-कोचिंग मंडी अब अच्छा रिजल्ट नहीं, स्टूडेंट्स को दे रही खतरनाक बीमारियां

-एक क्लास में एक साथ सैकड़ों स्टूडेंट्स को ठूंस कर पढ़ाने से फार्मेल्टी बनकर रह जाती है पढ़ाई

-खराब माहौल में पढ़कर स्टूडेंट्स को मिल रहीं टेंशन, डिप्रेशन, साइकोसिस, साइटिका, वीक आई साइट और वर्टाइगो जैसी बीमारियां

-बड़ी संख्या में डॉक्टर्स और साईकेट्रिस्ट्स के पास पहुंच रहे हैं कोचिंग मंडी के 'शिकार' बने स्टूडेंट्स

KANPUR : शहर की कोचिंग संस्थानों की साख इसके अपने ही मिट्टी में मिला रहे हैं, और टीचिंग के नोबल प्रोफेशन को बिजनेस की तरह ट्रीट करके पूरे कोचिंग हब को खुद ही पूरी तरह कोचिंग की 'मंडी' साबित करने पर आमादा हैं। इस वक्त सबसे बड़ी जो प्रॉब्लम्स शहर की कोचिंगों में स्टूडेंट्स को फेस करनी पड़ रही है, वो है टीचर्स की क्लासों को भूसे की तरह ठूंस देने की टेंडेंसी। कम से कम टाइम और रिसोर्स लगाकर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के खातिर कोचिंग संचालक एक-एक बैच में हजार से 1200 तक स्टूडेंट्स को पढ़ा रहे हैं। इससे स्टूडेंट्स को न सिर्फ भारी परेशानियां हो रही हैं बल्कि घंटों खड़े होकर पढ़ने, उनपर टीचर के अटेंशन पे नहीं करने के कारण मानसिक बीमारियां घेर रही हैं। उनमें फिजिकल डिसॉर्डर पैदा हो रहे हैं। यही नहीं, स्टूडेंट्स को वर्टाइगो जैसी गंभीर बीमारियां तक हो रही हैं। शहर के डॉक्टर्स और साईकेट्रिस्ट इस बात के गवाह हैं। फीस के तौर पर 25 से 35 हजार रुपए तक चुकाने वाले पेरेंट्स और स्टूडेंट्स कोचिंगों में ये व्यवस्थाएं मिलने पर ठगा सा महसूस करते हैं। शिकायत पर उन्हें मिलती है केवल फटकार और अपमान।

नॉ‌र्म्स की फिक्र किसको है।

मानकों के अनुसार एक कोचिंग क्लास (या कोई भी प्रोफेशनल स्टडीज का क्लास रूम)) में एक समय में अधिकतम ख्भ्0 स्टूडेंट्स ही हो सकते हैं। लेकिन कानपुर की कोचिंग मंडी में लगने वाली क्लासेज में संचालकों द्वारा एक ही बार में 700 से 800 बच्चों की भीड़ को पढ़ाते देखा जा सकता है। एक स्टूडेंट से औसतन ख्0 से ख्भ् हजार रुपए सालाना फीस की एवज में ये कोचिंग संचालक एअरकंडीशंड क्लासरूम्स जैसी सुविधाएं देने का वादा करते हैं। लेकिन छात्रों का आरोप है कि बताई गई सुविधाओं में से कुछ भी नहीं मिलता।

खड़े होने की जगह नहीं, पढ़े कहां

आई नेक्स्ट को पिछले दो दिनों से बड़ी संख्या में फोन करके शिकायतें कर रहे इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स का आरोप है कि क्लास रूम्स में भूसे की तरह भ्00 से हजार के बीच बच्चों को ठूंसने के कारण नार्कीय माहौल में स्टूडेंट्स पढ़ाई को मजबूर रहते हैं। गर्मियों में तो गर्मी के कारण क्लासों में बच्चे बीमार हो जाते हैं। दुगनी भीड़ होने के कारण बहुतों को घंटों खड़े रहकर पढ़ना पड़ता है। ऐसे में ध्यान बंटता है। छात्राओं ने आई नेक्स्ट से शिकायत की है कि उन्हें इस भीड़ में खड़े रहकर पढ़ाई करने में बहुत ज्यादा दिक्कतें आती हैं। छोड़ नहीं सकते, फीस वापस नहीं दी जाती।

'इस क्लास में इंटरएक्शन क्या खाक होगा.'

स्टूडेंट्स का आरोप है कि ठुंसी हुई क्लास रूम्स में पढ़ाई के नाम पर मजाक हो जाता है। इतने स्टूडेंट्स की भीड़ में बच्चे अपने डाउट्स क्लियर करने के लिए टीचर से सवाल जवाब भी नहीं कर सकते हैं। उनकी आवाज ही इतनी भीड़ में टीचर तक पहुंचती नहीं। भीड़ में चौथाई स्टूडेंट्स एक-एक करके भी टीचर से सवाल पूछना चाहें तो घंटों लग जाएंगे। जबकि कोई भी टीचर दिन में तीन घंटे ही क्लास लेता है। मेडिकल या इंजीनियरिंग जैसे बड़े कॉम्पटीशंस में सक्सेज के लिए टीचर और स्टूडेंट्स के बीच इंटरएक्शन का सबसे ज्यादा महत्व है, वर्ना समझ में क्या आएगा। पर यहां टीचर्स तो धंधेबाजी कर रहे हैं, वो पढ़ा नहीं रहे

एक बैच है या फिर एक कॉलेज

एक इंजीनयिरिंग स्टूडेंट ने बताया कि क्लास में अगर आगे की सीटें चाहिए तो स्टूडेंट्स को कम से कम एक या डेढ़ घंटे पहले पहुंचना पड़ता है। वर्ना पीछे खड़े होकर पढ़ना पड़ता है, जहां 'लेक्चर' सुनाई तक नहीं पड़ता। इस छात्र के अनुसार अधिकांश टीचर अब आलस्य के मारे एक ही क्लास में तीन-तीन बैच के सैकड़ों छात्रों को ठूंस लेते हैं, जिससे कि दिन में उनका अपना समय बच सके। शुरुआती दिनों में एक ही टाइम में एक कमरे में रिपीटर बैच, फ्रैशर्स बैच और नॉर्म बैच पढ़ाते हैं। इससे शुरुआती बेसिक्स ही अधिकांश को भीड़ में समझ में नहीं आ पाते हैं।

चश्मा लगवाओ, बीमार हो जाओ

कई स्टूडेंट्स ने बताया कि टीचर्स से भीड़ में नहीं पढ़ाने की रिक्वेस्ट या शिकायत करने पर भगा देने तक की धमकी दी जाती है। नुकसान ये है कि भीड़ से ठुंसे क्लास रूम्स में पीछे खड़े होने वालों को ठीक से ब्लैक बोर्ड भी नहीं दिखता। अक्सर क्ला रूम्स में प्रॉपर लाइट की व्यवस्था भी नहीं होती है। इससे बहुत से स्टूडेंट्स की आई साइट वीक हो गई, उनको मोटे चश्मे लग गए। वहीं कईयों वर्टाईगो (मितली, चक्कर, वॉमिटिंग) जेसी बीमारी हो गई।

केवल रूरल एरिया का कोचिंग हब बना गया काकादेव

वादे पूरे नहीं करने, सुविधाएं नहीं देने, सब स्टैंडर्ड पढ़ाई नहीं हो पाने, क्लासों में भीड़ ठूंसने, पीएमटी और इंजीनियरिंग के रेप्यूटेड एग्जाम्स में रैंक्स नहीं पा सकने के कारण अब काकादेव कोचिंग मंडी केवल रूरल एरिया, यानि गांव-कस्बे के स्टूडेंट्स का कोचिंग हब बनकर रह गया है। खुद एक बड़ी कोचिंग के संचालक के अनुसार पूरी मंडी में इस वक्त भ्भ् से म्0 परसेंट स्टूडेंट्स तो केवल बलिया, बस्ती, बहराइच, हमरीपुर, बांदा, जालौन, फरुखाबाद, कन्नौज, सीतापुर आदि क्षेत्र के हैं। बाकी खुद कानपुर, लखनऊ, बनारस, इलाहाबाद आदि के स्टूडेंट्स तो पीएमटी-इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए कोटा या दिल्ली के इंस्टीट्यूट्स ज्वाइन करते हैं। केमिस्ट्री के एक नामी शिक्षक कुछ झुब्ध होकर कहते हैं कि 'पिछले कुछ सालों में रिजल्ट गड़बड़ाने के कारण अब हम भी आसपास के क्भ् या ख्0 छोटे जिलों और शहरों में ही विज्ञापन और प्रचार कर रहे हैं.'

बॉक्स क्-

ये इस बच्चे को क्या हुआ।

लाल बंगला एरिया में प्रेक्टिस करने वाले साईकेट्रिस्ट डॉ। उन्नति कुमार ने बताया कि कुछ महीने पहले एक संभ्रांत फैमली अपने टीन-एजर बेटे को लेकर उनके पास आए। उन्होंने बताया कि बच्चा घर में एबनॉर्मल बिहेवियर करने लगा है। वो एक तरफ गर्दन झुकाए रहता है। खोया-खोया सा रहता है। बातों का सहरी से रिस्पांस भी नहीं देता। बच्चे व पेरेंट्स से काउंसलिंग करने पर पता चला कि उसे क्लास 9वीं के बाद ही आईआईटी के लिए कोचिंग ज्वाइन करवा दी थी। सबकी हसरत थी बेटा आईआईटी में पढ़े। लेकिन रिजल्ट आने से पहले ही वो लगातार बीमार पड़ने लगा। उसे मितली और चक्कर आने की शिकायत भी रहने लगी। बच्चे से बातचीत में पता लगा कि लालबंगले से काकादेव कोचिंग मंडी तक जाते-जाते वो थोड़ा लेट हो जाता था। हर वक्त हजार-पांच सौ स्टूडेंट्स से ठुंसी क्लास के एक कोने में खड़े रहना पड़ता था। या गर्दन टेंढ़ी करके ब्लैकबोर्ड देखना पड़ता था। फिर टीचर से पूछ कर डाउट्स भी क्लीयर नहीं कर पाता था। बीच में ही मेंटल टेंशन फिर फ्रस्टेशन में रहने लगा था।

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सपने दिखाते कोचिंग वाले

सीनियर साईकेट्रिस्ट डॉ। आलोक बाजपेयी कहते हैं कि अभी तक तो कोचिंग मंडी से आने वाले अधिकांश स्टूडेंट्स में एंग्जाईटी और डिप्रेशन की प्रॉब्लम मिलती थी, लेकिन अब दूसरी बीमारियां भी मिल रही हैं। ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ रही है। क्लास रूम्स में भीड़ के अलावा प्रॉब्लम ये भी है कि कोचिंग्स में बच्चों और पेरेंट्स को बड़े-बड़े सपने तो दिखा दिए जाते हैं, वो पेरेंट्स तक के एस्पीरेशंस बढ़ा देते हैं। पर सबस्टैंडर्ड टीचिंग के चलते वो पूरे हो नहीें पाते। इससे बच्चों में गंभीर मानसिक बीमारियां पनप सकती हैं। डॉ। बाजपेयी के अनुसार बच्चों को सेल्फ स्टडी ही करनी चाहिए। पेरेंट्स इसके लिए मोटीवेट करें।

एल्कोहल, नींद की गोलियां से साइकोसिस तक

डॉ। हेमंत मोहन के अनुसार कोचिंग मंडी में अव्यवस्थाओं के कारण हालात और भी खतरनाक हैं। उनके पास बड़ी संख्या में कोचिंग में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स आते हैं। बहुतों को डिप्रेशन और टेंशन में स्टूडेंट्स को नींद नहीं आती तो वो एल्कोहल और एल्प्राजोलम जैसी चीजें लेने लगते हैं। बहुत से तो न्यूरो साइकोसिस और दूसरी साइकोलॉजिकल बीरमारियों से पीडि़त निकले। वहीं क्लासेज में भीड़ के कारण बहुत से स्टूडेंट्स, ईवन लड़कियों तक में पॉश्चरल डिसॉर्डर, सर्वाइकल स्टिफनेस (रीढ़ में अकड़न), स्पांडिलाइटिस जैसी बारियां तक घेर रही हैं।

नोट:- (सभी डिटेल्स स्टूडेंट्स की कंपलेंट्स के आधार पर, आई नेक्स्ट के पास स्टूडेंट्स की ये शिकायतें रिकॉर्डिग के रूप में मौजूद हैं। उनकी रिक्वेस्ट की वजह से हम उनके नाम और फोटोग्राफ्स नहीं छाप रहे हैं ताकि उन्हें कोई निशाना न बनाए )

Posted By: Inextlive