समाज में व्‍याप्‍त नीच और ऊंच वर्ग की मासिकता से जुड़ा एक मामला कर्नाटक में सामने आया है। यहां पर एक स्‍कूल में एक महिला का बनाया मिड डे मील सिर्फ इसलिए नहीं खाया जा रहा है कि क्‍योंकि वह दलित व गरीब है। इतना ही नहीं पिछले पांच महीने में करीब 100 से अधिक बच्‍चे स्‍कूल छोड़ कर चले गए हैं। हालांकि स्‍कूल प्रशासन इस सबके पीछे गांव की राजनीति बता रहा है।


किसी ने खाना नहीं खायाकर्नाटक के कागानाहाली के एक स्कूल में मिड डे मील योजना के तहत खाना बनाने के लिए दलित महिला को कुक बना दिया गया है। मगर, स्कूल में बच्चों ने खाना ही छोड़ दिया है। वह राधाम्मा अब रोज मिड डे मील डायरी लिख रही है। उसके चार शब्द महिला की व्यथा को बयां करने के लिए काफी हैं। “No one ate today.” यानी आज किसी ने खाना नहीं खाया। यह सिलसिला पिछले पांच महीने से जारी है। राधाम्मा अनुसूचित जाति से हैं। फरवरी 2014 में जब उनकी नियुक्ित इस स्कूल में हुई थी तब पहली से आठवीं कक्षा तक यहां 118 बच्चे पढ़ते थे। मगर, धीरे-धीरे 100 बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया है। कोलार जिले के इस स्कूल में बाकी के बचे 18 बच्चे भी इस शर्त पर स्कूल आ रहे हैं कि राधाम्मा मध्यान भोजन नहीं बनाएंगी।
बच्चों की टीसी मांग रहे


इस काम के जरिये वह हर महीने करीब 1700 रुपए कमाती हैं। यह रकम सात लोगों के परिवार को पालने वाली राधाम्मा के लिए बहुत मायने रखती है। कागानाहाली छोटा सा गांव है, जहां 101 परिवार रहते हैं और जिसकी कुल आबादी 452 है। गांव की करीब 40 फीसद आबादी अनुसूचित जनजाति है, जबकि 18.14 फीसद आबादी राधाम्मा की तरह दलित है। बाकी की आबादी में ओबीसी के खुरुबास और वोक्कालीगास शामिल हैं। स्कूल के प्रधानाचार्य वाईवी वेंकटाचालापथी आरोप लगाते हैं कि गांव की राजनीति स्कूल की इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है। अभिभावक स्कूल में आकर बच्चों की टीसी मांग रहे हैं। यदि वह उन्हें समझाने की कोशिश करते हैं तो वे गाली-गलौच करने लगते हैं।

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Posted By: Shweta Mishra