RANCHI: स्टेट के सबसे बड़े हॉस्पिटल रिम्स मैनेजमेंट की लापरवाही वहां इलाज कराने वाले सैकड़ों मरीजों पर भारी पड़ रही है। जी हां, 180 रुपए में होने वाले इको टेस्ट के लिए मरीजों को बाहर में 900 से लेकर 1000 रुपए तक चुकाने पड़ रहे हैं। वहीं, यह सिर्फ इको मशीन का ही मामला नहीं है, बल्कि रेडियोथेरेपी से लेकर सीटी स्कैन के लिए भी मरीजों को बाहर में अपनी जेब कटवानी पड़ रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह रिम्स प्रबंधन की लापरवाही है, जिसके कारण लंबे समय से मशीनें खराब पड़ी हैं और मरीजों को बाहर में जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ रही है। जबकि प्रबंधन रिम्स को एम्स की तर्ज पर डेवलप करने की बातें करता है, जहां तमाम फैसिलिटीज एक ही छत के नीचे उपलब्ध कराने का दावा किया जाता है। लेकिन, सच्चाई क्या है, यह किसी से छुपा हुआ नहीं है। इतना होने के बावजूद रिम्स प्रबंधन मशीनों को दुरुस्त कराने की पहल करने को लेकर गंभीर होता नहीं दिख रहा है।

इको मशीन 6 माह से खराब

कार्डियोलॉजी की इको मशीन 6 महीने से खराब पड़ी है। यही वजह है कि रिम्स जाने के बाद भी मरीजों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। रिम्स में जहां इको के लिए सरकारी दर तय है। वहीं प्राइवेट में इसी टेस्ट के लिए पांच गुना ज्यादा चुकाने पड़ रहे हैं। उसमें भी लोगों का टेस्ट तत्काल नहीं किया जाता। दो से तीन दिन बाद मरीजों को वेटिंग मिल रही है, जिसका खामियाजा बाहर से आने वाले मरीज भुगत रहे हैं। उन्हें रहने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

डेली आते हैं 100 मरीज

इको टेस्ट के लिए 180 रुपए रिम्स में लगते हैं। लेकिन मशीन लंबे समय से खराब है, जिससे कि हर दिन 100 के करीब मरीजों को बाहर जाना पड़ रहा है। अब एक मरीज को 900-1000 रुपए बाहर चुकाने पड़ रहे हैं। ऐसे में मरीजों को हर दिन एक लाख रुपए प्राइवेट में चुकाने पड़ रहे हैं, जबकि रिम्स में यह टेस्ट 18 हजार रुपए में हो जाते।

रेडियोथेरेपी मशीन भी 5 माह से ठप

रिम्स में पांच महीने से रेडियोथेरेपी मशीन भी ठप पड़ी है। इस वजह से कैंसर के इलाज के लिए आने वाले मरीजों को दिक्कत हो रही है। कैंसर मरीजों को ऑपरेशन के बाद रेडिएशन की जरूरत पड़ती है। अब सर्जरी के बाद रेडिएशन के लिए हर दिन डेढ़ दर्जन लोग पहुंच रहे हैं, जिनकी रेडियोथेरेपी रिम्स में फ्री हो जाती थी। अब थेरेपी के लिए प्राइवेट सेंटर्स के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। वहीं रेडियोथेरेपी की पूरी ट्रीटमेंट के लिए काफी रुपए भी खर्च करने पड़ रहे हैं।

लिए हर दिन 18-20 मरीज

कैंसर के मरीजों को सर्जरी के बाद रेडियोथेरेपी की सलाह दी जाती है। रिम्स में यह सुविधा मरीजों के लिए फ्री है। जबकि मशीन खराब होने के कारण मरीजों को थेरेपी लेने के लिए 1.5-3 लाख तक खर्च करने पड़ रहे हैं, जिसका पूरा बोझ मरीजों की जेब पर पड़ रहा है।

सीटी स्कैन मशीन 2 साल से बंद

हॉस्पिटल में सीटी स्कैन मशीन दो साल से अधिक समय से बंद पड़ी है। 14 साल से अधिक पुरानी हो चुकी इस मशीन को चालू कराने में प्रबंधन ने इंटरेस्ट नहीं दिखाया। इसके बाद नई मशीन खरीदने को लेकर टेंडर निकाला गया। लेकिन विभाग और प्रबंधन के आपसी विवाद में टेंडर को कैंसिल करना पड़ा। वहीं लेटेस्ट मशीन खरीदने का बहाना बनाकर विभाग के पदाधिकारियों ने भी मशीन खरीदने में अड़ंगा लगा दिया। आज इसका खामियाजा इलाज को आने वाले ट्रामा के मरीज भुगत रहे हैं।

डेली 50-60 मरीज

सीटी स्कैन के लिए रिम्स में मिनिमम दर 850 रुपए है। इसके अलावा टेस्ट में और भी कैटेगरी है। जिसके लिए मैक्सीमम चार्ज 5 हजार रुपए तक है पर प्राइवेट में इसके लिए दो से तीन गुना तक अधिक चार्ज वसूला जाता है। ये बोझ भी मरीजों के परिजनों की जेब पर पड़ता है।

केस 1

सीमा शर्मा की उम्र 55 साल है। उन्हें डॉक्टर ने इसीजी कराने को कहा, ताकि पता लगाया जा सके कि हार्ट ठीक से काम कर रहा है या नहीं। रिम्स में टेस्ट नहीं हुआ तो उन्हें बाहर टेस्ट कराने को कहा गया और बताया गया कि 900 रुपए लगेंगे।

केस 2

सरयू प्रसाद (बदला हुआ नाम) कैंसर का इलाज कराने आए थे। उन्हें डॉक्टर ने सर्जरी के बाद रेडियोथेरेपी के लिए लिखा। मशीन खराब होने के कारण उन्हें प्राइवेट सेंटर में जाने को कहा गया। जहां पर एक सेशन का चार्ज 5 हजार रुपए से अधिक है। ऐसे में थेरेपी के लिए कितना खर्च होगा, यह नहीं बताया गया।

केस 3

एक्सीडेंट के बाद राखी देवी को इलाज के लिए लाया गया। रिम्स इमरजेंसी में ट्रीटमेंट के बाद सीटी स्कैन कराने को कहा। उन्हें सीटी स्कैन के लिए पीपीपी मोड पर काम कर रही प्राइवेट एजेंसी के सेंटर में ले जाया गया। जहां पर चार्ज तो देना पड़ा और हॉस्पिटल से बाहर ले जाने में दिक्कत भी हुई।