रांची(ब्यूरो)। राजधानी रांची स्वच्छता रैंकिंग में ऐसे ही नहीं फिसल गई। इसके पीछे निगम के अधिकारियों की काफी मेहनत है। दरअसल सिटी में वर्षों से चले रहे सीवरेज-ड्रेनेज और बायोगैस प्लांट पर काम चल रहा है। बीते करीब दस सालों में भी सीवर लाइन बिछाने का काम पूरा नहीं हुआ है। इधर सिटी में सफाई व्यवस्था भी काफी लचर हो चुकी है। लोगों के घरों से वेस्ट कलेक्शन भी नहीं हो रहा है। अधिकारी-पदाधिकारी और कर्मचारी कमरे में बैठ कर सिर्फ योजनाओं पर बात करते हैं, इसे इंप्लीमेंट कराने पर अधिकारियों का कोई ध्यान नहीं होता। यही सब प्रमुख कारण है रांची के रैकिंग में फिसलने की। शहर में जहां-तहां गंदगी का अंबार नजर आता है। पाइप लाइन बिछाने के लिए एक बार फिर से सिटी की सड़क को तहस-नहस कर दिया गया है। गलियों का हाल काफी बुरा है। सिर्फ कुछ प्रमुख स्थानों को छोड़ अन्य सभी इलाकों में गंदगी और बदबू फैली है।

रैंकिंग में कहां है सिटी

स्वच्छता रैंकिंग 2023 के टॉप 10 तो दूर की बात रांची टॉप 100 सिटी में भी शामिल नहीं है। हालांकि बीते सर्वे की अपेक्षा रैंकिंग में थोड़ा सुधार जरूर हुआ है। पिछली बार रांची की रैंकिंग 1328वीं थी। इस बार के सर्वेक्षण में रांची की रैंकिंग 885वीं है। वहीं निगम के अधिकारी अपनी कमी बताने की जगह इस बार की रैकिंग में 12 परसेंट अंक बढ़ोतरी की बात बता रहे हैं। दरअसल, साल 2022 में 7500 अंकों का सर्वे हुआ था, जिसमें रांची को 3068 अंक प्राप्त हुए थे। वहीं बीते साल स्वच्छता रैकिंग के लिए 9500 अंक निर्धारित किए गए थे। इसमें रांची को 4946 अंक प्राप्त हुए। वहीं यदि दस लाख या इससे अधिक आबादी वाली श्रेणी में देखा जाए तो रांची 32वें नंबर पर है।

हर महीने दो करोड़ खर्च

राजधानी रांची में हर महीने सिर्फ साफ-सफाई के नाम पर करीब दो करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं। कर्मचारियों के वेतन से लेकर इक्विपमेंट्स और संसाधनों पर निगम करोड़ों रुपए खर्च करता है। फिर भी राजधानी रांची की तस्वीर नहीं बदल रही है। बता दें कि नगर निगम क्षेत्र में 53 वार्ड हैं, जिसकी सफाई के लिए करीब 1300 सफाई कर्मी हैं। इसके अलावा वेस्ट कलेक्शन के लिए ट्रैक्टर, टाटा एस, डीजल आदि संसाधनों में भी करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। इन सबका परिणाम भी कुछ ज्यादा खास नहीं है। कहीं नाली की सफाई नहीं हो रही है तो कहीं सड़क पर कचरा पसरा है। नाली जाम रहने से गंदा पानी सड़क पर बह रहा है। लेकिन इसे देखने वाला कोई नहीं है।

पार्षद नहीं होने से असर

रांची नगर निगम में जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल खत्म हो चुका है। बीते साल अप्रैल महीने में ही पार्षद, मेयर और डिप्टी मेयर का टर्म खत्म हो चुका है। चुनाव नहीं होने से इनका चयन भी नहीं हो सका है। इसका साइड इफेक्ट भी नगर निगम के विभिन्न कामों में दिख रहा है। गली-मोहल्लों की समय से सफाई नहीं हो रही है। न कचरा उठ रहा है और न ही नाले की सफाई हो रही है। सिटी में जगह-जगह कूड़े-कचरे का ढेर नजर आता है। पार्षद अपने-अपने क्षेत्र में सफाई कर्मियों को भेजकर गंदगी की सफाई करवाते थे। लेकिन अब पार्षदों के कार्यकाल खत्म होने से उन्होंने भी ध्यान देना बंद कर दिया है। नगर आयुक्त ने सुपरवाइजर को यह जिम्मेवारी सौंपी है, लेकिन वे भी इस ओर ध्यान नहीं देते। समय पर सफाई न होना, अधूरे प्रोजेक्ट का पूरा न होना ही स्वच्छता सर्वेक्षण रांची को नुकसान पहुंचा रहा है।

वेस्ट डिस्पोजल की व्यवस्था नहीं

बीते 14 सालों में रांची नगर निगम वेस्ट डिस्पोजल का स्थायी समाधान नहीं कर सका है। कूड़े के निष्पादन के लिए साल 2010-11 में ए टू जेड कंपनी को काम दिया गया, लेकिन कुछ समय बाद उसे हटा दिया गया। फिर 2014-15 में एस्सेल इंफ्रा नामक कंपनी को काम सौंपा गया, लेकिन कुछ समय बाद ही कंपनी ने काम छोड़ दिया। फिर सीडीसी नामक कंपनी को जिम्मा सौंपा गया। कंपनी एक साल बाद निकल गई। वर्तमान में गेल नामक कंपनी को निष्पादन का काम दिया गया है। यह कंपनी भी अपने काम पर खरा नहीं उतरी है। जिस काम को पिछले साल तक पूरा हो जाना था, वह अब भी अधूरा पड़ा है। लेकिन अधिकारी सिर्फ अपनी कमियों को छिपाने में लगे हैं।