Patna: लड़की भले ही अब भी सोसायटी में 'सर्वमान्य' नहीं है. इतने पढ़े-लिखे होने के बाद भी लोग अवेयर नहीं हुए हैं. अब भी घर की लक्ष्मी सिर्फ बोलने के लिए होती है. जब पैदा करने की बात आती है तो बेटा ही चाहिए.


पीहू से पिंकी को मिली 'स्माइल'पिंकी की शादी को 15 साल हो गए। बच्चा नहीं होने के कारण पिंकी बच्चे को एडॉप्ट करना चाह रही थी। उसने कई संस्था व एनजीओ से कांटैक्ट भी किया, पर हर जगह लड़का ही था। पिंकी को लड़की चाहिए। लड़की एडॉप्ट करने के लिए पिंकी ने 4 साल तक वेट किया। 10 अगस्त 2012 को एक डॉक्टर की हेल्प से पिंकी ने एक लड़की एडॉप्ट किया और कंकड़बाग की पिंकी आज अपनी एक साल की पीहू के साथ काफी खुश है। राधा ने आंगन को कर दिया 'मधुर'
माधुरी की शादी 9 साल पहले हुई थी। शादी के बाद ही डॉक्टर ने बता दिया था माधुरी कभी मां नहीं बन पाएगी। इसके बाद से ही वह एक बच्चे को एडॉप्ट करना चाह रही थी। इधर-उधर भटकने के बाद पीएमसीएच के थू्र माधुरी ने 22 सितंबर 2010 को एक बच्ची को एडॉप्ट किया। अपनी तीन साल की बिटिया राधा के साथ माधुरी आज हैप्पी-हैप्पी है। दर-दर भटकने के बाद भी नहीं मिल रही


जिनकी गोद सूनी है, वे अपनी गोद भरने के लिए लड़की को ढूंढ़ रहे हैं। अफसोस, जिन्हें लड़की चाहिए, उन्हें दर-दर भटकने के बाद भी लड़का ही मिल रहा है। गोद लेने वाले मैक्सिमम लोगों की पहली डिमांड लड़की ही होती है।बेटी तो बेटी होती हैऐसे भी लोग कहते हैं बेटी में मां का इमोशन होता है। आज भले ही ज्यादातर लोगों में लड़के की ही चाह हो, पर पेरेंट्स के प्रति जो इमोशन एक लड़की के दिल में होता है, वह लड़के को कभी नहीं हो सकता। शायद इसलिए पिंकी ने 10 सालों तक बेटी के लिए इंतजार किया। पिंकी कहती हैं कि मैं भी एक बेटी हूं और बेटी क्या होती है, उसे मैं अच्छी तरह समझती हूं और इसलिए मैंने बेटी को गोद लिया। अब वह एक साल की हो गई है। उन्होंने बताया कि जब वह बड़ी हो जाएगी, तो उससे कुछ भी नहीं छिपाउंगी। उसे पूरी सच्चाई पता होगी।अब बदल रहा है टे्रंडवेलफेयर डिपार्टमेंट के अंदर चल रहे चाइल्ड केयर सेंटर की संजू सिंह ने बताया कि अब लोग बेटी एडॉप्ट करने की बातें करते हैं। पहले तो लोगों को सिर्फ बेटा ही चाहिए था, पर लोगों की मेंटैलिटी चेंज हो रही है। हमलोग भी पेरेंट्स की काउंसिलिंग करते हैं, जिससे वो बेटी एडॉप्ट करें।छुपने-छुपाने वाली बात गई

पहले बच्चे एडॉप्ट करने वालों को सोसायटी में अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता था, जिस कारण लोग छुप-छुपकर बच्चा एडॉप्ट करते थे, पर अब सोच बदल गई है। महिला हेल्पलाइन की काउंसलर सरिता सजल ने बताया कि पहले एडॉप्शन पेरेंट्स छुप-छुप कर करते थे। इसकी जानकारी ना तो फैमिली मेंबर्स को होती थी और न ही किसी फ्रेंड्स को। पर, अब ऐसी बात नहीं है।hindi news from PATNA desk, inextlive

Posted By: Inextlive