RANCHI: झारखंड पुलिस का भरोसा अंधविश्वास और टोटकों पर टिका है। हालात इतने गंभीर हैं कि शुभ-अशुभ के चक्कर में पड़े राज्य पुलिस की एक विंग में 13 नम्बर की बटालियन का गठन ही नहीं किया गया। इतना ही नहीं, राज्य के वरीय आईपीएस और नवनियुक्त जोनल डीआईजी को अपराध पर लगाम लगाने के लिए अपनी कुर्सी भी हिलानी-डुलानी पड़ी। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि पूरे स्टेट में डायन प्रथा, तंत्र-मंत्र और ऐसे ही कई मामलों की जांच करने वाले अधिकारी ही जब अंधविश्वास के फेर में फंसे रहेंगे, तो आम लोगों के बीच फैली इन कुप्रथाओं को खत्म करना कितना मुश्किल होगा। अधिकारियों से पूछने पर भी कोई विशेष कारण बताने के स्थान पर सभी पल्ला झाड़ते ही नजर आए।

एसटीएफ में असाल्ट ग्रुप 13 नदारद

नक्सलियों से लोहा लेने के लिए तैयार किए गए विशेष जवानों को स्पेशल टास्क फोर्स में रखा जाता है। इसमें करीब 40-45 जवानों की एक बटालियन (कंपनी)होती है। कुल 40 कंपनी हैं। इनके नाम एजी-1 से शुरू होकर एजी-41 तक हैं। 40 कंपनी और नंबर 41 तक की जानकारी हासिल करने पर पता चला कि एजी-13 नामक बटालियन बनाई ही नहीं गई है। गठन के समय ही एजी-13 को अशुभ नम्बर माना गया। इसलिए इस नाम से बटालियन नहीं तैयार की गई।

जोनल डीआईजी ने बदला कुर्सी का स्थान

हाल ही में कोयला क्षेत्र में नियुक्त हुए जोनल डीआईजी ने अपनी कुर्सी पुराने स्थान से हटाकर नए स्थान पर रखवाई। माना जा रहा कि उस दौरान जोन का अपराधग्राफ अचानक चढ़ने लगा। इसके बाद किसी शुभचिंतक की सलाह पर उन्होंने कुर्सी को वापस पुराने स्थान पर लाकर रख दिया। टोटका काम किया और अपराध पर ब्रेक लग गया।

स्टेशन डायरी व एफआईआर रजिस्टर

एक अंधविश्वास यह भी सामने आया कि अधिकतर थानों में स्टेशन डायरी और एफआईआर रजिस्टर को एक साथ नहीं रखा जाता, न तो उन्हें आपस में सटाया जाता है। इसे पूरी तरह अशुभ माना जाता है। थाने के एक मुंशी ने बताया कि यही प्रथा है जो पता नहीं कबसे चली आ रही है।

नए रंगरुटों को यूडी केस

पुलिस में बहाल होने वाले नए रंगरुटों को सबसे पहले यूडी केस की छानबीन का जिम्मा मिलता है। माना जाता है कि इस तरह के केस अशुभ होते हैं। इसलिए सबसे पहले ऐसे केस की जांच नए लोगों से कराकर उनकी शुद्धि कराई जाती है।

वर्जन

एसटीएफ का गठन 10 साल पूर्व हुआ था। अब इस संबंध में अधिक जानकारी नहीं है कि क्यों उस टाइम से लेकर अभी तक 13 नम्बर की कंपनी नहीं बनाई गई। इसे इंडीविजुअल च्वाइस माना जा सकता है।

आशीष बत्रा, आईजी व पुलिस प्रवक्ता