RANCHI: हीरा लाल साहू रजिस्टर्ड स्टांप वेंडर हैं, जो क्990 से रांची सिविल कोर्ट में स्टांप वेंडर का काम कर रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों से वह मंदी के दौर से गुजर रहे हैं। दुकानदारी ठप है। जब से ई -स्टांप शुरू हुआ है, उनका धंधा पूरी तरह चौपट हो गया है। निराश हीरा लाल साहू कहते हैं कि क्9भ्8 में मैट्रिक पास करने के बाद कचहरी आने लगा। शुरू में टाइपिस्ट का काम करता था। उसके बाद से स्टांप वेंडर का काम कर रहा हूं। लेकिन पिछले कुछ दिनों से हालत इतनी खराब हो गई है कि पूरा दिन सिर्फ बैठकर ही गुजारना पड़ रहा है। एक तो पहले से स्टांप मिलना बंद हो गया, ऊपर से ई-स्टांपिंग शुरू हो गई है। अब लोग खुद से ई- स्टांप खरीद कर लाते हैं और अपना काम करवा लेते हैं। हीरा लाल साहू तो बानगी मात्र हैं, बल्कि कचहरी में काम करने वाले हर व्यक्ति का धंधा मंदा हो गया है। इनमें मुंशी से लेकर डीड राइटर, टाइपिस्ट, नोटरी करने वाले वकील तक शामिल हैं।

पहले रोज फ् डीड, अब महीने में दो

पिछले ख्भ् साल से सिविल कोर्ट रांची में मुंशी का काम कर रहे गोकूल कोयरी कहते हैं, ऐसी मंदी तो कचहरी में पहले कभी नहीं आई थी। कचहरी में काम करने वाले हर लोग खुशहाल थे। पिछले ख्भ् साल से मैं यहां काम कर रहा हूं। पहले हर दिन दो से तीन डीड का काम होता था, और सुबह के नौ बजे से क्ख् बजे तक चार से पांच हाजिरी कर देते थे, लेकिन अब यहां काम करना मुश्किल हो गया है। अब महीने में मुश्किल से दो डीड का ही काम हो पा रहा है। ऊपर से इतने सारे डॉक्यूमेंट्स की क्वेरी हो रही है कि काम करना मुश्किल हो गया है।

फ् महीने से एक भी डीड नहीं

क्980 से रांची सिविल कोर्ट में दस्तावेज नवीस का काम करने वाले भुवनेश्वर ठाकुर कहते हैं कि हमलोग अब डीड लिखना छोड़कर मिसलेनियस काम शुरू कर दिए हैं। जैसे लोगों की जमीन का खतियान निकालना, सर्टिफाइड कॉपी निकालना आदि। मजबूरी में हम लोग अब वही काम कर रहे हैं, जो हम लोगों का नहीं है। पिछले तीन महीने से हमारे पास एक भी डीड नहीं आया है। पहले महीने में हमलोग क्भ् से ख्0 डीड लिखते थे। अब दस्तावेज का काम ऑनलाइन हो गया है। इसमें अधिकतर समय या तो सर्वर डाउन रहता है या सॉफ्टवेयर में परेशानी रहती है। हमलोग फ्भ् साल से कचहरी आ रहे हैं, लेकिन ऐसी मंदी पहले कभी नहीं आई थी।

एफिडेविट खत्म हो गया

पहले कोई भी काम करने से पहले एफिडिफिट कराना जरूरी था, नोटरी से एफिडेविट होने पर ही पेपर को लीगल माना जाता था। लेकिन अब कचहरी में ये काम नहीं के बराबर हो गया है। सरकार ने अधिकतर चीजों से एफिडेविट खत्म कर दी है। जाति, आय, आवासीय व एग्जाम फार्म भरने तक में सेल्फ एफिडेविट की मांग की जाती है। ख्0 साल से सिविल कोर्ट में नोटरी का काम करने वाले वकील विकास सिन्हा बताते हैं कि अब तो हमलोग कचहरी में बैठने के लिए आते हैं। हमलोगों के पास कोई काम नहीं रहता है। सरकार ने हर चीज में एफिडेविट सेल्फ कर दी है।

घर से टाइप मशीन लाना बेकार

सिविल कोर्ट में टाइपिंग करने वालों को पहले सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा माना जाता था। उनका काम अलग तरह का होता था। लेकिन अब तो हालात बदल चुके हैं। कचहरी में टाइपिस्ट का काम करने वाले अजित कुमार बताते हैं कि कई साल से मैं यहां काम कर रहा हूं। लेकिन अब काम मिल ही नहीं रहा है। अब टाइप मशीन घर से लेकर आने में भी खराब लगता है कि मशीन लेकर आएं और बिना काम किए वापस लेकर चले जाएं।