रांची(ब्यूरो)। पार्क एक ऐसी जगह होती है जहां लोग जाकर सुकून के पल बिताते हैं। पेरेंट््स अपने बच्चों को पार्क घुमाने ले जाते हैं। बड़े-बुजुर्ग मॉर्निंग और इवनिंग वाक करने पार्क जाते हैं। सोसायटी की महिलाएं टाइम स्पेंड करने पार्क जाती हैं। साथ ही सिटी के इमेज को बिल्डअप करने में भी पार्क का अहम योगदान होता है। लेकिन राजधानी में ऐसा नहीं है। सिटी में मनोरंजन के लिए कई पार्क हैं। कुछ पार्क नगर निगम के अधीन हैं तो कुछ की देखरेख का काम वन विभाग करता है। लेकिन सिटी में कुछ पार्क को छोड़ अधिकतर की स्थिति खराब है। छह पार्क तो पूरी तरह अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ चु़के हैं। अफसरों की लापरवाही से शहर से पार्क और ओपन स्पेस घटते जा रहे हैं। शहर में नगर निगम के 16 पार्क हैं। वहीं फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के भी कुछ पार्क हैं। आधा दर्जन पार्क का बदहाल हो चुका है। जंग लगकर झूले टूट गए हैं। फाउंटेन बंद हो चुका है। पार्क में बड़ी-बड़ी झाडिय़ां उग आई हैं। कुछ पार्क असामाजिक तत्वों का अड्डा बन चुका है। इन पार्कों को भी यदि व्यवस्थित कर दिया जाता तो लोगों के पास घूमने के लिए और भी ऑप्शन होते।

मेनटेनेंस बंद, पार्क बर्बाद

सिटी के 6 पार्क ऐसे हैं जो पूरी तरह से बर्बाद हो चुके हैं। लाखों रुपए खर्च कर इन पार्कों को सजाया-संवारा गया था। लेकिन मेनटेनेंस नहीं होने की वजह से इनकी दुर्गति हो गई। धुर्वा डैम पार्क, कांके डैम साइट पार्क, स्वामी विवेकानंद पार्क, जाकिर हुसैन पार्क, रोटरी पार्क, न्याय पथ पार्क आज बदहाल हालत में हैं। इसके अलावा कॉलोनियों में भी कई छोटे-छोटे पार्क हैं जो देखरेख के अभाव में बर्बाद हो चुके हैं। पार्कों की हालत दिनोंदिन और भी बिगड़ती जा रही है। देख-रेख के अभाव में पार्क में लंबी-लंबी झाडिय़ां निकल आई हैं। कुछ पार्को की हालत तो काफी ज्यादा बिगड़ चुकी है। इनमें ज्यादातर वैसे पार्क हैं, जो नगर निगम के अधीन हैं और जिसके संचालन का जिम्मा निजी व्यक्ति को दिया गया है।

नगर निगम के अधिकारी जिम्मेवार

नगर निगम के अधीन संचालित हो रहे पार्क में देखरेख की व्यवस्था सही नहीं है। जबकि वन विभाग जिन पार्क का संचालन कर रहा है, वहां साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखा जाता है। जैसे नीलांबर पितांबर आक्सीजन पार्क हो या सिदो-कान्हू पार्क। इन पार्क में लगातार मेनटेंनेंस के काम चल रहे हैं। वहीं नगर निगम द्वारा बनाए गए पार्क की हालत बदतर होती जा रही है। पार्क में बनाए गए ओपन जिम के उपकरण भी खराब होते जा रहे हैं। निगम की ओर से पार्क बना ऐसे ही छोड़ दिया जाता है। नगर निगम के अधिकारियों की ही देन है कि अच्छे-खासे पार्क बदहाली की भेंट चढ़ गए।

नए पार्क बनाने की तैयारी

पहले से खराब पड़े पार्क का संचालन नगर निगम शुरू नहीं करा पा रहा है। लेकिन नए पार्क बनाने की दिशा में काम जरूर शुरू कर दिया गया है। नए पार्क के लिए जमीन तलाशी जा रही है। कुछ स्थानों का चयन किया गया है। जहां पार्क का निर्माण कराया जाना है। लेकिन पहले से बंद पड़े पार्क जो हांफ रहे हैं इनका इलाज करना निगम जरूरी नहीं समझ रहा है। पार्क में सिर्फ करोड़ों रुपए ही खर्च नहीं किए गए बल्कि लंबे-चौड़े स्थान पर भी पार्क बने हुए हैं। जिस वजह से उस स्थान का उपयोग दूसरे कामों में भी नहीं हो पा रहा है।

कांके डैम पार्क

रॉक गार्डेन के समीप नगर निगम की ओर से कांके डैम पार्क बनाया गया है। यहां मेनटेनेंस का घोर अभाव है। इस पार्क में बडी संख्या में यूथ घूमने आते हैं। लेकिन बदबू के कारण लोग ज्यादा देर यहां टिक नहीं पाते। शुरुआत में इस पार्क की तस्वीर कुछ और थी, लोग इसकी सुदंरता की तारिफ करते थे। लेकिन आज देखरेख के अभाव के कारण पार्क बदहाली के कगार पर है।

स्वामी विवेकानंद पार्क

कोकर स्थित डिस्टिलरी पुल के समीप निर्मित स्वामी विवेकानंद पार्क लूट का जीता जागता उदाहरण है। इसके निर्माण में तीन करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। आज इसकी दुर्गति हो चुकी है। निगम अधिकारी और जन प्रतिनिधि की मिलीभगत से डिस्टिलरी पुल के समीप के स्थान को बर्बाद कर दिया गया। वर्तमान में यह पार्क असामाजिक तत्वों का पसंदीदा स्थान बना हुआ है।

जाकिर हुसैन पार्क

देश के तीसरे राष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन के नाम पर शहर के बीचो बीच पार्क निर्माण कराया गया था। बीते पांच साल से पार्क बंद पड़ा हुआ है। यहां की स्थिति काफी बिगड़ गई है। झूले तो कब के टूट चुके थे। अब पार्क की दीवार भी धंसने लगी है। दो साल पहले 75 लाख रुपए पार्क में खर्च किए गए। लेकिन फिर भी इसका संचालन शुरू नहीं हो सका। पार्क के समीप अब अवैध ऑटो वालों का कब्जा हो चुका है।