ये ताजमहल असल से जरा छोटा है. काफ़ी छोटा है. यह किसी नदी के किनारे भी नहीं है.


न इसमें पच्चीकारी का काम है और न ये कीमती पत्थरों से सजाया गया है.बस जज़्बा वही है जो शाहजहाँ का था. अपनी बीवी से बेपनाह मोहब्बत.बेगम से वादाउस वादे का ज़िक्र करते हुए हसन कादरी कहते हैं, "ऐसा है कि मेरे कोई बच्चा नहीं था और उसकी वजह से बेगम को यह एहसास था कि हमारा कोई ज़िक्र भी नहीं करेगा, कोई नाम न लेगा. मैंने उससे यह वादा किया था कि अगर उसका इंतकाल मुझसे पहले हो गया तो मैं उसका ऐसा मकबरा बनाउंगा कि लोग उसको बरसों याद रखेंगे."यादगारफ़ैजुल हसन कादरी की उम्र 77 साल हो चुकी है. उनके पास अब वक्त और पैसे दोनों की कमी है.
लेकिन वो किसी से कोई मदद नहीं लेते. इस पर हसन कादरी कहते हैं, " ये किसी पीर का मज़ार नहीं है. यह सिर्फ मेरी बीवी का मज़ार है और बीवी का मज़ार होने की वजह से अगर मैं किसी से कुछ पैसा लेकर इसमें लगाऊं तो लोग कहेंगे कि कब्र चंदे की है. ये नहीं हो सकता."एहसास


कादरी ने अपनी बेगम को याद करते हुए एक शेर पढ़ा, "मेरी जिंदगी में या रब ये कैसी शाम आई. न दवा ही काम आई और न दुआ ही."जैसे जैसे इस नए ताजमहल की खबर फैली है. आस-पास के देहात के लोग इसे देखने आने लगे हैं.कादरी का ताजमहलफ़ैजुल हसन और उनके ताजमहल का जिक्र कभी अफ़सानों में तो नहीं होगा.लेकिन उनके जाने के बाद भी जब-जब लोग इस इमारत को देखेंगे तो उनकी गैरमामूली दास्तां-ए-मोहब्बत का जिक्र जरूर होगा.

Posted By: Satyendra Kumar Singh