रांची(ब्यूरो)। गुरुद्वारा श्री गुरुनानक सत्संग सभा द्वारा शहीदी सप्ताह के अंतर्गत आज तीसरे दिन विशेष दीवान सजाया गया और तीन दिवसीय कीर्तन समागम संपन्न हुआ। गुरुद्वारा श्री गुरु नानक सत्संग सभा कृष्णा नगर कॉलोनी द्वारा शहीदी सप्ताह के मौके पर आयोजित तीन दिवसीय कीर्तन समागम के अंतिम दिन आज गुरुवार को रात 8 बजे से विशेष दीवान सजाया गया। विशेष दीवान की शुरुआत स्त्री सत्संग सभा की शीतल मुंजाल द्वारा तुझ बिन अवर ना जांड़ा कोईशबद गायन से हुई। हजूरी रागी जत्था भाई महिपाल सिंह जी एवं साथियों द्वारा गुरु मेरा ज्ञान, गुरु मेरा ध्यान, गुरु गोपाल, पूरण भगवानशबद गायन किया गया। विशेष रूप से पधारे सिख पंथ के महान कीर्तनी जत्था भाई गुरबक्श सिंह जी शांत ने रात गुरु बिन जीवन अलख अंधेरो, सर्व पूज्य शरण गुरु तेरो, इन पुत्रन के शीश पर वार दिये सूत चार चार मुये तो क्या हुआ जीवत कई हजारजैसे कई शबद गायन कर साध संगत को गुरुवाणी से जोड़ा।

गुरु का अटूट लंगर

सत्संग सभा के अध्यक्ष द्वारका दास मुंजाल एवं सचिव अर्जुन देव मिढा ने रागी जत्था भाई गुरबक्श सिंह जी शांत एवं साथियों को गुरुघर का सरोपा देकर नवाजा। श्री आनंद साहिब जी के पाठ, अरदास, हुकुम नामा एवं कढ़ाह प्रसाद वितरण के साथ दीवान की समाप्ति रात 11:30 बजे हुई। मंच संचालन मनीष मिढा ने किया। मौके पर सत्संग सभा द्वारा श्रद्धालुओं के लिए गुरु का अटूट लंगर भी चलाया गया। दीवान में सभा के प्रधान द्वारका दास मुंजाल, सुंदर दास मिढा, हरविंदर सिंह बेदी, अशोक गेरा, चरणजीत मुंजाल, जीवन मिढा, मोहन काठपाल, हरगोविंद सिंह, सुरेश मिढा, वेद प्रकाश मिढा, नरेश पपनेजा, अमरजीत गिरधर, लक्ष्मण दास मिढा, लक्ष्मण सरदाना, हरीश मिढा, लेखराज अरोड़ा, राजकुमार सुखीजा समेत अन्य श्रद्धालु शामिल हुए।

साहिबजादों की शहादत की कथा

चार साहिबजादों की शहादत के बारे में कथावचान करते हुए हेड ग्रंथी ज्ञानी जिवेंदर सिंह जी ने बताया कि 1704 में चमकौर की घड़ी में गुरु गोविंद सिंह के दो बड़े सुपुत्र बाबा अजीत सिंहजी, बाबा जुझार सिंहजी शहीद हुए। सरसा नदी पर जब गुरु गोबिंद सिंह जी परिवार से जुदा हो रहे थे, तो एक ओर जहां बड़े साहिबजादे गुरुजी के साथ चले गए, वहीं दूसरी ओर छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह, माता गुजरीजी के साथ रह गए थे। उनके साथ ना कोई सैनिक था और ना ही कोई उम्मीद थी जिसके सहारे वे परिवार से वापस मिल सकते। अचानक रास्ते में उन्हें गंगू मिल गया, जो किसी समय पर गुरु महल की सेवा करता था। गंगू ने उन्हें यह आश्वासन दिलाया कि वह उन्हें उनके परिवार से मिलाएगा और तब तक के लिए वे लोग उसके घर में रुक जाएं। माता गुजरी जी और साहिबजादे गंगू के घर चले तो गए लेकिन वे गंगू की असलियत से वाकिफ नहीं थे। गंगू ने लालच में आकर तुरंत वजीर खां को गोबिंद सिंह की माता और छोटे साहिबजादों के उसके यहां होने की खबर दे दी जिसके बदले में वजीर खां ने उसे सोने की मोहरें भेंट की।

साहिबजादों को जिंदा दीवार में चुनवाया

खबर मिलते ही वजीर खां के सैनिक माता गुजरी और 7 वर्ष की आयु के साहिबजादा जोरावर सिंह और 5 वर्ष की आयु के साहिबजादा फतेह सिंह को गिरफ्तार करने गंगू के घर पहुंच गए। उन्हें लाकर ठंडे बुर्ज में रखा गया और उस ठिठुरती ठंड से बचने के लिए कपड़े का एक टुकड़ा तक ना दिया। रात भर ठंड में ठिठुरने के बाद सुबह होते ही दोनों साहिबजादों को वजीर खां के सामने पेश किया गया, जहां भरी सभा में उन्हें इस्लाम धर्म कबूल करने को कहा गया। कहते हैं सभा में पहुंचते ही बिना किसी हिचकिचाहट के दोनों साहिबजादों ने जोर से जयकारा लगाया। जो बोले सो निहाल, सतश्री अकाल् यह देख सब दंग रह गए, वजीर खां की मौजूदगी में कोई ऐसा करने की हिम्मत भी नहीं कर सकता लेकिन गुरुजी की नन्हीं जिंदगियां ऐसा करते समय एक पल के लिए भी ना डरीं। सभा में मौजूद मुलाजिम ने साहिबजादों को वजीर खां के सामने सिर झुकाकर सलामी देने को कहा, लेकिन इस पर दोनों ने सिर ऊंचा करके जवाब दिया कि 'हम अकाल पुरख और अपने गुरु पिता के अलावा किसी के भी सामने सिर नहीं झुकाते। ऐसा करके हम अपने दादा की कुर्बानी को बर्बाद नहीं होने देंगे, यदि हमने किसी के सामने सिर झुकाया तो हम अपने दादा को क्या जवाब देंगे जिन्होंने धर्म के नाम पर सिर कलम करवाना सही समझा, लेकिन झुकना नहींÓ। वजीर खां ने दोनों साहिबजादों को काफी डराया, धमकाया और प्यार से भी इस्लाम कबूल करने के लिए राजी करना चाहा, लेकिन दोनों अपने निर्णय पर अटल रहे। आखिर में दोनों साहिबजादों को पंजाब के सरहद प्रांत में जिंदा दीवारों में चुनवाने का ऐलान किया गया। कहते हैं दोनों साहिबजादों को जब दीवार में चुनना आरंभ किया गया तब उन्होंने 'जपुजी साहिबÓ का पाठ करना शुरू कर दिया और दीवार पूरी होने के बाद अंदर से जयकारा लगाने की आवाज भी आई।