रांची (ब्यूरो): राज्य के सबसे बड़े गवर्नमेंट हॉस्पिटल में चोरों और दलालों का कब्जा हो गया है। हर वार्ड से कुछ न कुछ सामानों की चोरी की खबरें अक्सर आ रही हैैं। जल्दी टेस्ट कराने के नाम पर दलाल भी मरीजों पर गिद्ध की तरह निगाहें टिकाए रहते हैैं। जहां कोई मरीज या उसके परिजन किसी प्रकार की जांच, खून आदि के लिए भटकते दिखते हैं तो दलाल फौरन उन्हें लपक लेते हैं। चोरों और दलालों से रिम्स प्रबंधन भी परेशान है, लेकिन इन्हें पकडऩे के लिए कोई खास व्यवस्था नहीं कर रहा है। प्रबंधन सिर्फ अनाउंसमेंट कर रिम्स में भर्ती मरीज और उनके अटेंडेंट को अलर्ट कर हा है।

बढ़ी चोरी और पॉकेटमारी

रिम्स के विभिन्न वार्ड में एडमिट मरीज और उनके परिजनों के सामने चोरी की समस्या खड़ी हो गई है। आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति ही यहां अपना इलाज की उम्मीद लेकर आता है। लेकिन रिम्स के चोर मरीज और उनके परिजनों के सामान और कैश पर हाथ साफ कर लेते हैं। किसी वार्ड से मोबाइल फोन तो कहीं से कोई दूसरे सामान गायब हो रहे हैैं। इससे यहां के मरीज काफी परेशान हैं। रिम्स के सुरक्षाकर्मी मरीज और उनके परिजनों को सर्तक करते नजर आते हैं, लेकिन चोरों को पडऩे की कोई कोशिश नहीं हो रही है। रिम्स में सिर्फ मोबाइल फोन ही नहीं बल्कि मोटरसाइकिल चोरी, पॉकेटमारी की शिकायतें भी बढ़ी हैं।

शिकार ढूंढते रहते हैं बिचौलिये

रिम्स में बिचौलिये भी बड़ी समस्या है। ब्लड से लेकर मरीजों की जांच में भी दलाल हावी हैं। जांच के लिए मरीज और उनके परिजनों को गुमराह कर प्राइवेट लैब ले जाने के लगातार मामले आ रहे हैं। गिरिडीह से इलाज के लिए सुनील महतो को बिचौलियों ने न्यूरोलॉजी ओपीडी के बाहर पकड़ कर बरियातु के एक निजी जांच घर से जबरन 4500 रुपए रेडियोलॉजी जांच करा दी, जबकि रिम्स में यह जांच महज चार सौ रुपए में हो जाती। सुनील के परिजनों ने बताया कि रिम्स में मशीन खराब होने और रिपोर्ट आने में ज्यादा लेट होने की बात कह कर बाहर ले जाकर जांच कराया गया। रिम्स जांच घर, ओपीडी और ब्लड बैंक के पास अक्सर दलाल सेंधमारी करते दिख जाते हंै। मालूम हो कि रिम्स में सीटी स्कैन और एमआरआईं के लिए अत्याधुनिक मशीनें लगाई गई हैं, पर रिपोर्ट आने में तीन से पांच दिन तक लग जाते हैं। इसी का फायदा प्राइवेट जांच सेंटर के दलाल उठा रहे हैैं। जल्दी रिपोर्ट पाने के फेर में मरीज फंस जाते हैं।

बेड की क्राइसिस

रिम्स में बेड की समस्या का अबतक समाधान नहीं निकला है। हेल्थ मिनिस्टर के निर्देश के बाद भी बेड की उपलब्धता नहीं बढ़ाई गई। बेड नहीं मिलने से रिम्स के मेडिसीन और न्यूरो वार्ड में भी मरीज फर्श पर इलाज कराते नजर आते हैं। रिम्स के गेट से लेकर बाथरूम के पास भी मरीज लेटे रहते हैं। इमरजेंसी गेट के पास लेटे 46 वर्षीय सुधांशु को बेड नहीं मिलने से उनके परिजनों ने बाथरूम के पास ही लिटा दिया। सुधांशु की मां ने बताया कि डॉक्टर का कहना है जबतक रिपोर्ट नहीं आएगा इलाज नहीं करेंगे। मशीन खराब होने से न तो सुधांशु का टेस्ट हो रहा है और न ही इलाज शुरू हो रहा है। ऐेसे में उन्हें बेड भी नहीं मिल रहा है।

जीवन रक्षक दवाएं नहीं

रिम्स द्वारा मरीजों को नि:शुल्क दवा से लेकर जेनरिक दवा उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है। इसके लिए रिम्स के अंदर दवाखाना है। लेकिन यह सिर्फ हाथी के दांत ही साबित हो रहा है। कांउटर से मरीज को कोई दवा मिलती ही नहीं है, जबकि दर्जनों दवा रखने का दावा किया जाता है। जब मरीज के परिजन कांउटर पुहंचते हैं तो उन्हें दवा उपलब्ध नहीं होने की बात कह कर लौटा दिया जाता है। डॉक्टर को ब्रांडेड दवा प्रिस्क्राइब नहीं करने को कहा गया है। लेकिन फिर भी डॉक्टर ब्रांडेड दवा ही लिख रहे हैं। जिस कारण न तो रिम्स के मेडिसीन में और न ही जन औषधि केंद्र में दवा मिल पाता है। प्राइवेट मेडिकल स्टोर पर जाकर मरीज के परिजन दवा खरीदने के लिए मजबूर हैैं।

हाल की कुछ घटनाएं

केस 1

रोड एक्सीडेंट घायल हुए नगड़ी निवासी मनोज मुंडा इलाज के लिए रिम्स में भर्ती है। उनका मोबाइल फोन रिम्स से ही चोरी हो गया। काफी छानबीन की, लेकिन कुछ पता नहीं चला।

केस 2

न्यूरो में एडमिट मरीज से मिलने आए सुदर्शन महतो की पॉकेटमारी हो गई। उनके पर्स में 5500 रुपए और कुछ जरूरी डॉक्यूमेंट थे।

केस 3

रिम्स में मडंराते दलालों ने मरीजों को जांच में विलंब होने की बात कह कर चूना लगा दिया। मरीज के परिजन अजित कुमार ने बताया कि मरीज को भर्ती करना जरूरी था, लेकिन रिपोर्ट में देरी होने के कारण प्राइवेट लैब जाकर टेस्ट कराना पड़ा।

रिम्स में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई गई है। लोगों को भी अलर्ट किया जा रहा है। वार्ड में घूमकर मरीज और उनके परिजनों को सर्तक किया जा रहा है।

- डॉ डीके सिन्हा

पीआरओ, रिम्स