रांची (ब्यूरो): रिम्स में एक साल से छह जांच मशीनें खराब पड़ी हैं। एक साल से रेडियोलॉजी विभाग में एक्स-रे की सीआर रीडर मशीन खराब है। महीने में इसकी मरम्मत होती जरूर है, पर दो दिन बाद खराब हो जाती है। वहीं छह महीने से अल्ट्रासाउंड मशीन खराब है। मरीजों को बिलिंग काउंटर से लौटा दिया जा रहा है। यहां एक दिन में करीब 300 रोगियों की अल्ट्रासाउंड जांच होती है।

मामूली है चार्ज

रिम्स में एक अल्ट्रासाउंड पर 180 रुपए खर्च होते हैं, जबकि निजी जांचघर में 1035 से तीन हजार रुपए तक लगते हैं। एक महीने का औसत निकालें तो 1035 रुपए के हिसाब से रोज 300 रोगियों ने निजी जांच घर को 93.15 लाख रुपए का भुगतान किया, जबकि रिम्स में इतने मरीजों का खर्च 16.20 लाख पड़ता। 6 माह में 5.58 करोड़ निजी जांच घर को दिए, जबकि रिम्स में 97 लाख ही लगते।

20 से 40 रोगियों का हो रहा एक्स-रे

रिम्स के रेडियोलॉजी विभाग के कर्मियों का कहना है यहां मशीन ठीक रहने पर रोजाना पांच सौ एक्स-रे होता है। पिछले एक साल से आए दिन मशीन में कुछ न कुछ समस्या से सिर्फ छोटी वाली एक एक्स-रे मशीन ठीक है, जिसकी अधिकतम जांच क्षमता एक दिन की महज 20 से 40 ही है। ट्रॉमा सेंटर में छह माह पहले सीटी स्कैन की नई मशीन इंस्टॉल हुई है। समस्या यह है कि नई मशीन की फिल्म 20 दिन से खत्म है, जबकि प्रबंधन को स्टॉक रखना अनिवार्य है।

डॉक्टर लिखते हैं जांच

रिम्स में अल्ट्रासाउंड मशीन खराब पड़ी है। इस कारण मरीजों को परेशान होना पड़ रहा है। अल्ट्रासाउंड मशीन खराब होने की वजह से मरीजों को मजबूरन निजी केंद्रों पर अल्ट्रासाउंड कराना पड़ रहा है। लैब में मौजूद कर्मचारियों ने बताया कि अल्ट्रासाउंड मशीन को बनने में अभी समय लगेगा। इन मरीजों को प्राइवेट और रैन बसेरा स्थित लैब में जांच के लिए जाने की सलाह दी जाती है। हालांकि प्रबंधन को मशीन खराब होने की जानकारी दे दी गई है। डॉक्टर अल्ट्रासाउंड के लिए लिखते हैैं, जब रोगी रिम्स लैब में स्थित अल्ट्रासाउंड केंद्र पर पहुंचते हैं, तो मशीन खराब होने की जानकारी मिलती है।