कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। Kanwar Yatra 2023 : सावन के महीने में कावंड़ यात्रा का विशेष महत्व है। हर साल कांवड़ यात्रा का भव्य आयाेजन होता है। इस बार यह यात्रा 15 जुलाई को समाप्त होगी। कुछ जगहों पर इसे कांवर यात्रा भी कहा जाता है। भगवान शिव के भक्त इस यात्रा में बढ़चढ़ कर शामिल होते हैं। इस यात्रा में भाग लेने वालों को कांवरिया कहा जाता है। इस दाैरान शिव भक्त भगवा वस्त्र धारण करते हैं। इसके अलावा कांवड़ (एक बांस या डंडा जिसके दोनों छोर पर घड़े रखे हुए दो टोकरियां लटकी होती हैं) लेकर नंगे पैर पैदल चलकर गंगा जल भरने जाते हैं। गंगा स्नान करने के बाद भक्त अपने कंधों पर कांवड़ लेकर चलते हैं। इस जल को श्रावण मास में कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी तिथि की शिवरात्रि पर भगवान शिव को अर्पित करते हैं। इन चार प्रकार की कांवड़ यात्रा विशेष महत्व है।

सामान्य कावंड़ यात्रा
एक सामान्य कावंड़ यात्रा होती है। इसमें कांवड़िये जहां चाहें आराम कर सकते हैं। कुछ समय आराम के बाद फिर अपनी यात्रा फिर से शुरू कर सकते हैं। इस कांवड़ यात्रा में बड़ी संख्या में शिव भक्त शामिल होते हैं।

डाक कावंड़ यात्रा
डाक कांवड़ यात्रा में यात्रा शुरू होने से लेकर भगवान शिव के जलाभिषेक तक कावड़ियों का चलना जारी रहता है। जल चढ़ाने के बाद ही वे रुकते हैं। इसलिए ये जिस रास्ते से गुजरते हैं रास्ता खाली कर दिया जाता है।

खड़ी कावंड़ यात्रा
खड़ी कांवड़ यात्रा में कांवड़िये के साथ एक या दो लोग मदद के लिए जाते हैं। इस यात्रा में जब कावंड़िया आराम करता है तो उसके सहकर्मी उसकी कांवड़ को अपने कंधों पर रखकर चलने के अंदाज में हिलाते रहते हैं।


दांडी कावंड़ यात्रा
दांडी कावंड़ यात्रा काफी कठिन होती है। इसमें कांवड़िये नदी तट से शिवमंदिर तक दंड विधि से यानी कि लेटकर अपने शरीर से रास्ते की लंबाई मापकर यात्रा पूरी करते हैं। इसमें एक महीने तक का समय लग जाता है।

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