रांची (ब्यूरो)। एचआरडीसी रांची यूनिवर्सिटी में 3 जून से चल रहे यूजीसी प्रायोजित फैकल्टी इंडक्शन प्रोग्राम में 19 जून को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की मैनेजर सोनम कटारुका ने इंडियन इकोनामी एंड सोसाइटी: रिलेशनशिप एंड इंपैक्ट ऑफ इंडियन इकोनामी ऑन सोसाइटी विषय पर व्याख्यान दिया। बताया कि सर्वाधिक तेज विकास दर के बावजूद विश्व के अन्य कई देशों की तरह ही भारत की अर्थव्यवस्था भी कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रही है। कृषिगत, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की चिंताजनक स्थिति, रोजगार सृजन की चुनौतियां और कई आर्थिक क्षेत्रों में कमजोर प्रदर्शन भारत की मुख्य समस्याएं हैं। आर्थिक वृद्धि की राह पर तेजी से आगे बढ़ते भारत के कदमों को कई बार ये तीनों ही चुनौतियां एक साथ या बारी-बारी से जकड़ लेती हैं। विकास की गति बनाए रखने के लिए प्रचलित तरीकों में बदलाव लाते हुए एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण करने की जरूरत है जो इन्हें एक-दूसरे के प्रति उत्तरदायी बना सके।

बाजार ने मनुष्य को भी बनाया उत्पाद

पंकज मित्र, प्रोग्राम एग्जीक्यूटिव एट ऑल इंडिया रेडियो ने भूमंडलीकरण व बाजारवादी संस्कृति के बीच मानवीय संवेदना का विकास विषय पर व्याख्यान दिया। भूमंडलीकरण और उदारीकरण ने जिस मुक्त बाजार की परिकल्पना को हमारे सामने रखा वह मुक्त बाजार अपने साथ उपभोक्तावादी संस्कृति को बाईप्रोडक्ट के रूप में लेकर आया। आज का बाजार वैसा नहीं जहां बुनियादी जरूरत की चीजें मिला करती थीं। पहले बाजार किसी भी समाज का आवश्यक अंग हुआ करता था लेकिन आज पूरा विश्व ही एक बाजार की शक्ल लेता दिख रहा है। सच भी यही है कि बाजार की इस सभ्यता ने मनुष्य को भी एक उत्पाद के रूप में बदल दिया है।

डिजाइन योर लाइफ

बीआईटी मेसरा, रांची में प्राध्यापक डॉ नीरज कुमार सिंह ने हिंदी कविताओं के माध्यम से संवेदनात्मक विकास पर प्रकाश डाला। सुतापा नंदी अंतरराष्ट्रीय मोटिवेशनल स्पीकर हैं ने डिजाइन योर लाइफ विषय पर व्याख्यान दिया । जीवन को सुंदर बनाने की जरूरत ही नहीं है यह तो पहले से ही सुंदर है। बस हमारी दृष्टि उस सुंदरता को देख नहीं पा रही है। आधुनिक जीवन के तरीकों ने जिसमें की उपभोक्तावाद द्वारा मनुष्यता पर बहुत नकारात्मक प्रभाव डाले हैं, अपूर्णता के इस भावना को और गहरा कर दिया है। साथ ही यह विश्वास भी दिलाया है कि इस अपूर्णता को पूर्ण करने के लिए आपको अधिक धन कमाना होगा अधिक भौतिक वस्तुओं का अर्जन करना होगा। इन बातों ने हमारे मन को चारों ओर से इस तरह से घेर लिया है कि हम दूसरी दिशा में सोचने के लिए अधिक समय नहीं निकाल सकते।