, ऐसे में परिस्थिति के अनुसार साक्ष्यों को नाकाफी मानते हुए साल 2011 को जस्टिस सुशील हरकौैली और जस्टिस आरआर प्रसाद ने इंस्पेक्टर को हत्याकांड से बरी कर दिया। लेकिन इसके साथ ही एक सवाल फिर खड़ा हो गया कि अगर इंस्पेक्टर भगवान दास ने रंजना की हत्या नहीं की तो कौन था गुनहगार।

दिवाली की शाम हुआ हत्याकांड

21 अक्तूबर 1998 दीवाली की शाम शिक्षिका रंजना पालित के घर के बेसिक फोन पर कॉल आया। एक फोन के बाद शिक्षिका सज-धज कर अपने घर से निकलीं। शाम तकरीबन 5.30-5.45 बजे के बीच रंजना को यह फोन आया था। दोबारा तकरीबन छह बजे भी रंजना के घर पर फोन आया, फोन करने वाले ने खुद को इंस्पेक्टर भगवान दास बताया। शाम साढ़े छह से आठ बजे तक शिक्षिका और इंस्पेक्टर एलोरा नामक रेस्तरां में गए। अगली सुबह 6.30 बजे धुर्वा में इसाई कब्रिस्तान के पास शिक्षिका रंजना पालित का शव जली अवस्था में पाया गया। घटना की सूचना मिलने के बाद मौके पर पहुंचे हटिया(धुर्वा) स्टेशन के पुलिस अधिकारी नंदलाल प्रसाद ने शव का पंचनामा किया। पास से पुलिस ने एक बुलेट भी बरामद की। घटना के बाद हटिया पुलिस, सीआइडी ने जांच की, लेकिन सबूत नहीं मिले। मृतका की मां के आवेदन पर सीआइडी ने 23 अप्रैल 2001 से पूरे मामले की जांच शुरू की।

प्रेम प्रसंग में शादी करने निकली थी रंजना, मिला शव

साल 1997 में रंजना पालित ने बरियातू थाने में पीपीए राय नामक एक व्यक्ति के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई थी। इस मामले की जांच के दौरान लालपुर सर्किल इंस्पेक्टर रहे भगवान दास से रंजना की दोस्ती हुई। साल 1998 में रंजना गर्भवती हो गई। वहीं भगवान दास की पोस्टिंग डोरंडा थानेदार के तौर पर हो गई। सीबीआइ के आरोपपत्र के मुताबिक, 21 अक्तूबर 1998 को भगवान दास ने शाम में रंजना पालित के घर फोन कर उसे बुलाया। रंजना तब अपनी नौकरानी विश्वासी मुंडा को यह कह कर निकली कि वह शादी करने जा रही। इसके बाद रंजना पूरी रात नहीं लौटी। शाम में रंजना और इंस्पेक्टर को होटल एलोरा में साथ डिनर करते देखा गया।

एलोरा के वेटर ने कहा.भगवान-रंजना थे साथ-साथ

यहां वेटर कृष्णा साहू ने दोनों को साथ देखने की बात सीबीआइ को बताई थी। रात आठ बजे से रात दो बजे तक भगवान दास फिर छापेमारी में रहे। इसी दौरान उन्होंने एसआइ रंगनाथ मिश्रा का सर्विस रिवाल्वर यह कहते हुए ले लिया कि उसका रिवाल्वर काम नहीं कर रहा। 22 अक्तूबर की सुबह तीन बजे इंस्पेक्टर भगवान दास के पड़ोसी गणेश झा ने देखा कि भगवान दास, रंजना पालित व दो अन्य लोग मारुति वैन में भगवान के सरकारी आवास से निकले। उसी दिन सुबह छह बजे कब्रिस्तान में रंजना का शव मिला।

भाई ने की पहचान

रंजना के भाई बीबी पालित ने उसी शाम शव की पहचान रंजना के तौर पर की। मामले की सुनवाई के बाद सीबीआइ की निचली अदालत ने पाया कि भगवान दास ने ही रंजना की हत्या करवाई, परिस्थिति के अनुसार साक्ष्यों के आधार पर इंस्पेक्टर को सीबीआइ ने गुनहगार माना। रंगनाथ मिश्रा की सर्विस रिवाल्वर से हत्या किए जाने के बाद शव को जलाया गया था। सुनवाई के बाद भगवान दास को कोर्ट ने दिसंबर 2003 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

और हो गई रिहाई

साल 2011 में झारखंड हाईकोर्ट ने सीबीआइ की निचली अदालत के फैसले को पलट दिया। हाईकोर्ट ने भगवान प्रसाद को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। हत्या का कोई चश्मदीद नहीं था, ऐसे में परिस्थिति के अनुसार साक्ष्यों को पुलिस ने सजा के लिए पर्याप्त नहीं माना। इंस्पेक्टर भगवान दास को कोर्ट ने हत्या के आरोप में बरी कर दिया, ऐसे में सवाल अब भी बरकरार है कि आखिर कौन था, रंजना पालित का हत्यारा?