सलाहुद्दीन क़ादिर चौधरी के पिता फ़ैसल क़ादिर चौधरी, अयूब ख़ान के ज़माने में पाकिस्तान मुस्लिम लीग के स्पीकर थे और बहुत ही वरिष्ठ नेता थे. जब भी अयूब ख़ान मुल्क से बाहर जाते थे तो ये कार्यकारी प्रेसीडेंट होकर रावलपिंडी से चटगांव आते थे.

1971 में जब मुक्ति युद्ध शुरू हुआ, तो चौधरी साहब पाकिस्तान आर्मी के साथ थे और लिबरेशन वॉर के ख़िलाफ़ थे.

चौधरी साहब और इनके बेटे सलाहुद्दीन चौधरी साहब और बेटे यासुद्दीन चौधरी भी याहया ख़ान सैनिक सत्ता के साथ थे.

जो बंगाली आज़ादी चाहते थे या मुक्ति युद्ध में शामिल थे, उन्हें अग़वा करना, उन्हें प्रताड़ित करना और ख़ासकर जो हिंदू परिवार होते थे, उन्हें वह, उनके समर्थक अपने मकान में लाकर टॉर्चर करते थे.

सलाहुद्दीन अपने समर्थकों के साथ पाकिस्तान की फ़ौज को लेकर चटगांव के विभिन्न इलाक़ों में चुन-चुनकर अवामी लीग के सदस्यों और हिंदू परिवारों के लोगों को मारते थे.

उनके ख़िलाफ़ अदालत का ताज़ा फ़ैसला काफ़ी अहमियत रखता है क्योंकि यह फ़ैसला 42 साल बाद हुआ है. हालांकि इसकी प्रक्रिया पहले से चल रही थी.

सत्ता के क़रीब

जनवरी 1972 से लेकर अगस्त 1975 तक यह प्रक्रिया चली और 1975 के बाद रुक गई. शेख़ मुजीबुर्रहमान उन्हें अपने साथ ले गए थे और वे पाकिस्तानी सत्ता में आ गए.

उससे पहले सलाहुद्दीन मुस्लिम लीग में थे और जब जनरल इरशाद 1992 में प्रेसीडेंट बने तो वे इरशाद के साथ मिल गए उनके मंत्री भी बन गए, लेकिन जब इरशाद की सत्ता चली गई, तो वह बीएनपी में चले गए. यहां भी वह वरिष्ठ नेता हैं.

बीएनपी बुधवार को चटगांव में हड़ताल कर रही है. इससे पहले हमेशा जमात-ए-इस्लामी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुआ है. यह पहली बार है, जब बीएनपी के लीडर शामिल पाए गए हैं. बीएनपी चुनाव भी चाहती है, सत्ता में भी आना चाहती है.

इसके वरिष्ठ नेता सलाहुद्दीन को लेकर अभी चुप हैं और जब भी उनसे मीडिया वाले कुछ पूछते हैं तो वे कहते हैं हम आपको बाद में बताएंगे.

International News inextlive from World News Desk