रांची(ब्यूरो)। राज्य के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल रिम्स की अव्यवस्थाओं का आलम सुधरने का नाम नहीं ले रहा है। गेट के अंदर और बाहर दोनों तरफ अव्यवस्थाओं का हाल है। हॉस्पिटल के अंदर मरीजों को इलाज के दौरान तो झेलना पड़ता ही है। डिस्चार्ज होकर बाहर आने के बाद भी उनकी परेशानी खत्म नहीं होती। इन दिनों रिम्स में दरवाजे पर ही ऑटो वालों ने डेरा जमाना शुरू कर दिया है। मरीज और उनके परिजनों के बाहर आते ही गिद्ध की तरह उनकी ओर लपक लेते हैं। सिर्फ ऑटो ही नहीं, प्राइवेट एंबुलेंस चालक भी रिम्स के दरवाजे पर ही मरीज का इंतजार करते रहते हैं। मरीज और उनके परिजनों से अनाप-शनाप पैसे भी वसूलते हैं। इन दिनों 108 एंबुलेंस की सर्विस चरमराई हुई है, जिसका फायदा प्राइवेट एंबुलेंस और ऑटो चालक उठा रहे हैं। लोगों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए उनसे मनमाने पैसे लिये जा रहे हैं। इसपर कंट्रोल करने वाला कोई नहीं है।

परिजन के हाथ में स्लाइन

हजारीबाग से इलाज के लिए रिम्स आए मुकुंद साव और उनकी पत्नी को काफी समस्याएं झेलनी पड़ीं। मुकुंद को फीवर था, और स्लाईन भी चढ़ाया जा रहा था। रिम्स की हालत ऐसी है कि यहां स्लाईन चढ़ाने के लिए लगे खंबे युक्त स्टे्रचर की भारी कमी है। मुकुंद की पत्नी डेढ़ घंटे तक हाथ में स्लाईन की बोतल पकड़ी लाइन में खड़ी रही। मुकुंद को मेडिसीन में डॉक्टर से इलाज कराना था। लेकिन रिम्स की लचर व्यवस्था उसे ठीक करने के बजाय और बीमार बनाने के लिए काफी है। मुकुंद की पत्नी ने बताया कि उनके पति काफी कमजोर हो गए हैं। वे ठीक से चल भी नहीं पा रहे। रिम्स में स्ट्रेचर नहीं मिल रहा था। आधा घंटा लग गया स्टे्रचर ढूंढने में, मिला भी तो उसमें चादर तक नहीं बिछा हुआ था। न ही स्लाईन लटकाने के लिए खंभा। घर से लाए कंबल बिछा कर मरीज को लिटाया और स्लाइन की बोतल हाथ में पकड़ी रहीं।

मशीन खराब, नहीं हो रही जांच

रिम्स को एम्स बनाने का ख्वाब तो कई बार दिखाया गया है। लेकिन इस दिशा में कभी कोई काम नहीं हुआ। यहां एक समस्या हो तो कोई बात नहीं, लेकिन रिम्स में समस्याओं का अंबार है। जो मरीज यहां इलाज के लिए आते हैं उन्हें भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। राज्य के सबसे बड़े अस्पताल में मशीनों के खराब रहने की शिकायत अक्सर आती रहती है। फिर एक बार यहां एमआरआई की मशीन भी खराब पड़ी है, जिससे न सिर्फ एमआरआई संबधित जांच बल्कि अन्य टेस्ट भी प्रभावित हो रहे हैं। एमआरआई के अलावा आरएफटी, एलएफटी कराने वाले मरीजों को खासा मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। मशीन खराब होने के कारण मरीजों को मजबूरी में ज्यादा पैसे देकर बाहर से टेस्ट कराना पड़ रहा है।

बिचौलिये भी रहते हैं हावी

रिम्स में कुव्यवस्था के कारण ही यहां बिचौलिया हावी रहते हैं। कभी खून दिलाने तो कभी टेस्ट कराने में बिचौलियों की भूमिका सामने आती रही है। रिम्स में बिचौलियों की एंट्री पर रोक के कई बार आदेश जारी हुए, नियम बनाए गए, लेकिन सब धरे के धरे रह गए। आज भी यहां बिचौलियों का डेरा रहता है। वे अपने शिकार की तलाश मेें रिम्स के इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं। बेड दिलाने से लेकर मेडिसीन, ब्लड दिलवाने के नाम पर भी बिचौलिया मरीजों को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। प्रबंधन सिर्फ रिम्स की दीवारों पर बिचौलियों से सावधान का स्लोगन लिखवा कर काम की इतिश्री कर चुका है। कभी-कभी बिचौलियों की गिरफ्तारी होती है। लेकिन कुछ ही दिन में उसे छोड़ दिया जाता है।

नहीं रुक रही सामानों की चोरी

रिम्स में सामानों की चोरी भी एक बड़ी समस्या है। कभी किसी का मोबाइल फोन चोरी हो जाता है तो कोई और सामान। हर वार्ड से कुछ न कुछ सामान की चोरी की खबरें अक्सर आती रहती हैं। आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति ही यहां अपने इलाज की उम्मीद लेकर आता है। लेकिन रिम्स के चोर मरीज और उनके परिजनों के सामान और कैश पर हाथ साफ कर लेते हैं। रिम्स के सुरक्षाकर्मी मरीज और उनके परिजनों को सतर्क तो करते नजर आते हैं, लेकिन चोरों को पकडऩे की कोई कोशिश नहीं की जाती। सिर्फ मोबाइल फोन ही नहीं, बल्कि इस हॉस्पिटल से बाइक की भी चोरी हो चुकी है।