दून हॉस्पिटल में स्ट्रेचर के नाम चल रहा काली कमाई का खेल

हर गार्ड का है अलग रजिस्टर, शिफ्ट बदलते ही 100 रुपये के लिए अगले दिन बुलाया जाता है

देहरादून,

दून हॉस्पिटल में स्ट्रेचर के नाम चल रहा काली कमाई का खेल शिफ्ट बदलने के नाम पर भी खेला जाता है. हॉस्पिटल में गार्ड तीन शिफ्ट में काम करते हैं. जिस गार्ड से अटेंडेंट 100 रुपये देकर स्ट्रेचर लेता है, यदि स्ट्रेचर वापस देने तक उसकी शिफ्ट बदल जाती है तो उसकी जगह आने वाला दूसरा गार्ड 100 रुपये नहीं लौटाता और अगले दिन आने के लिए कहता है. आमतौर पर 100 रुपये के लिए लोग दूसरे दिन नहीं आते. इस तरह से एक दिन में दर्जनों ऐसे केस सामने आते हैं, जो पैसे वापस लेने नहीं आते हैं. जिससे यह पैसा सीधे-सीधे सुरक्षाकर्मी और स्टाफ की जेब में चला जाता है.

पैसे नहीं तो कैसे होगा इलाज

दून हॉस्पिटल में स्ट्रेचर के बदले 100 रुपए जमा करने का यह सिस्टम कुछ समय पहले ही लागू हुआ. खुद सुरक्षाकर्मियों ने बताया कि पहले अटेंडेट की आईडी जमा होती थी, लेकिन कुछ स्ट्रेचर जो वापस नहीं मिले तो फिर स्ट्रेचर के बदले 100 रुपए और व्हील चेयर के बदले 500 रुपए जमा करने का नियम लागू हुआ. इस सिस्टम को लेकर सबसे बड़ा सवाल ये भी उठता है कि यदि किसी मरीज या अटेंडेट के पास 100 से 500 रुपए नहीं होंगे तो फिर उसकी इमरजेंसी में किस तरह से एंट्री होगी. दून हॉस्पिटल में आने वाले अधिकतर मरीजों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती है. इतना ही नहीं इमरजेंसी में कई ऐसे केस आते हैं, जो कि एक्सीडेंट के या फिर अनजान लोग लेकर आते हैं, ऐसे में जो साथ में आएगा उसकी जेब में 500 रुपए तक होने जरूरी हैं.

किसकी जेब में जा रहा पैसा

सबसे अहम सवाल ये है कि इस सिस्टम की मॉनीटरिंग बिना हॉस्पिटल प्रबंधन के कैसे संभव है. 1 दिन में 20 हजार के आसपास का लेन देन इमरजेंसी के बाहर गार्ड कर रहे हैं तो फिर इसका लेखा-जोखा कोई अधिकारी चेक क्यों नहीं करता है, इसका जवाब अधिकारियों के पास नहीं है. एमएस डॉ. केके टम्टा कहते हैं कि इस सिस्टम में जो लेन-देन हो रहा है, उससे हॉस्पिटल प्रबंधन को लेना-देना नहीं है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जो स्ट्रेचर या व्हीलचेयर के पैसे वापस नहीं ले जाते, उनका पैसा किसकी जेब में जा रहा है.

स्ट्रेचर पर इमरजेंसी

दून हॉस्पिटल की इमरजेंसी खुद स्ट्रेचर पर है. इमरजेंसी वार्ड में 3 ईएमओ कार्यरत हैं. जबकि इमरजेंसी की 3 शिफ्ट के लिए 5 ईएमओ होने जरूरी हैं. ऐसे में जूनियर डॉक्टर्स के भरोसे इमरजेंसी चल रही है. इन दिनों गर्मी के प्रकोप के चलते रोजाना 200 के करीब केस आ रहे हैं. जो कि स्ट्रेचर पर लेटकर घंटों अपनी बारी का इंतजार करते हैं. इमरजेंसी वार्ड में 8 बेड हैं जो हमेशा फुल रहते हैं, ऐसे में बरामदे में ही स्ट्रेचर पर इलाज किया जाता है.

Posted By: Ravi Pal