रांची (ब्यूरो)। सिटी में पानी की भारी किल्लत है। गर्मी के मौसम में हर घर में पानी की समस्या उत्पन्न हो जाती है। वहीं दूसरी ओर पानी का कारोबार करने वाले इस मौके का फायदा उठाकर मालामाल हो जाते हैं। ऐसी ही स्थिति इस बार भी नजर आ रही है। भले लोगों के घरों की बोरिंग सूख चुकी हो, लेकिन पानी का कारोबार करने वाले लोगों के लिए यह एक सुनहरा अवसर है। हर दिन सैकड़ों लीटर पानी बेचकर हजारों रुपए पानी विक्रेता कमा रहे हैं। दरअसल, पानी बेचने वाले धरती का सीना चिरकर पानी निकालते हंै। राजधानी रांची के गली-गली में बॉटलिंग प्लांट खुल गए हैं, जो 800 से 900 फीट बोरिंग कर पानी का भयादोहन कर रहे हैं। हैरानी की बात तो यह है कि बोरिंग के लिए पानी विक्रेता न तो कहीं से अनुमति लेते हैं और न ही नगर निगम से एनओसी। इससे भी ज्यादा मजेदार यह है कि जिम्मेवार विभाग जो पानी बचाने के बड़े-बड़े संदेश देते हैं, उनके अधिकारी भी अपनी आंख, कान और मुंह बंद किए हुए हैं।

सिटी में 318 बॉटलिंग प्लांट

रांची नगर निगम के 53 वार्डों में 318 बॉटलिंग प्लांट चल रहे हैं। यहां डीप बोरिंग करवाकर प्रतिदिन बॉटलिंग प्लांट संचालक धरती का सीना चीरकर लाखों लीटर पानी निकाल रहे हैं। फिर इसे जार में भर कर बेच देते हैं। 20 रुपए से लेकर 30 रुपए में एक जार बेचा जाता है। गर्मी में इसकी डिमांड बढ़ जाती है। एक दुकानदार एक दिन में न्यूनतम पांच से दस हजार लीटर पानी बेचता है। पानी बेचकर ये लोग लाखों रुपए कमा रहे हैं लेकिन नगर निगम या किसी विभाग को कोई टैक्स भी जमा नहीं करते, क्योंकि इसका कोई प्रावधान ही नहीं है। इसके चलते कई मोहल्लों में जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

धूल फांक रहा बॉयलाज

रांची का एक बड़ा इलाका ड्राई जोन में तब्दील हो रहा है। इन क्षेत्रों की 90 प्रतिशत बोरिंग फेल हो जाती है। नगर निगम की ओर से एक बार पहले निजी बॉटलिंग प्लांट (जार वाटर प्लांट) पर लगाम लगाने की सुगबुगाहट शुरू हुई लेकिन वह भी ठंडे बस्ते में चला गया।

साढ़े तीन लाख रुपए में प्लांट

जार या बॉटलिंग प्लांट लगाने के लिए संचालकों को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती। साढ़े तीन से चार लाख रुपए में प्लांट तैयार हो जाता है। इसके लिए ज्यादा स्पेस की भी जरूरत नहीं होती। प्लांट लगाने वाले एक एजेंट से बात करने पर उसने बताया कि निगम का कोई टेंशन नहीं है। सारा खेल अंदर से सेट हो जाता है। निगम के अधिकारी हमारे संपर्क में होते हैं। प्लांट के बारे में नगर निगम से कोई कुछ पूछने भी नहीं जाता।

नियमावली में ये बिंदु शामिल

-बॉटलिंग प्लांट सिर्फ खाली स्थान पर ही बनाना है।

-ड्राई जोन में प्लांट की अनुमति नहीं है।

-पानी की गुणवत्ता की जांच पीएचइडी के लैब से करानी होगी। लैब से रिपोर्ट सही आने के बाद ही लाइसेंस मिलेगा।

-प्लांट संचालक को अपने परिसर में रेन वाटर हार्वेस्टिंग का निर्माण कराना अनिवार्य है।

-फिल्टरेशन के दौरान निकले पानी के इस्तेमाल की भी व्यवस्था करनी होगी।

-प्लांट में वाटर मीटर लगाना है ताकि पता चले कि कितने पानी का इस्तेमाल इस व्यवसाय में हो रहा है। इसी हिसाब से नगर निगम हर साल शुल्क वसूलेगा।

-बोरिंग के व्यावसायिक इस्तेमाल करने की स्थिति में 4 और 6 इंच दोनों बोरिंग के लिए शुल्क के साथ नगर निगम से एनओसी लेना होगा।

-अनुमति लेने वाले को बीआईएस और एफएसएसआई प्रमाण पत्र लेना होगा। साथ ही उसे तय समय पर पानी के लैब टेस्ट की रिपोर्ट जमा करनी होगी।

संशोधन कर एक बार फिर नियमावली विभाग को भेजी गई है। जैसे ही सैंक्शन होता है उसे लागू कर दिया जाएगा। इस बार उम्मीद है कि नियम लागू कर दिया जाए। नियमावली बनने से नगर निगम को भी राजस्व की प्राप्ति होगी।

-संजीव विजयवर्गीय, डिप्टीमेयर, आरएमसी