नाभि में बाण लगते ही रावण रथ से जमीन पर गिर पड़ा

भगवान श्री राम ने रावण के नाभि में बाण मारा तो रावण तड़पते हुए रथ से जमीन पर गिर पड़ा. उसके गिरते ही राक्षस सेना में हाहाकार मच गया और उन्होंने अपने अंतिम सेनापति व राजा के परास्त होते ही मैदान छोड़ दिया. अब युद्ध समाप्त हो चुका था. श्री राम सहित सब लोग रावण को मरणासन्न अवस्था में देखने पहुंचे. अचेत पड़े अंतिम सांसें गिन रहे रावण की ओर ईशारा करते हुए श्री राम ने लक्ष्मण से कहा, 'लक्ष्मण! रावण जैसे विद्वान इस धरती पर बहुत कम हैं, जाओ उससे शिक्षा ले लो.' बड़े भाई की आज्ञा पाकर न चाहते हुए भी लक्ष्मण जाकर रावण के सिर के पास खड़े होकर शिक्षा देने को कहा. रावण ने लक्ष्मण की ओर देखा भी नहीं.

शिक्षा मिलती है विनम्रता से, अधिकार से नहीं

कुछ देर इंताजार और अपने को अपमानित महसूस करने के बाद लक्ष्मण श्री राम के पास पहुंचे और बोले, 'भइया! मरणासन्न पड़ा है लेकिन इसका का अहंकार...' इससे पहले लक्ष्मण अपनी बात पूरी कर पाते श्री राम ने बीच में टोका, 'लक्ष्मण मेरे भाई! अहंकार रावण में नहीं तुममे है. विजयी होने का. रावण युद्ध हार चुका है. अब वह हमारा शत्रु नहीं है. तुम उससे कुछ लेने गए थे तो उसके पैरों के पास याचक की मुद्रा में खड़े होते लेकिन तुम तो सिर के पास आदेश वाली मुद्रा में खड़े थे. शिक्षा पाने के लिए अधिकार नहीं विनम्रता की जरूरत होती है.' लक्ष्मण बात समझ गए वे तुरंत रावण वहां से जाकर रावण के पैरों के पास खड़े होकर शिक्षा देने के लिए अनुरोध किया.

शुभस्य शीघ्रम

रावण ने लक्ष्मण की ओर देखा और लक्ष्मण को तीन उपदेश दिया. उसने लक्ष्मण से कहा, 'हां, अब तुम मेरे शिष्य बनने के योग्य हो. मैं तुम्हें तीन महत्वपूर्ण बातें बताता हूं. ध्यान से सुनो. पहला यह कि शुभ कार्य जितनी जल्दी हो सके शुरू कर देनी चाहिए. अशुभ कार्य को जितना टाला जा सके टालते रहना चाहिए. मैं परम ज्ञानी होने के बावजूद इस बात को नहीं समझ सका और प्रभु श्री राम की शरण में आने जैसा शुभ कार्य टालता रहा. और उनसे दूर होने वाले तमाम अशुभ कार्य करता रहा. ऐसे में मेरा पूरा कुल खानदान नष्ट हो गया. राजपाट सब चला गया. इसलिए लक्ष्मण शुभस्य शीघ्रम.'

प्रतिद्वंद्वी को कमजोर न समझो

लक्ष्मण की ओर मुखातिब रावण ने फिर कहा, 'अब दूसरी बात सुनो. अपने प्रतिद्वंद्वी को कभी भी कमजोर मत समझो. मैंने श्री राम और उनकी वानर सेना को बहुत कमजोर समझा. हर बार समुद्र पर सेतु बना तो मैंने उनका और उनकी वानर सेना का उपहास किया. ब्रह्मा से अमरत्व का वरदान मांगते समय भी मैंने कहा कि मानव और वानरों को छोड़कर कोई मेरा वध न कर सके. क्योंकि मैं मानव और वानरों को तुच्छ समझता था. यह बात मुझे तब भी समझ नहीं आई जब वानर राज बाली ने मुझे अपनी कांख में छह महीने तक दबा रखा था. उससे मैंने कोई सीख नहीं ली और अब श्री राम को भी तुच्छ ही समझता रहा कि वह तपस्वी मानव वानरों की सेना से मेरा क्या बिगाड़ लेगा. देख ही रहे हो, परिणाम तुम्हारे सामने है.'

राज को राज ही रहने दो

एक गहरी सांस लेने के बाद कुछ देर रुक कर रावण ने लक्ष्मण से कहा, 'यदि जीवन में तुम्हारा कोई राज हो तो उसे किसी को भी न बताओ. नाभि में अमृत की बात विभीषण जानता था. यह बात मैंने ही उसे बताई थी क्योंकि वह मेरा सबसे प्रिय भाई था. मैं सपने में भी नहीं सोच सकता था कि वह मेरे साथ ऐसा विश्वासघात करेगा. अपने सबसे प्रिय जन को जीवन का एक महत्वपूर्ण राज बताना मेरी सबसे बड़ी भूल थी. परिणाम तुम देख ही रहे हो. उसने शत्रु पक्ष के साथ मिलकर मेरा ही नहीं पूरे कुल का, राज्य का सर्वनाश कर दिया. मेरे अपने चले गए, बेटे और भाइयों सहित कुल का सर्वनाश हो गया. और अब मैं भी...'