रांची(ब्यूरो)। राजधानी रांची में किस तरह पब्लिक प्रॉपर्टी की बर्बादी होती है। यह किसी छिपी हुई नहीं है। सुविधा देने के नाम पर भले लाखों-करोड़ों रुपए विभिन्न योजनाओं पर खर्च कर दिए जाते हैं। लेकिन इसकी न तो मॉनिटरिंग होती है और न ही मेनटेनेंस पर ही ध्यान दिया जाता है। सिटी की सड़कों में लगाए गए बोलार्ड भी इसी का एक उदाहरण है। सड़क को लेफ्ट फ्री बनाने के लिए कई जगह बोलार्ड तो लगा दिए गए हैं, लेकिन कभी इसका रखरखाव नहीं किया गया। आज स्थिति ऐसी है कि काफी कम स्थानों पर ही बोलार्ड बचे हैं। कहीं वाहनों की चपेट में आकर बोलार्ड टूट गए तो कहीं असामाजिक लोगों ने ही इसे उखाड़ कर फेंक दिया। जो कुछ बचे थे, उसे अलग-अलग कार्यक्रमों के नाम पर काट कर हटा दिया गया। इस तरह महज आठ से दस महीने पहले लगाए बोलार्ड अब बर्बाद हो चुके हैं। इधर अब एक बार फिर नगर निगम दूसरी तरह के बोलार्ड लगाने की तैयारी में जुट गया है।

ढाई करोड़ का बोलार्ड बर्बाद

सिटी के विभिन्न सड़कों पर करीब ढाई करोड़ रुपए खर्च कर बोलार्ड लगाए गए थे। कुछ जगह पर पार्किंग के लिए भी इसका इस्तेमाल किया गया था। लेकिन आज कम ही स्थानों पर ये बोलार्ड सुरक्षित बचे हैं। सैकड़ों की संख्या में बोलार्ड इधर-उधर फेंक दिए गए हैं। सिटी की ट्रैफिक व्यवस्था को सुगम बनाने के लिए बोलार्ड सिस्टम लागू किया गया था। लेकिन कुछ ही दिन में यह फेल हो गया। राजधानी के अलग-अलग चौक-चौराहों पर बोलार्ड यानी फाइबर के ट्रैफिक डिवाइडर लगाए गए थे। लेकिन प्रशासन का यह डिवाइडर महीने भर नहीं टिक सका।

रस्सी बांध कर चल रहा काम

सिटी के 12 चौराहों को लेफ्ट फ्री किया गया था। लेकिन अब सिर्फ दो या तीन जगह ही इसका पालन हो रहा है। लेफ्ट जाने के लिए जो बोलार्ड लगाए गए थे, उसके नहीं रहने से लोगों को परेशानी हो रही है। अब कुछ स्थानों पर फिर से पहले की तरह रस्सी की मदद से काम चलाया जा रहा है। बोलार्ड की क्वालिटी सही नहीं होने से वे ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाते। अच्छी क्वालिटी वाले प्लास्टिक डिवाइडर काफी दिन तक टिकते हैं। लालपुर चौक, हरमू रोड, बरियातू समेत अन्य स्थानों पर लगाए गए थे। सभी जगह से बोलार्ड एक लाइन से साफ हो गए हैं। इन्हें समेट कर या तो कहीं रख दिया गया है, या फिर फेंक दिया गया है। इससे पहले लोहे की बैरिकेडिंग लगाने का कान्सेप्ट था। जिससे हादसे होने की आशंका बनी रहती थी। इसे देखते हुए ही पीवीसी की बैरिकेडिंग की गई या यूं कहें कि बोलार्ड का कान्सेप्ट लाया गया।

गाड़ी चढ़ा देते हैं बोलार्ड पर

सामानों के खराब होने या फिर इसके बर्बाद होने के पीछे सिर्फ सिस्टम ही दोषी नहीं है। आम पब्लिक भी इसमें बड़ा भागीदार है। दरअसल प्लास्टिक की बैरिकेडिंग होने के कारण कई बार लोग इस पर गाड़ी चढ़ा कर पार हो जाते हैं। इससे बोलार्ड को काफी नुकसान होता है। बोलार्ड को सबसे ज्यादा नुकसान ऑटो चालक पहुंचाते हैं। वे जान बूझकर जैसे-तैसे गाड़ी चलाते हैं और दूसरे वाहन चालक को भी परेशानी में डालते हैं। सिटी में बीते एक साल में कई जगह तीन से चार बार प्लास्टिक के बोलार्ड लगाए गए। लेकिन हर बार इसकी बर्बादी ही हुई है। सिर्फ बोलार्ड ही नहीं ट्रैफिक सिग्नल, सड़क पर बनाए गए क्रासिंग, सीसीटीवी कैमरा आदि वे सभी चीज जिसे ट्रैफिक को सुगम करने के उद्देश्य से लगाया था, उन सभी सामानों की बर्बादी होने लगी है।