National Mathematics Day: गणित में पिछड़ रहे बिहार के बच्चे
पटना (ब्यूरो)। आर्यभट्ट और दूसरे प्रतिष्ठित गणितज्ञों की भूमि बिहार में गणित की पढ़ाई पिछड़ती जा रही है। बिहार के सभी विश्वविद्यालय में गणित में स्नातक में नामांकन कराने वाले विद्यार्थियों की संख्या 14 हजार के आसपास है। स्नातकोत्तर में यह संख्या घट कर महज 600 से 700 के बीच सिमट जाती है। पीएचडी के लिए नामांकित होने वाले अभ्यर्थियों की संख्या बड़ी मुश्किल से दहाई में पहुंच पाती है। जहां तक स्कूली शिक्षा का सवाल है, हमारे राज्य के बच्चों की संख्या का अधिकतम की संख्या औसत ही है।
राष्ट्रीय परफार्मेंस में 12 फीसदी बच्चे ही मैथ में अच्छेनेशनल अचीवमेंट सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि कक्षा तीन, पांच, आठ, 10 और 12वीं में विशेष रूप से गणित में हमारे बच्चे औसत ही है। सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक क्लास तीन में बिहार के बच्चों का प्रदर्शन राष्ट्रीय परफॉर्मेंस 57 से कम 56 फीसदी है। इसमें औसत से कम प्रदर्शन करने वाले बच्चों की संख्या 25 फीसदी, औसत रहने वाले बच्चों का प्रतिशत 31 प्रतिशत है। इस तरह आधे से अधिक 56 फीसदी बचचे औसत है या औसत से नीचे गणितीय योग्यता रखते हैं, जबकि गणित में अच्छे या दक्ष बच्चों का प्रतिशत 31 और बहुत अच्छे विद्यार्थियों का प्रतिशत 12 ही है।
2017 की तुलना में 2023 की रिपोर्ट ठीक नहीं
वहीं 24 फीसदी बच्चे ही बेहतर या उससे भी अधिक दक्ष रहे। इसी तरह कक्षा आठ में औसत और औसत से भी कम बच्चों की संख्या 65 फीसदी रही। वहीं कक्षा दस में गणित में औसत या इससे कम क्षमता वाले विद्यार्थियों की संख्या 71 फीसदी रही.अगर हम पिछले नेशनल अचीवमेंट सर्वें 2017 की तुलना में 2023 की रिपोर्ट पर नजर डाले तो साफ है कि गणित सर्वें के लिए चयनित विद्यार्थियों की संख्या ही कम होती जा रही है। मैथ्स के प्रति गिरावट चिंता की बात नेशनल अचीवमेंट सर्वे 2017 में 500 बच्चों में 318 बच्चे सेलेक्ट हुए थे। वहीं 2022 के सर्वे में केवल 304 ही सेलेक्ट हो सके। जहां तक कक्षा पांच का सवाल है, गणित में हमारा प्रदर्शन नेशनल औसत 44 की तुलना में कुछ कम 43 फीसदी है। इस कक्षा में बिहार के बच्चों में 36 फीसद औसत से नीचे और 38 फीसदी औसत रहे। इस तरह 76 फीसदी बच्चे हमारे औसत या औसत से अधिक रहे।
यह सच है कि बोर्ड के बाद ग्रेजुएशन में काफी लैक देखने को मिलता है। क्योंकि 10वीं तक बच्चे गणित का कैलकुलेशन करना सीखते हैं लेकिन सबसे बड़ी कमी दिखती है मैथ्स कैसे लिखे। पूरा एक सेमेस्टर तो ग्रेजुएशन के स्टूडेंट को मैथ्स लिखना सीखाने में जाता है। यहीं वजह है कि ग्रेजुएशन के बाद इसमें काफी तेजी से कमी आती है। नई शिक्षा नीति के तहत मैथ्स के कोर्स में भी बदलाव आने के बाद इसमें बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है।
- डॉ। अविनाश कुमार, एसिस्टेंट प्रोफेसर, मैथ्स डिपार्टमेंट, पीयू
- शेखर पाठक, निदेशक सह गणित शिक्षक,न्यू लोयला स्कूल