कवि दिवस के रूप में मना राष्ट्रकवि मैथिलिशरण गुप्त का जन्मदिवस

ALLAHABAD:

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के जन्मदिवस पर हिन्दुस्तानी एकेडमी की ओर से एकेडमी सभागार में बुधवार को 'कवि दिवस' का आयोजन किया गया। इसमें कवियों ने अपनी रचनाओं के जरिये महान कवि को याद किया।

समाज की विसंगतियों पर प्रहार

कवि दिवस का शुभांरभ दीप प्रज्जवलन व मां सरस्वती एवं राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त के चित्र पर माल्यार्पण के साथ हुआ। एकेडमी के कोषाध्यक्ष रविनंदन सिंह ने कवि गोष्ठी में आए कवियों को स्मृति चिह्न प्रदान करते हुए सम्मानित किया। कवि गोष्ठी में कवियों ने समाज की विसंगतियों पर प्रहार करते हुए कविताएं सुनाई। रतीनाथ योगेश्वर ने कहा- बच्चों हमें पकड़ो, हम सेमल के रूई की तरह उड़े जा रहे हैं अध्यक्षता कर रहे दयाशंकर पांडेय ने अपनी रचना- है पुजारी वही कर्मवीर की राह में, है जिसे प्यार अपने वेतन के लिए सुनाया। नंदल हितैशी ने कटाक्ष करते हुए सुनाया- इस बाजार में अकेले हो अंधे पे खड़े हो, क्या खूब खतरनाक मोड़ अंधे पे खड़े हो सुनाया। जयकृष्ण राय तुषार ने कहा कि- सूखे में कहीं बाढ़ में फसलों की धान, फिर भी अमीन लाए हैं नोटिस लगान की औरत की स्थिति को बयां करती मीनू रानी दुबे की कविता-रिश्तों में बंधी होती है औरत सरगम सी बजती है औरत, अदहन सी खबदबाती है औरत, मेघ सी बरसती है औरत सुनाया। डा। राजेंद्र त्रिपाठी रसराज ने कविता का सार- कविता मेरी जान है, कविता मेरी शान है, कविता में ही भरा हुआ मेरा सारा अरमान है सुनाया। डा। श्लेष गौतम कहा- कठिन समय का हल होती है नई पहल होती है, इंकलाब होती है, कविता गंगा जल होती है।

Posted By: Inextlive