रांची (ब्यूरो)। राजधानी रांची में तेज आवा से लोग बीमार पड़ रहे हैं। तेज आवाज से बीमार लोग डॉक्टर के पास पहुंच रहे हैं। सरकार द्वारा शहर में कई जगह साइलेंट जोन घोषित किया गया है, लेकिन रांची के लोग इस आदेश को भी नहीं मान रहे हैं। गाडिय़ों में बेरोक-टोक बजते प्रेशर हॉर्न, कान फाड़ू म्यूजिक और तेज गति से गाड़ी ड्राइव करने से कई इलाकों में सामान्य से कई गुना साउंड पॉल्यूशन बढ़ गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि जिन जगहों पर सबसे अधिक साउंड पॉल्यूशन होता है, वहां पर रियल टाइम मॉनिटरिंग डिवाइस भी नहीं लगी हैै।

बहरे हो रहे हैं लोग

शहर के ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ हर्ष कुमार बताते हैं कि साउंड पॉल्यूशन के कारण लोग बहरे हो रहे हैं, लेकिन उनको पता नहीं चल रहा है। हमलोगों के पास बहुत सारे ऐसे लोग आते हैं, जिनका डीप 4000 हट्र्ज फ्रिक्वेंशी पर होता है। ऐसे मरीज साउंड पॉल्यूशन के कारण आते हैं। बड़े शहरों में हॉस्पिटल और स्कूल के बाहर नो हार्न जोन बना होता है, लेकिन रांची में ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है, जिससे लोगों को परेशानी हो रही है। यूरोप में ईयर फोन पर भी कंट्रोल होता है, एक लिमिट से अधिक साउंड बढ़ता ही नहीं हैै। हमारे देश में ऐसा कोई भी नियम नहीं है, जिससे लोगों को कान से संबंधित परेशानी हो रही है।

तेज आवास से कई बीमारियां

बहुत अधिक तीव्रता की ध्वनि के बीच यदि कोई व्यक्ति 8 से 10 घंटे रहता है, तो थकान, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन और सिर दर्द जैसी शिकायतें मिलती हैं। जिनकी उम्र 60 पार हो चुकी है, अगर वे लगातार शोरगुल के बीच रहते हैं तो उनमें हाई बीपी, हार्ट प्रॉब्लम, स्थाई बहरापन सहित स्मरण शक्ति भी कमजोर होने का खतरा रहता है। डॉक्टरों का कहना है कि साउंड पॉल्यूशन का बुरा प्रभाव सुनने की क्षमता पर भी पड़ता है। लगातार शोरगुल के बीच रहने से ऊंचा सुनने की शिकायत हो जाती है। तेज आवाज सिर्फ कान के पर्दे को ही प्रभावित नहीं करती है, बल्कि मानसिक संतुलन भी बिगाड़ देती है।

ऐसे होता है ध्वनि प्रदूषण

अमूमन 2 लोगों की बातचीत में 50 से 55 डेसीबल तक साउंड होती है। लेकिन, बढ़ती आबादी और आधुनिकीकरण के कारण लोगों के द्वारा 100 से 160 डेसीबल तक की आवाज सुनी जा रही है। जो अगर सीधे लोगों के कानों तक पहुंच जाए तो कान के पर्दे फट भी सकते हैैं।

नहीं होती कोई जांच

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से सामान्य दिनों में ध्वनि प्रदूषण जांच की व्यवस्था ही नहीं है। रांची में प्रदूषण बोर्ड की ओर से सिर्फ दीवाली के समय जांच होती है। आम दिनों में जांच नहीं होती है। परिवहन विभाग भी इस मामले में किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं करता है। ऐसे में बढ़ रहे साउंड पॉल्यूशन का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है।

यहां जरूरी है नॉइज पाल्यूशन मापने की मशीन

शहर में कुछ जगहों पर सबसे अधिक साउंड पॉल्यूशन हो रहा है। इसलिए इन जगहों पर रियल टाइम मॉनिटरिंग मशीन लगाने पर सही लेवल पता चल सकता है। सिटी में अल्बर्ट एक्का चौक, लालपुर चौक, बिरसा चौक, पिस्का मोड़, कचहरी चौक के अलावा सीएमपीडीआई, अरगोड़ा चौक, रातू रोड चौराहा, हाईकोर्ट, सुजाता चौक और प्रोजेक्ट बिल्डिंग के पास साउंड पॉल्यूशन ज्यादा हो रहा है। हालांकि, यहां साउंड पॉल्यूशन लेवल पता करने की मशीन भी नहीं लगी है।

सिटी के कई इलाके साइलेंट जोन घोषित किए गए

राजधानी में ध्वनि प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन विभाग ने कुछ इलाकों को साइलेंट जोन घोषित किया है। कहा है कि ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण नियमावली 2000 के तहत रांची के सिविल कोर्ट एवं हाई कोर्ट परिसर की 100 मीटर की दूरी के अंदर पडऩे वाले क्षेत्र को साइलेंट जोन घोषित किया गया है। इन क्षेत्रों में सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक 50 डेसीबल आवाज निर्धारित की गई है। वहीं, रात के 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 40 डेसीबल ध्वनि निर्धारित की गई है। अधिसूचना के के आधार पर शैक्षणिक संस्थानों में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची विश्वविद्यालय, निर्मला कॉलेज, योगदा सत्संग कॉलेज व बीआईटी मेसरा रांची परिसर को साइलेंट जोन घोषित किया गया है। इन क्षेत्रों में भी सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक 50 डेसीबल आवाज निर्धारित की गई है। वहीं, रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 40 डेसीबल ध्वनि निर्धारित की गई है।

रांची में हाल के दिनों में ध्वनि प्रदूषण बढ़ गया है। इससे लोगों को बचने की जरूरत है। इंसानों को सुनने के लिए 60 डेसीबल तक साउंड को ही मानक रखा गया है। जबकि इससे ज्यादा आवाज होती है तो वह ध्वनि प्रदूषण की श्रेणी में आती है।

-डॉ हर्ष कुमार, ईएनटी स्पेशलिस्ट, रांची