भारत का मानवरहित चंद्रयान दुनिया के सामने चाँद पर पानी की मौजूदगी के पुख़्ता सबूत लेकर आया था. इसरो की सबसे बड़ी परियोजना चंद्रयान थी. इसरो के वैज्ञानिक बुलंद हौसले के साथ मंगल मिशन की तैयारी में जुट गए. लेकिन मंगल की यात्रा के लिए रवानगी और चाँद की यात्रा में ज़मीन आसमान का अंतर है.

चंद्रयान को अपने मिशन तक पहुंचने के लिए सिर्फ़ चार लाख किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ी जबकि मंगलयान को चालीस करोड़ किलोमीटर की दूरी तय करनी है.  मंगल मिशन के ज़रिए भारत वास्तविकता में गहरे अंतरिक्ष में क़दम बढ़ाने की शुरुआत कर रहा है.

इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन कहते हैं, "जब हम मंगल की बात करते हैं तो मंगल पर जीवन संभव है या नहीं इस बारे में खोज करना चाहते हैं, इसके साथ साथ हम यह भी जानना चाहेंगे कि मंगल पर मीथेन है या नहीं और अगर मीथेन है तो यह जैविक है या भूगर्भीय. हम मंगल पर कैसा वातावरण है, इसकी भी खोज करेंगे."

रॉकेट भेजने की तकनीक का अभाव

"जब हम मंगल की बात करते हैं तो मंगल पर जीवन संभव है या नहीं इस बारे में खोज करना चाहते हैं, इसके साथ साथ हम यह भी जानना चाहेंगे कि मंगल पर मीथेन है या नहीं और अगर मीथेन है तो यह जैविक है या भूगर्भीय. हम मंगल पर कैसा वातावरण है, इसकी भी खोज करेंगे."

-के. राधाकृष्णन, इसरो के अध्यक्ष

भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस बात की है कि उसके पास गहरे अंतरिक्ष में रॉकेट भेजने की तकनीक नहीं है. यदि सामान्य रूप से मंगल पर पहुंचना हो तो इसके लिए हमें तीन चरणों वाले प्रक्षेपण रॉकेट चाहिए जैसा कि जीएसएलवी है. लेकिन अभी इसरो का जीएसएलवी पूरी तरह से तैयार नहीं है. इसलिए भारत का मंगल मिशन पीएसएलवी के जरिए ही लांच हो रहा है, जिसमें सिर्फ़ एक इंजन वाला रॉकेट होता है.

इसमें रॉकेट का एक इंजन ब्लास्ट होकर उपग्रह को धरती की कक्षा में पहुंचाता है. लेकिन जैसे ही यह उपग्रह पृथ्वी की दीर्घवृत्ताकार ट्रांसफ़र ऑर्बिट में पहुंचता है, इसे गति देने के लिए एक और इंजन को ब्लास्ट करना होता है वर्ना उपग्रह वापस धरती की कक्षा में गुरुत्वाकर्षण की वजह से आ जाएगा.

इसके बाद फिर यही प्रक्रिया ट्रांसफ़र ऑर्बिट से मंगल की कक्षा में प्रवेश के लिए होती है. लेकिन ट्रांसफ़र ऑर्बिट से मंगल की कक्षा में पहुंचने के लिए सिर्फ़ एक इंजन की ज़रूरत होती है. इसलिए भारत अपने पीएसएलवी से इस यान को प्रक्षेपित करेगा.

विज्ञान पत्रकार पल्लव बागला कहते हैं, "हिंदुस्तान का जो  मंगलयान सेटेलाइट है, वह हिंदुस्तान अपने पोलर सेटेलाइट लांच व्हीकल से ही भेज रहा है. हिंदुस्तान का वह छोटा रॉकेट है. अगर बस चलता तो हिंदुस्तान अपने बड़े रॉकेट जीएसएलवी से ही भेजता. लेकिन 2010 में दो असफलताओं के कारण वह उपलब्ध नहीं है"

वो बताते हैं कि "पहले हिंदुस्तान पीएसएलवी द्वारा इस यान को धरती की कक्षा में भेजेगा. फिर यह मंगलयान धरती की कक्षा में एक महीने तक रहेगा. इसमें एक-एक करके इसके अंदर का जो अपना रॉकेट है, उसका विस्फ़ोट करके इसकी तीव्रता या विलॉसिटी बढ़ाई जाएगी."

भारत मंगल पर जाने के लिए बिल्कुल अलग तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है. आमतौर पर देश एक झटके में रॉकेट छोड़ते हैं और वो एक छलांग से सीधा मार्स की ओर चले जाते हैं. आसान खेल नहीं है, बहुत मुश्किल है, रास्ता जटिल है, हिंदुस्तान पहली बार जा रहा है, कितना कारगर होगा? क्या सोलर विंड इसको धक्का देकर अपने रास्ते से बाहर कर देंगी? रास्ते में क्या-क्या अड़चने आएंगी? उसकी तैयारी की है.

पृथ्वी की कक्षा से निकलने का समय

बहुत कठिन है डगर मंगल की

सबसे बड़ी चुनौती यह है कि मंगलयान को 30 नवंबर से पहले पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलना होगा. इसमें कोई देरी नहीं होनी चाहिए वर्ना यह अपने मिशन में सफल नहीं हो पाएगा. दरअसल इस दौरान मंगल की दूरी पृथ्वी से सबसे कम होती है, जिससे उपग्रह को कम ऊर्जा ख़र्च करके मंगल की कक्षा में भेजना आसान होता है.

यह स्थिति 26 महीनों में एक बार बनती है. इसका मतलब यह हुआ कि यदि 30 नवंबर से पहले ट्रांसफ़र ऑर्बिट में यान नहीं पहुंचा तो इस स्थिति के दोबारा बनने के लिए 26 महीनों का इंतज़ार करना होगा.

राधाकृष्णन कहते हैं, "मंगलयान को नवंबर के पहले सप्ताह में भारत के पूर्वी तट पर श्री हरिकोटा से लांच किया जाएगा. इस यान को शक्तिशाली पीएसएलवी एकस्ट्रा लार्ज प्रक्षेपण यान से भेजा जाएगा. इस मिशन की कुल लागत 450 करोड़ रुपए है. मंगल पर जीवन की संभावना के अस्तित्व का पता लगाने के लिए भेजा जाने वाला यह यान नवंबर 2013 से सितंबर 2014 तक अपने मिशन को पूरा करेगा."

नवंबर में लांच होने के बाद यह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हो जाएगा और इसके बाद इसके छह इंजन इससे अलग होकर इसे वहां से दो लाख पंद्रह हज़ार किलोमीटर के दूरतम बिंदु पर स्थापित कर देंगे. जहां यह लगभग 25 दिनों तक रहेगा. फिर एक अंतिम तौर पर मंगलयान को 30 नवंबर को अंतरग्रहीय प्रक्षेप वक्र में भेज दिया जाएगा.

उपग्रह को मंगल की कक्षा में जाने के लिए पहले पृथ्वी की कक्षा पार करनी होगी. इसके बाद यह एक दीर्घवृत्ताकार ट्रांसफ़र ऑर्बिट से गुज़रने के बाद मंगल की कक्षा में पहुंच जाएगा.

मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश

मंगल अभियान में चुनौतियां

साल 1960 से अब तक 45 मंगल अभियान शुरु किए जा चुके हैं. इनमें से एक तिहाई असफल रहे हैं. अब तक कोई भी देश अपने पहले प्रयास में सफल नहीं हुआ है.

सामान्य तौर पर भारत को तीन चरणों वाला जीएएलवी जैसा प्रक्षेपण यान चाहिए. लेकिन इसकी ग़ैरमौजूदगी में पीएसएलवी का इस्तेमाल मंगल मिशन पर उपग्रह को भेजने के लिए किया जा रहा है.

मंगलयान को पृथ्वी की कक्षा से 30 नवंबर के पहले निकलना होगा. इसमें अगर देरी होती है तो अनुकूल स्थिति के लिए 26 महीने का लंबा इंतज़ार करना पड़ेगा.

मंगलयान के मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश की प्रक्रिया सही से संपन्न करना जरूरी है ताकि यान मंगल ग्रह की कक्षा में स्थापित हो जाय. ऐसा न होने पर मंगल मिशन फ्लाई बाय मिशन बन जाएगा.

इसरो ने बंगलौर के डीप स्पेस नेटवर्क बनाया है. जहां से भेजे गई कमांड को उपग्रह तक पहुंचने में 20 मिनट लगेंगे और कमांड का असर जानने में और बीस मिनट लगेंगे. यह समय भी एक अभियान की एक चुनौती है.

अभी तक किसी भी देश ने पहले मंगल अभियान में सफलता नहीं पाई है. भारत का यह पहला प्रयास है. इसके साथ ही भारत अलग तकनीक से मंगलयान को मंगल की कक्षा में विभिन्न चरणों में पहुंचा रहा है. इस कारण भी चुनौती ज़्यादा है.

पल्लव बागला कहते हैं, "मंगल पृथ्वी से 200 से 400 मिलियन किलोमीटर दूर होता है क्योंकि उसकी कक्षा अंडाकार है. इसको पूरा करने में मंगल यान को नौ महीने का समय लगेगा. लेकिन नौ महीने बाद जब यह मंगल ग्रह के पास पहुंचेगा तब इसे सेटेलाइट में मौजूद छोटे रॉकेट से दुबारा फायर किया जाएगा और इस मंगल यान को धीमा किया जाएगा, नहीं तो मंगलयान मंगल ग्रह के साथ फ्लाई बाय मिशन बन जाएगा"

उन्होंने कहा, "उसको धीमा करके ऐसा किया जाएगा कि मंगल ग्रह उसको अपने गुरुत्वाकर्षण में कैच कर ले, जैसे लपक कर कैच ले लिया जाता है, वैसे ही मंगल ग्रह उसको लपककर कैच कर लेगा. उसके बाद यह यान मंगलग्रह के चारो और घूमता रहेगा."

मंगलयान को अपने मुक़ाम तक पहुंचने के लिए क़रीब तीन सौ दिन का समय लगेगा. यदि पाँच नवंबर को मंगलयान रवाना होता है तो अगस्त के अंत तक वहां पहुंच पाएगा. इसमें भेजे गए पाँच खोजी उपकरणों के सॉफ्टवेयर इस तरह से सेट किए गए हैं कि वे तीन सौ दिन बाद ही सक्रिय होंगे और आँकड़े देना शुरू करेंगे.

यह उपग्रह मंगल ग्रह के 80 हज़ार किलोमीटर के दायरे में चक्कर काटेगा. भारत के इस मंगलयान में पाँच ख़ास उपकरण मौजूद हैं. इसमें मंगल के बेहद संवेदनशील वातावरण में जीवन की निशानी मीथेन गैस का पता लगाने वाले सेंसर, एक रंगीन कैमरा और मंगल की धरती पर खनिज संपदा का पता लगाने वाले उपकरण मौजूद हैं.

उन्होंने बताया कि "श्रीहरिकोटा से छोड़े जाने के बाद यह एक महीने तक धरती की कक्षा में रहेगा. फिर नौ महीने का सफ़र मंगल ग्रह तक और उसके बाद छह महीने काम करेगा मंगलग्रह पर. वहां पर यह साइंटिफिक डेटा इकट्ठा करेगा."

सिग्नल मिलने की चुनौतियां

इसरो ने इस यान पर नियंत्रण के लिए बंगलौर के पास डीप स्पेस नेटवर्क स्टेशन बनाया है, जहां से इस यान पर नियंत्रण रखा जाएगा और आँकड़े हासिल किए जाएंगे. लेकिन चुनौती यहीं ख़त्म नहीं होती. यदि उपग्रह को बंगलौर से कोई कमांड दिया जाए तो उसे उपग्रह तक पहुंचने में 20 मिनट का वक़्त लगेगा. उसका असर क्या हुआ, यह पता चलने में 20 मिनट और लगेंगे. इस तरह चालीस मिनट बाद पता चलेगा कि कमांड सही थी या नहीं.

राधाकृष्णनन बताते हैं, "मंगल की कक्षा में पहुंचने के बाद यह आँकड़े भेजना शुरू कर देगा. किसी भी तरह के आँकड़ों को मंगल की कक्षा से पृथ्वी की कक्षा तक आने में सिर्फ़ चार से 20 मिनट लगेंगे."

भारत मंगल अभियान को अपने प्रतिद्वंदी चीन को लाल ग्रह तक पहुंचने की दौड़ में पीछे छोड़ देने के अवसर के रूप में इसे देखता है. ख़ासकर तब जब मंगल जाने वाला पहला चीनी उपग्रह राइडिंग ऑन ए रशियन मिशन 2011 के नवंबर में असफल हो गया था. जापान का 1998 में एक ऐसा ही प्रयास विफल रहा था. चीन ने अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत को लगभग हर तरीके से पछाड़ रखा है.

चीन के पास ऐसा रॉकेट है जो भारत के रॉकेट के मुक़ाबले चार गुना ज़्यादा वज़न उठा सकता है. इसी तरह साल 2003 में चीन अपना मानवयुक्त अंतरिक्ष यान सफलतापूर्वक लांच कर चुका है जो भारत के लिए अभी तक अछूता है. साल 2008 में चीन ने अपना पहला चंद्र अभियान शुरू किया था. इस मामले में वह भारत से कहीं आगे है. सवाल यह है कि कहीं भारत का मंगल अभियान एशियाई देशों के बीच एक नई होड़ तो पैदा नहीं कर देगा?

भारत का पहला प्रयास

बहुत कठिन है डगर मंगल की

पल्लव बागला बताते हैं कि "यह हिंदुस्तान की एक पुरानी क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा है अपने पड़ोसी देश चीन से. चीन का मंगल के लिए जो पहला मिशन था, 2011 में फेल हुआ था. वो रूस के साथ साझे में जा रहे था. यहाँ पर भारत को चीन से आगे निकलने का एक एक अवसर दिखा, अगर चीन से भारत मंगल जाने में आगे निकल जाता है तो भारत के राष्ट्रीय गौरव के लिए यह बहुत बड़ा क़दम होगा. अगर मंगल यान मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंच जाता है तो भारत एशिया में मंगल तक पहुंचने वाला पहला देश होगा."

"नौ महीने बाद जब मंगलयान मंगल ग्रह के पास पहुंचेगा तब सेटेलाइट में लगे छोटे रॉकेट को दुबारा फायर किया जाएगा और इस मंगलयान को धीमा किया जाएगा, नहीं तो मंगल यान मंगल ग्रह के साथ फ्लाई बाय मिशन बन जाएगा."

-पल्लव बागला, विज्ञान की पत्रिका के संपादक

दुनिया में अमरीका, रूस और यूरोपियन स्पेस एजेंसी के बाद चौथे नंबर पर आ जाएगा हिंदुस्तान. यह एक बड़ा क़दम है. एशियन स्पेस रेस की बात हो रही है, मुझे दिखती है कहीं न कहीं हिंदुस्तान और चीन के बीच में एक होड़ लगी है पहले से एक रेस है मार्स पर जाने के लिए. यह एक मैराथन है, आगे यह मैराथन कौन जीतता है? किसका देश कितनी आगे उन्नति कर पाता है वो तो अपने देश का भविष्य बताएगा.

साल 1960 से अब तक 45 मंगल अभियान शुरु किए जा चुके हैं. इसमें से एक तिहाई असफल रहे हैं. अब तक कोई भी देश अपने पहले प्रयास में सफल नहीं हुआ है. हालांकि भारत का दावा है कि उसका मंगल अभियान पिछ्ली आधी सदी में ग्रहों से जुड़े सारे अभियानों में सबसे कम खर्चे वाला है. अगर भारत का मंगल मिशन कामयाब होता है तो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की यह एक बड़ी उपलब्धि होगी.

पल्लव बागला कहते हैं कि यह हिंदुस्तान ने पहले कभी नहीं किया है. लेकिन अगर आप कोशिश नहीं करेंगे तो कभी कामयाब ही नहीं होंगे.

मंगल हमेशा से लोगों को अपनी ओर खींचता रहा है. नासा का क्युरियोसिटी रोवर अभी भी उसकी सतह की पड़ताल कर रहा है. वहाँ से लगातार नए नमूने और नए आँकड़े मिल रहे हैं. कुछ लोग यहीं नहीं रुकना चाहते. यहां तक कि मंगल पर बस्ती बनाने के बारे में सोचा जा रहा है. 2022 में मंगल ग्रह की एक परियोजना का उद्देश्य वहां कॉलोनी बसाना है.

यह यात्रा केवल वहाँ जाने के लिए है. वापस आने के लिए नहीं. लेकिन मंगल पर सशरीर यात्रा पूरा करने का अभियान कब पूरा होगा, यह तो वक़्त ही बताएगा. जब तक मानव रहेगा, विज्ञान रहेगा, तब तक अंतरिक्ष को खोजने का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा, चलता रहेगा.

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