- एक सप्ताह में अपीलीय प्राधिकार में नियुक्ति करने का आदेश

- तब तक निगम के आदेश पर आगे की कोई कार्रवाई नहीं होगी

रांची: सेवा सदन व अपर बाजार के तीन सौ भवनों को झारखंड हाई कोर्ट से राहत मिली है। झारखंड हाई कोर्ट ने कहा कि जब तक अपीलीय प्राधिकार के रिक्त पदों पर नियुक्ति नहीं हो जाती है, तब तक रांची नगर निगम के उस आदेश पर आगे की कार्रवाई नहीं की जाएगी, जिसमें अपर बाजार के कई भवन को तोड़ने का आदेश दिया है। अदालत ने राज्य सरकार को एक सप्ताह में सक्षम अपीलीय प्राधिकार में रिक्त पदों पर नियुक्ति करने का आदेश दिया है। इस संबंध में नगर विकास सचिव ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि इस मामले में तत्काल सरकार स्तर से निर्णय लिया जाएगा।

याचिका पर सुनवाई

चीफ जस्टिस डा। रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की खंडपीठ चैंबर आफ कामर्स की ओर से दाखिल हस्तक्षेप याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि चैंबर आफ कामर्स एक संस्था है, उसे कानून और सरकार के कामों के बीच में अडंगा नहीं डालना चाहिए। यह संस्था केवल व्यवसायियों के बारे में ही सोच रही है। इनका सामाजिक दायित्व भी है। अपर बाजार में ट्रैफिक का परिचालन सही तरीके से हो यह भी देखना चाहिए। अदालत ने नगर निगम को इस तरह के मामलों की सुनवाई पूरे नियमानुसार करने के बाद आदेश पास करने को कहा। अदालत ने कहा कि सभी तथ्यों की पूरी जांच के बाद ही निगम को घर तोड़ने का आदेश देना चाहिए।

21 व्यावसायिक भवन

सुनवाई के दौरान कहा गया कि नगर आयुक्त ने हाई कोर्ट के आदेश का हवाला देकर अपर बाजार की 21 व्यावसायिक भवनों को तोड़ने का आदेश जारी किया है। जबकि 340 भवनों को नोटिस जारी कर सभी दस्तावेज मांगे गए हैं। अपर बाजार के कई भवन वर्ष 1974 से पहले के बने हैं। लेकिन नगर निगम वर्तमान कानून के तहत सुनवाई कर रही है। अदालत ने पूछा कि क्या 1974 में कोई नक्शा पास नहीं किया गया था। अदालत ने कहा कि निगम की ओर से पारित आदेश में कहा जा रहा है कि हाई कोर्ट ने भवनों को तोड़ने का निर्देश दिया है। ऐसा क्यों है। हाई कोर्ट ने भवन तोड़ने का आदेश नहीं दिया। निगम को हाई कोर्ट के आदेश की वैशाखी की जरूरत क्यों पड़ रही है। इस पर नगर विकास सचिव ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि आगे से ऐसा नहीं होगा। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री ने कुछ दिनों पहले पांच-पांच फीट जमीन दान में मांगी थी, ताकि ट्रैफिक व्यवस्था को सुधार जाए, लेकिन अभी तक कोई सामने नहीं आया है।

200 से अधिक नोटिस

चैंबर की ओर से पक्ष रखते हुए वरीय अधिवक्ता अनिल कुमार सिन्हा और सुमित गाड़ोदिया ने अदालत को बताया कि नगर निगम ने शहर के 200 से अधिक मकानों को नोटिस दिया गया है। इसके लिए सभी को 15 दिनों का समय दिया गया है। नगर निगम में अभी अपीलीय न्यायाधिकरण नहीं है। नियमों के अनुसार आयुक्त कोर्ट के बाद न्यायाधिकरण में अपील दाखिल की जाती है। लेकिन न्यायाधिकरण नहीं रहने के कारण लोग सीधे हाई कोर्ट आ रहे हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि जल्द अपीलीय न्यायाधिकरण का गठन होना चाहिए। न्यायाधिकरण के नहीं रहने से अनावश्यक रूप से हाई कोर्ट पर मुकदमों का बोझ बढ़ जाएगा।