मंजिल उन्‍हीं को मिलती है जिनके सपनो में जान होती है पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है। इन लाइनो को झारखंड में ईंटा ढोने वाली लड़की ने सच साबित कर दिया है। दिन में आठ घंटे ईंटे उठा कर अपने भाई-बहन और मां का पेट भरने वाली एक छात्रा ने बोर्ड परीक्षाओं में अच्‍छे अंक लाकर सभी को चौंका दिया है। उसने यह साबित कर दिया कि परिस्थितियां कितनी भी विपरीत क्‍यों ना हो अगर हौंसला बुलंद है तो मंजिल कदम चूमती है।


9 साल की उम्र से मजदूरी कर रही है मीरामीरा एक कंस्ट्रक्शन साइट पर 9 साल की उम्र से हेल्पर का काम कर रही है। 12 साल की उम्र में मीरा ने पिता को खो दिया। पिता की मौत के बाद घर की जिम्मेदारी तीनों बच्चों के ऊपर आ गई। मां की कमाई फुटकर कामों की वजह से बहुत कम थी। शिक्षा का महत्व देखते हुए मीरा ने एक निजी स्कूल में दाखिला ले लिया। जिसके बाद वह तीन दिन पढाई करती थी और चार दिन काम करती थी। जब मीरा का परीक्षा परिणाम निकला उस समय वह मजदूरी कर रही थी। झारखंड के नयातोली गांव की 16 साल की मीरा खोया ने ऐसे ही अपने गांव का नाम रोशन किया है।पुलिस अफसर बनना चाहती है होनहार मीरा
मीरा ने बताया कि मैं पुलिस अफसर बनना चाहती हूं। मीरा ने कहा मैं डॉक्टर भी बन सकती थी लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं इसलिए मैं पुलिस में जाऊंगी। मीरा की मां पहालो खोया ने कहा मैं आशा करती हूं की वह पुलिस अफसर या डॉक्टर या जो भी चाहे बन जाए। वह हमारी गरीबी दूर करना चाहती है। मुझे लगता है कि वह बहुत ही बहादुर लड़की है। छात्रा ने बताया कि आठ घंटे मजदूरी करने के बाद वह घर का भी काम करती है। कुछ समय घर का काम करने के बाद दिन में केवल दो घंटे ही पढ़ पाती थी। गरीबी है बच्चों की शिक्षा से दूरी की वजहरिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट की माने तो झारखंड के 38 प्रतिशत बच्चों की भी यही कहानी है। झारखंड में अति गरीबी की वजह से बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर बहुत ज्यादा है। इसी वजह से झारखंड बच्चों के अवैध व्यापार का केंद्र भी बनता जा रहा है। ऐसे बच्चों के साथ काम करना वाकई एक चुनौती से कम नहीं है। झारखंड की शिक्षा प्रभारी अनुराधा पटनायक ने कहा कि जब आप उनके दिन के एक वक्त की जरूरत की तुलना  उनकी पढ़ने की इच्छा से करते हैं तो ये बहुत ही चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

Posted By: Prabha Punj Mishra