ओपीनियन पोल चुनाव पूर्व सर्वेक्षण के बारे में कांग्रेस के विचारों का लब्बोलुबाब यह है कि ये ग़ैर-कानूनी हैं और शायद अनैतिक भी. और ऐसा क्यों न हो आखिरकार चुनाव पूर्व सभी सर्वेक्षण यह दर्शा रहे हैं कि कांग्रेस आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में बुरी तरह से हारने जा रही है.


भारतीय चुनाव आयोग के कांग्रेस से ओपीनियन पोल के बारे में राय पूछने पर पार्टी ने जवाब दिया कि ओपीनियन पोल "अक्सर भटकाने वाले होते हैं, ये न तो वैज्ञानिक हैं, न ही ऐसे पोल करने की कोई पारदर्शी प्रक्रिया है."कांग्रेस ने यह भी कहा, "ये पोल चुनाव आयोग द्वारा कराए जाने वाले चुनाव की बुनियादी अवधारणा और प्रक्रिया के ख़िलाफ़ हैं. इसलिए हम चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए कदम की सराहना करते हैं."हालांकि एक कांग्रेसी नेता ने परिहास करते हुए मुझसे कहा था, "केवल हारने वाले प्रत्याशी ही ईवीएम(इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन) के प्रयोग पर सवाल उठाते हैं. आज तक किसी जीतने वाले प्रत्याशी ने यह नहीं कहा कि ईवीएम में गड़बड़ हो सकती है."कांग्रेस का डरदरअसल वर्ष 1999 में चुनाव आयोग ने एक्जिट पोल पर पाबंदी लगाने की कोशिश की थी.
चुनाव आयोग के फ़ैसले को उच्चतम न्यायालय यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि इस तरह की पाबंदी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के ख़िलाफ़ है.अदालत ने चुनाव आयोग पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि आयोग के पास इस तरह की पाबंदी लगाने का अधिकार ही नहीं है और अगर प्रतिबंध का अनुसरण नहीं होता तो आयोग कोई कार्रवाई नहीं कर सकेगा.


ग़ौरतलब है कि वर्ष 2009 में जब कांग्रेसी की अगुवाई वाली यूपीए सरकार दूसरी बार सत्ता में आई तो उसने जनप्रतिनिधि कानून 1951 में धारा 126(ब) का समावेश किया जिसके तहत एक्जिट पोल पर कानूनी प्रतिबंध लगाया जा सके ताकि एक्जिट पोल के परिणाम सभी चरणों के मतदान पूरे होने के पहले सार्वजनिक न किए जा सकें.उस समय ओपीनियन पोल को छोड़ दिया गया था लेकिन केंद्रीय मंत्रीमंडल ने इस पर अगले चरण में प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया था.भाजपा का मत परिवर्तन"यह सच है कि ओपीनियन पोल्स अक्सर ग़लत होते हैं लेकिन कई बार वो सही भी हो जाते हैं."-अदिति फड़निस, राजनीतिक विश्लेषकइस समय भारतीय जनता पार्टी भले ही कांग्रेस पर ताना कस रही है कि कांग्रेस चुनाव में हारने के डर से ओपीनियन पोल पर प्रतिबंध लगाना चाहती है लेकिन चुनाव आयोग ने चुनाव सुधार पर सात चरणों में विचार-विमर्श किया था.उस समय भाजपा और कांग्रेस दोनों एक-दूसरे से इस बात पर सहमत थे कि ओपीनियन पोल पर पाबंदी लगनी चाहिए क्योंकि ये मतदाताओं को प्रभावित करते हैं.और अब केवल भाजपा ही ऐसी पार्टी है जो नैतिकता के आधार पर ओपीनियन पोल पर प्रतिबंध को अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बता रही है.

1990 के दशक और 2000 के शुरुआती सालों में जब चुनाव आयोग ने पार्टियों से विचार-विमर्श किया था तब भाजपा के विचार ऐसे नहीं थे.यह सच है कि ओपीनियन पोल अक्सर ग़लत होते हैं. कई बार वो सही भी हो जाते हैं. साल 2009 में किसी भी सर्वेक्षण में यूपीए की वापसी की संभावना नहीं जताई गई थी.साल 2004 में भी यही उम्मीद जताई गई थी भाजपा अपने इंडिया शाइनिंग अभियान की बदौलत सत्ता में वापसी करेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं.कोई नहीं जानता कि इस बार क्या होगा?लेकिन एक बात साफ है कि ओपीनियन पोल पर पाबंदी लगाने से मोदी की बढ़ती लहर को फैलने से रोका नहीं जा सकता और ना इस तरह की पाबंदी से कांग्रेस की डगमगाती किस्मत संवर जाएगी.

Posted By: Subhesh Sharma