तहलका के संस्थापक संपादक तरुण तेजपाल पर उनकी एक युवा महिला सहयोगी ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया. इसके बाद गोवा पुलिस ने तरुण तेजपाल के ख़िलाफ़ बलात्कार का मामला दर्ज करके जांच शुरु कर दी है.


तरुण तेजपाल फ़िलहाल गोवा पुलिस की हिरासत में हैं और उनसे पूछताछ का सिलसिला जारी है. आरोप लगते रहे हैं कि तेजपाल मामले में मीडिया ट्रायल भी शुरू हो गया.इस पूरे मामले पर तरुण तेजपाल की क़रीबी और जानी-मानी लेखिका अरुंधति रॉय ने बीबीसी संवाददाता संजॉय मजूमदार से ख़ास बातचीत की. उस बातचीत के अहम अंश-सवाल- आप तरूण तेजपाल को जानती हैं, तहलका से परिचित हैं. तरूण पर अपने ही सहकर्मी के यौन उत्पीड़न का आरोप के बारे में सुनने के बाद आपकी प्रतिक्रिया क्या रही?


अरुंधति रॉय- बहुत बड़ा झटका लगा. मेरे ख्याल से इस मामले में जिस तरह का मीडिया उन्माद दिखा रहा है, उससे किसी को भी ना तो सोचने की जगह मिली है और ना ही वक्त. हकीकत यही है कि तरुण के ख़िलाफ़ जो आरोप हैं, वो बेहद गंभीर अपराध के आरोप हैं. आपको उस युवा महिला की हिम्मत और साहस की तारीफ़ करनी होगी जिसने अपने साथ हुई घटना का विरोध किया और उसे सामने लेकर आई, अमूमन ऐसा नहीं होता है.

इसमें बारीकियां शामिल हैं- कुछ बातें बहुत अच्छी हैं तो कुछ बेहद कठोर भी हैं. कानून को विस्तार देने और सज़ा को सनक की हद तक बढ़ाने से कुछ हार्ई प्रोफ़ाइल मामलों में फांसी पर लटकाने की मांग करने वाली भीड़ सामने आ जाएगी, लेकिन इससे मूल समस्या का हल नहीं होगा.सवाल- आप उस ओर इशारा कर रही हैं कि कानून पूरी तरह से अपना काम नहीं करता?अरूंधति रॉय- कुछ हद तक. इस समस्या के हल का तरीका संस्थागत हो सकता है, वह क्रूर और अश्लील नहीं हो सकता. हर किसी को फ़ांसी की सजा नहीं दी जा सकती, हर किसी को उम्र कैद नहीं दी जा सकती और ना इस बात की इजाज़त दी जा सकती है कि लोगों की नजरें हर पल किसी का पीछा करती रहे. हमें अपनी प्रतिक्रिया को जांचने की ज़रूरत है, थोड़े संयम के साथ इस पर सोचने की जरूरत है.सवाल- आपको क्या लगता है कि पीड़िता को न्याय दिलाते हुए यह संभव है?अरुंधति रॉय- अगर हम इन व्यवस्थाओं को सही ढंग से लागू कर पाए तो पीड़िता को अपने फ़ैसले लेने में काफी मदद मिलेगी, मसलन वह अदालत का रास्ता चुने या कोई दूसरा रास्ता. समाज में व्यवस्थाएं मौजूद हैं, बस उन्हें कहीं ज्यादा सभ्य और तर्कसंगत बनाने की जरूरत है.

Posted By: Subhesh Sharma