एक-एक दिन में सैकड़ों टॉयलेट का निर्माण भी कराया जा रहा है। लेकिन वर्तमान हालात को देखते हुए राजधानी को ओडीएफ बनाने में कम से कम 6 महीने और लगेंगे। मालूम हो कि राजधानी को ओडीएफ बनाने का डेडलाइन 15 सितंबर रखा गया है। ऐसे में अगले 12 दिनों में लक्ष्य के मुताबिक पांच हजार टॉयलेट बनाना अधिकारियों के लिए असंभव नजर आ रहा है। ऐसे में काम के दबाव में कई सिटी मैनेजर नौकरी छोड़ रहे हैं।

 

सिटी मैनेजर की बढ़ी जिम्मेदारी

रांची नगर निगम को बेहतर ढंग से संचालित करने के लिए सिटी मिशन मैनेजर और सिटी मैनेजरों की बहाली की गई थी। लेकिन, धीरे-धीरे इन सभी को कई और कामों की जिम्मेदारी सौंप दी गई है। अब उन्हें टॉयलेट बनाने से लेकर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बन रहे मकानों की भी मॉनिटरिंग करनी है। इतना ही नहीं सिटी मैनेजरों को आफिस के साथ ही मार्केट, बस स्टैंड, रेवेन्यू का भी काम दिया गया है। ऐसे में वे काम के बोझ तले दब गए है।

 

पैसे भी लिए, पर नहीं बनाया टॉयलेट

शहर में हजारों लोगों ने घरों में टॉयलेट बनाने के लिए आवेदन दिया था। प्राथमिकता के आधार पर लाभुकों का चयन कर उन्हें फ‌र्स्ट इंस्टॉलमेंट की राशि भी दे दी गई, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने टॉयलेट निर्माण नहीं कराया। अब ओडीएफ का जब प्रेशर बना तो निगम के अधिकारी फ‌र्स्ट इंस्टालमेंट लेने वालों को ढूंढ रहे है। वहीं नोटिस मिलने के बाद भी कई लाभुक टॉयलेट बनाने को लेकर गंभीर नहीं है। अब उनके खिलाफ एफआइआर करने की तैयारी की जा रही है।

 

बारिश ने रोका निर्माण का काम

टॉयलेट बनाने का काम बारिश की वजह से भी प्रभावित हुआ है। वहीं नदियों में पानी आ जाने की वजह से बालू भी नहीं मिल पाया। और जिस रेट बालू मिल रहा था उससे टॉयलेट का निर्माण करा पाना लोगों के लिए संभव नहीं था। इस वजह से टॉयलेट के निर्माण की रफ्तार धीमी हो गई।

 

कमीशन के चक्कर में अटका निर्माण

घर-घर में टॉयलेट बनाने के लिए सरकार की ओर 12 हजार रुपए दिए जा रहे है। जिसमें लोगों को दो इंस्टालमेंट में पैसे दिए जाते है। लेकिन कुछ पार्षदों और सुपरवाइजरों ने निर्माण कराने के लिए लाभुक से पैसे की भी डिमांड कर दी। ऐसे में लाभुक के सामने असमंजस की स्थिति भी बन गई कि 12 हजार में वे निर्माण कराएंगे या कमीशन देंगे। इस चक्कर में भी कई लोगों के टॉयलेट आधे में ही लटक गए।