रांची (ब्यूरो)। कांके, गेतलसूद व धूर्वा डैम से जो मछलियां निकल रही हैं, वो खाने लायक नहीं है। इस डैम में माइक्रो प्लास्टिक के कण पाए गए हैं जो डैम में रहने वाले जीव-जंतु खा रहे हैं। इस माइक्रो प्लास्टिक के टुकड़े को खाने से डैम में जो मछलियां हैं, वो बीमार हो रही हैं। इन मछलियों ने प्लास्टिक के जो छोटे टुकड़े खाए हैं, उससे उनके शरीर में हानिकारक चीज जा रहा है। इन मछलियों को खाने से आदमी के शरीर को भी नुकसान पहुंचेगा। बीआईटी मेसरा के सिविल एंड एनवायरन्मेंटल डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सुकल्यान चक्रवर्ती व उनकी टीम ने इसपर रिसर्च किया है।

तीन साल से रिसर्च

डॉ सुकल्यान चक्रवर्ती ने बताया कि भारत सरकार की ओर से मुझे एक ग्रांट मिला है, जिसका टाइटल है माइक्रोप्लास्टिक कंजर्वेशन ऑफ वाटर सप्लाई रिजर वाटर ऑफ रांची। इसके तहत रांची में माइक्रोप्लास्टिक का यूज और उससे क्या नुकसान हो रहा है, उससे कैसे बचाव किया जा सकता है, इस पर रिसर्च करना है। हमने इसके लिए रांची के तीन लेक जहां से शहर के लोगों को पानी मिलता है, हटिया, कांके व रुक्का डैम पर रिसर्च करना शुरू किया। 2019-20 से हमने रिसर्च करना शुरू किया है। तीन साल के रिसर्च में यह बात सामने आई है कि इन डैम में प्लास्टिक के छोटे टुकडे पाए जा रहे हैं, जिसके कारण इस डैम में रहने वाले जितने भी जंतु हैं उनको नुकसान हो रहा है।

मछलियों में जहर

डॉ चक्रवर्ती ने बताया कि लोग जो प्लास्टिक जहां तहां फेक रहे हैं वो कभी खत्म नहीं होता है। वह छोटे-छोटे टुकड़े में जो पांच एमएम से भी कम है उसमें तब्दील हो जाता है, वह और छोटा होकर नैनो हो जाता है। यह नैनो होकर डैम के पानी के अंदर चला जाता है, डैम में जो मछलियां हैं वो इस प्लास्टिक को खा जाती हैं, इससे उनका पेट भरा हुआ लगता है, और वो जरूरी दूसरे मिनरल्स नहीं खा पाती हैं, जिसके कारण वह जल्दी ही बीमार हो जाती हैं। इन मछलियों को खाने से आदमी भी बीमार हो सकते हैं। इससे डैम में जो पानी है वो भी खराब हो रहा है, इसको संभालना जरूरी है।

देश भर में दो जगह रिसर्च

डॉ चक्रवर्ती ने बताया कि इन माइक्रो प्लास्टिक इन वाटर पर बहुत कम रिसर्च किया गया है। साउथ में एक यूनिवर्सिटी में इस पर रिसर्च किया जा रहा है और दूसरा रिसर्च बीआईटी मेसरा की ओर से किया जा रहा है। अभी भी इस पर रिसर्च जारी है। इसका पूरा रिसर्च करने के बाद सरकार को भी इसकी रिपोर्ट दी जाएगी।

सख्ती से हो प्लास्टिक बैन

राज्य सरकार प्लास्टिक के यूज को बैन करने के लिए सिर्फ चर्चा कर रही है। कई बार इसको लेकर कार्रवाई शुरू की जाती है, लेकिन इसका कोई रिजल्ट नहीं निकलता है। कुछ दिन तक तो सरकार एक्टिव रहती है, उसके बाद उस पर काम नहीं किया जाता है। जब तक प्लास्टिक पूरी तरह से बैन नहीं होगा मानव जीवन के साथ-साथ जानवरों और जीव-जंतुओं को भी परेशानी होती रहेगी। खुदरा प्लास्टिक वालों को सरकार परेशान करती है, लेकिन जब तक प्लास्टिक बनाने वालों को रोका नहीं जाएगा, इस पर बैन लगना संभव नहीं है।

भारत सरकार की ओर से एक ग्रांट मिला है, जिसका टाइटल है माइक्रोप्लास्टिक कंजरवेशन ऑफ वाटर सप्लाई रिजर वाटर ऑफ रांची। इसके लिए रांची के तीन लेक जहां से शहर के लोगों को पानी मिलता है। हटिया, कांके और रुक्का डैम पर रिसर्च करना शुरू किया। 2019-20 से हमने रिसर्च करना शुरू किया है। तीन साल के रिसर्च में यह बात सामने आई है कि इन डैम में प्लास्टिक के छोटे टुकड़े पाए जा रहे हैं, जिसके कारण इस डैम में रहने वाले जितने भी जंतु हैं उनको नुकसान हो रहा है।

-डॉ सुकल्यान चक्रवर्ती, एसोसिएट प्रोफेसर, सिविल एंड एनवायरन्मेंटल डिपार्टमेंट, बीआईटी मेसरा, रांची