नालों तक सीमित हैं शहर में जल निकासी की व्यवस्थाएं

प्रोजेक्ट तक सीमित नाला सफाई और सीवरेज व्यवस्था

Meerut। शहर में फैला नालों और सीवर के जाल के बावजूद भी हर साल बरसात में शहर के नाले उफान पर रहते हैं और शहर की सड़कों से लेकर गलियों में घुटनों तक का पानी भर जाता है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने जब अपने अभियान के जरिए इस समस्या के कारण की तलाश की तो पता लगा कि शहर की सीवर लाइन अधिकतर मोहल्लों में बंद पड़ी है और नाले कूडे़ से अटे रहते हैं, जिस कारण बरसात में हर साल के कुछ तय इलाकों में जलभराव होता ही है। निगम के पास शहर को जलभराव से मुक्त बनाने की योजनाएं तो अनेक हैं लेकिन कागजों तक सीमित हैं। बजट है लेकिन घोटालों में सिमट जाता है।

कूड़ा बना जलभराव का कारण

शहर के नाले-नालियों के जाम रहने का सबसे बड़ा कारण है। नगर निगम के पास कूड़ा निस्तारण प्लांट नहीं है। शहर में प्रतिदिन 900 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है। 315 से अधिक छोटे-बड़े खुले नाले हैं, जिनमें कूड़ा, गोबर बहाया जा रहा है। निगम द्वारा लोहिया नगर और भावनपुर में कूड़ा डंप किया जा रहा है। लेकिन रोजाना कई वार्डो का कूड़ा नालों में बहता है।

315 नालों का जाल

शहर में कुल 315 छोटे-बड़े नाले हैं, जिनमें करीब 39 बड़े नाले ऐसे हैं जिनसे शहर के छोटे-छोटे नाले जुड़े हुए हैं और मोहल्लों से जल निकासी मे सहायता करते हैं। इससे अलग करीब 2,49,500 मीटर छोटे-बड़े नालों का जाल शहर के मोहल्लों में बिछा हुआ है। जिसके जरिए शहर की 25 लाख आबादी के रोजाना प्रयोग किए जाने वाले जल निकासी की व्यवस्था बनी हुई है। लेकिन इसके बाद भी हर बरसात शहर जल निकासी की समस्या से जूझता है। क्योंकि ये नाले कूडे़ के कारण गंदगी से अटे रहते हैं।

योजना अधर में

शहर में नालों में खुला कूड़ा ना डाला जाए इसके लिए शहर के 69,600 मीटर लंबाई के करीब 39 बड़े नालों को पछले साल इनको ढकने की योजना बनाई थी। इसके लिए 286.75 करोड़ और इन नालों पर सात मीटर चौड़ी सड़क बनाने के लिए 94 करोड़ रुपये की लागत का एस्टीमेट तैयार किया गया था, लेकिन यह योजना भी अभी अधर में और नाले कूडे़ से अटे हुए हैं। इसके अलावा जल निगम इकाई के अनुसार शहर में 680 किलोमीटर सीवर लाइन का निर्माण किया जा चुका है और करीब 1021 किलोमीटर सीवर लाइन का निर्माण बचा हुआ है। इसमें से 86.56 किलोमीटर सीवर लाइन बिछाने का काम शहर के हापुड़ रोड, सूरजकुंड, प्रहलादनगर आदि इलाकों में जारी है। लेकिन हकीकत है कि शहर के 40 फीसद हिस्से में सीवर लाइन नहीं है। इसलिए भी शहर में जगह जगह पानी भरता है।

पानी का शुद्धिकरण नहीं

शहर के नालों और सीवर से निकलने वाले पानी को साफ कर उसके पानी को सिचांई योग्य बनाकर दोबारा प्रयोग में लाने की निगम की कवायद भी अधर में है। इसके लिए एसटीपी यानी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट केवल शहर के बाहरी क्षेत्रों में चालू है, जबकि अंदर मेन नाले अभी इस सुविधा से वंचित है। यह भी कारण है कि शहर के नाले साल भर गंदगी से अटे रहते हैं। आंकडों पर नजर डालें तो नगर निगम का 72 एमएलडी क्षमता का एसटीपी गांव कमालपुर में संचालित है। वहीं एमडीए के कुल 107 एमएलडी क्षमता के 12 एसटीपी संचालित हैं। शहर क्षेत्र में मुख्य रूप से ओडियन नाला, आबू नाला-1 और आबू नाला-2 के लिए 214 एमएलडी क्षमता के एसटीपी प्लांट निर्माण का प्रस्तावित है।

ऐसा नही है कि नाले साल भर गंदगी से अटे रहते है इसलिए जलभराव होता है इस बार पूरे साल नालों की लगातार सफाई की गई है। किसी भी क्षेत्र में जलभराव नालों की गंदगी के कारण नही हुआ हां कुछ क्षेत्रों सीवर लाइन चालू नही है इस पर भी काम किया जा रहा है।

डा गजेंद्र, नगर स्वास्थ्य अधिकारी

Posted By: Inextlive