पिछले तीन हफ्ते में स्टेट की तीन बड़ी इमरजेंसी ठप
पेशेंट मरे, तो अपनी बला से
- नालंदा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पीटल में अब भी जारी है जूनियर डॉक्टर्स की स्ट्राइक - सोशल एक्टिविस्ट्स की डिमांड, स्ट्राइक करने पर लागू हो बिहार स्टेट एसेंशियल सर्विस एक्ट Strike पीएमसीएच में 24 जून को डीएमसीएच में 6 जुलाई से एनएमसीएच में 9 जुलाई से PATNA : यह बिहार का हेल्थ सिस्टम है, जहां स्टेट के तीन गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेजों की इमरजेंसी स्ट्राइक की वजह से महज तीन हप्ते में तीन बार ठप हुई। तीनों मेडिकल कॉलजों में इमरजेंसी ही ठप नहीं हुई, बाकी कई सेवाएं भी बाधित हुईं। एनएमसीएच में तो स्ट्राइक जारी है। मेडिकल स्टूडेंट्स अपनी मांग पर डटे हैं। यह स्ट्राइक-स्ट्राइक क्या है? पीएमसीएच में जूनियर डॉक्टर्स स्ट्राइक पर गए, डीएमसीएच में गए और एनएमसीएच में भी गए। तीनों अलग-अलग डेट को स्ट्राइक पर गए पर तीनों के कारण लोकल रहे।इमरजेंसी को ठप करना कितना जायज
मेडिकल कॉलेजों की इमरजेंसी में अत्यंत गंभीर मरीजों को ही भर्ती किया जाता है। इसमें कई मरीज ट्रॉमा के भी होते हैं। सोचिए इन मरीजों को अचानक अपने हाल पर छोड़ देना कितना सही है। जब तक वैकल्पिक व्यवस्था हो पाती है, तब तक सांस छूट जाती है कई मां की, कई बच्चे की और कई पिता की।
एनएमसीएच
पुलिस-डॉक्टर्स के बीच तनातनी नालंदा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पीटल में उस समय जूनियर डॉक्टर्स 9 जुलाई को स्ट्राइक पर चले गए, जब वाहन चेकिंग को लेकर पुलिस ने कई की मोटरसाइकिल जब्त कर ली। इस बात पर पुलिस से भिड़ंत हो गई और दोनों ओर से खूब तनातनी हुई। जूनियर डॉक्टर्स ने आरोप लगाया कि पुलिस ने हॉस्टल में घुस-घुस कर मारा और कई को गिरफ्तार कर लिया। फ्ख् स्टूडेंट्स पर नेम्ड एफआईआर दर्ज हुई, जबकि क्भ्0 अज्ञात को भी दायरे में लिया गया। दोषी पुलिसकर्मी निलंबित हों, एफआईआर हटाया जाए और कैंपस से अतिरिक्त पुलिस बलों को हटा दिया जाए, अब इसकी मांग पर जूनियर डॉक्टर्स डट गए हैं। इसको लेकर डॉक्टरों ने इमरजेंसी में काम ठप रखा और इमरजेंसी के बाहर धरना भी दिया। डीएमसीएच परिजनों और डॉक्टर्स के बीच भिडंतदरभंगा में रोड हादसे में दो प्रोफेसर बुरी तरह घायल हो गए। चंद्रकांत मिश्र और प्रो। अरुण में से एक की मौत रास्ते में हो गई, जबकि एक की मौत इलाज के दौरान दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पीटल में हो गई। इससे परिजनों को गुस्सा आया और फिर जूनियर डॉक्टरों से भिड़ंत हो गई। इसके बाद म् जुलाई से जूनियर डॉक्टर स्ट्राइक पर चले गए। डॉक्टरों ने इमरजेंसी में भी काम ठप कर दिया। आश्वासन के बाद डॉक्टर माने।
पीएमसीएमच गार्ड व जूनियर डॉक्टर्स के बीच बतकही पटना मेडिकल कॉलेज व हॉस्पीटल में ख्ब् जून से लेकर ख्7 जून तक स्ट्राइक हुई। वजह यह कि गार्ड के साथ जूनियर डॉक्टरों की बतकही हो गई, फिर दोनों ओर से मार-धाड़ हुई। राजधानी एक्सप्रेस एक्सीडेंट के समय भी यहां जूनियर डॉक्टर्स ने इमरजेंसी तक में ड्यूटी नहीं दी, स्ट्राइक पर रहे। चार-पांच दिनों बाद जब दोनों ओर से समझौता हुआ, तब हड़ताल वापस हुई। आखिर कौन है जिम्मेवार इसका आकलन करना मुश्किल है कि तीन हफ्ते में तीन बार जूनियर डॉक्टर्स की हुई स्ट्राइक की वजह से कितनी मौतें हुई। कितने मरीजों को प्राइवेट में इलाज करवाना पड़ा। कितने की जमीन बिक गई। कितने घर इलाज में बर्बाद हो गए। हद है किसी मानवाधिकार से जुड़ी संस्था ने इस पर आवाज नहीं उठायी, न मानवाधिकार की रक्षा के लिए बने आयोग की इस पर नजर गयी। किसी तरह की जांच की बात नहीं हुई। राज्य मानवाधिकार आयोग को मालूम है कि जूनियर डॉक्टर्स पर कार्रवाई करवा पाना टेढ़ी खीर है। पहले का रिकमेंडेशन धूल फांक रहा है।स्ट्राइक के कारणों की गहराई से जांच होनी चाहिए और जो दोषी हैं, उन्हें सजा मिलनी चाहिए। सरकार पुलिस को गैर वाजिब प्रोटेक्शन न दे। डॉक्टरों को सुरक्षा की गारंटी दे।
डॉ अजय कुमार, को-ऑर्डिनेटर, बिहार स्वास्थ्य सेवा संघ मेडिकल छात्रों की मूलभूत समस्याओं का निदान सरकार अब तक नहीं कर पायी है ये तीनों स्ट्राइक ऐसा बताते हैं। सुरक्षा का सवाल तीनों जगह दिखा। इधर, कुछ दिनों में ऐसी कोशिश की जा रही है कि हंगामा होने पर डॉक्टर को ही दोषी माना जाए। यह ठीक बात नहीं है कि डॉक्टर पर ही सब थोपा जाए। डॉ राजीव रंजन प्रसाद, प्रेसीडेंट, आईएमए हॉस्पीटलों में जब तब स्ट्राइक करने पर सरकार को बिहार स्टेट एसेंशियल सर्विस एक्ट लगाना चाहिए, क्योंकि स्वास्थ्य, बिजली और पानी सेवा में स्ट्राइक नहीं किया जा सकता। यह कानून बिहार सरकार के पास है, पर वह इसका इस्तेमाल नहीं करती। गुड्डू बाबा, सोशल एक्टिविस्ट