Ahoi Ashtami Vrat 2020: संतान प्राप्ति व उसकी दीर्घायु के लिए कार्तिक माह में अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। अखंड सौभाग्य के व्रत करवा चौथ के बाद की अष्टमी के दिन अहोई माता का व्रत व पूजन किया जाता है। आइए जानें इस व्रत के इतिहास और महत्व के बारे में...


कानपुर (इंटरनेट-डेस्क)। Ahoi Ashtami Vrat 2020: कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी अहोई अष्टमी के रूप में धूमधाम से मनायी जाती है। इसे अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है। दृक पंचाग के मुताबिक इस बार अहोई अष्टमी 08 नवंबर को है। हिंदू शास्त्रों के मुताबिक अहोई अनहोनी शब्द का अपभ्रंश हैं। वहीं मां पार्वती हर प्रकार की अनहोनी को टालने वाली है। इसलिए अहोई अष्टमी के दिन उनकी पूजा होती है। इस व्रत व पूजन काफी महत्व होता है। महिलाएं संतान की लंबी आयु और खुशहाल जीवन की कामना से अहोई अष्टमी का व्रत पूजन करती हैं। मान्‍यता है कि जो नि:संतान महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत करती या अहोई अष्टमी का प्रसाद चखती हैं तो उनकी मनाेकामना पूरी होती है। अहोई माता हर मुराद को पूरी करती हैं। अहोई माता खुश होती
अहोई अष्टमी के दिन विभिन्‍न प्रकार के व्‍यंजन बनाए जाते हैं। इसके अलावा महिलाएं पूरा दिन महिलाएं निर्जल व्रत रखती हैं और शाम के समय विधिविधान से अहोई माता की पूजा करती हैं। अष्टमी के दिन गोधूलि की बेला में दीवार पर आठ कोनों वाली अहोई माता, स्याहू माता और उनके बच्चों के चित्र बनाकर विधिविधान से उनकी पूजा की जाती है। अष्टमी की पूजा में अहोई माता के चित्र वाला चांदी का लॉकेट का विशेष महत्‍व होता है। इसे पूजा के समय अहोई माता को पहनाया जाता है और इसके बाद खुद व्रती को पहनना होता है। वहीं पूजन के बाद चांद या फिर तारों के दर्शन करके प्रसाद ग्रहण कर व्रत पारण करती हैं। इसके अलावा बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेती हैं। इससे व्रत पूरा होता है और अहोई माता खुश होती हैं। प्रचलित है यह कथा


अहोई अष्टमी की क्षेत्रीय स्तर पर कई कथाएं प्रचलित है। इसमें एक कथा यह भी है। एक साहूकार सात बेटे, सात बहुएं और एक बेटी थी। दीपावली पर साफ-सफाई से पहले उनकी बेटी अपनी सभी भाभियों संग जंगल में मिट्टी लेने गई। इस दौरान मिट्टी खोदते समय उसकी खुरपी एक स्याहू (साही)के बच्‍चे को लग गई। इससे उसकी मौत हो गई। बच्‍चे की मौत से दुखी स्याहू माता ने नाराज होकर उसकी कोख बांधने की बात कही। इस पर ननद ने अपनी सभी भाभियों से कहा कि उसके बदले उनमें से कोई एक अपनी कोख बंधवा लें। इस पर सबसे छोटी भाभी ननद की जगह पर कोख बंधवाने को तैयार हो गई। ऐसे में स्याहू माता के श्राप से उसे जब भी बच्‍चे होते सात दिन बाद उनकी मौत हो जाती। इस तरह अपने सात बच्‍चों को खोकर वह काफी दुखी हुई। पंडितो से उपाय पूछा तो उन्‍होंने कहा कि सुरही गाय की सेवा करने से उसे लाभ होगा। इस पर वह दिन-रात सुरही गाय की सेवा करने लगी। एक दिन सुरही उस पर प्रसन्‍न होकर उसे स्याहू माता के पास ले जाती है। रास्‍ते में आराम करते समय साहूकार की बहू की नजर एक सांप पर पड़ती है। वह एक गरुण पंखनी के बच्‍चे को डसने के लिए तेजी से उसकी ओर बढ़ रहा था। इस पर बहू उस सांप को मार देती है, तभी वहां पर गरुण पंखनी आती है। वहां पर पड़ा खून देखकर उसे लगता है कि इस महिला ने उसके बच्‍चे को मार दिया। इस पर बहू के सिर पर चोचों से वार करने लगती है तभी छोटी बहू ने उसे कहा कि उसके बच्‍चे सुरक्षित हैं, उसने तो सांप से उनकी जान बचाई है। यह सुनकर गरुण पंखनी पछतावा करती है। हालांकि इसके बाद वह खुद उसे स्याहू माता के पास पहुंचा देती है। स्याहू माता बहू की सेवा से काफी खुश होती हैं उसे सात पुत्रों की मां होने का आशीर्वाद देती हैं। इसके बाद बहू की मनोकामना पूरी होती है।

Posted By: Shweta Mishra