विश्व फ़ुटबॉल संस्था यानी फ़ीफ़ा ने साल 2017 में होने वाले अंडर-17 विश्व कप फ़ुटबॉल टूर्नामेंट की मेज़बानी भारत को सौंपी है.


भारत के फ़ुटबॉल इतिहास में ये पहला अवसर है जब वह किसी भी स्तर के विश्व कप की मेज़बानी करेगा. इससे पहले भारत विश्व कप हॉकी टूर्नामेंट, विश्व कप क्रिकेट टूर्नामेंट, एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल और दूसरे खेलों के भी न जाने कितने टूर्नामेंट आयोजित कर चुका है.वैसे जूनियर और सीनियर स्तर पर इन दिनों भारतीय फ़ुटबॉल के सितारे इतने चमकदार नहीं हैं और न ही भारतीय फ़ुटबॉल टीम में कोई इतना बड़ा सितारा है, जिसके दम पर आम दर्शक मैदान में आ सकें.इसके बावजूद अंडर-17 विश्व कप की फ़ुटबॉल टूर्नामेंट की मेज़बानी के दम पर भारत की कोई फ़ुटबॉल टीम किसी भी स्तर पर पहली बार विश्व कप खेलेगी.विश्व कप फ़ुटबॉल टूर्नामेंट की मेज़बानी की दौड़ में भारत ने दक्षिण अफ्रीका, उज़्बेकिस्तान और आयरलैंड को पीछे छोड़ा है. हर दो साल में होने वाले इस टूर्नामेंट में कुल मिलाकर 24 टीमें भाग लेती हैं.


आयोजन के मायने
"निश्चित रूप से यह एक बहुत बड़ी ख़बर हैं, लेकिन इससे पहले भी यह एशिया के कई देशो को मिल चुका हैं. साल 1985 में शुरूआत में ही चीन को मिला. यह कोई बहुत लोकप्रिय टुर्नामेंट नहीं हैं."-नोवी कपाड़िया, फुटबॉल विशेषज्ञ

अब एक ऐसा देश जिसकी सीनियर फ़ुटबॉल टीम की फ़ीफ़ा रैंकिंग बस 150 से कुछ कम हो और जूनियर स्तर पर खिलाड़ियों का कोई नाम तक न जानता हो, वहां विश्व कप फ़ुटबॉल टूर्नामेंट जैसे बड़े आयोजन के क्या मायने हैं?इसे लेकर भारतीय फ़ुटबॉल को बेहद करीब से देखने वाले जाने माने फ़ुटबॉल विशेषज्ञ नोवी कपाड़िया मानते हैं, "निश्चित रूप से यह एक बहुत बड़ी ख़बर है, लेकिन इससे पहले भी यह एशिया के कई देशों को मिल चुका हैं. साल 1985 में शुरूआत में ही चीन को मिला. यह कोई बहुत लोकप्रिय टूर्नामेंट नहीं हैं. अधिकतर देश इसकी मेज़बानी को लेकर अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं और न ही इससे कोई बहुत आर्थिक लाभ होता है."अडंर-17 विश्व कप से भारत को सिर्फ़ ये फ़ायदा होगा कि भारतीय फ़ुटबॉल का जाल केवल गोवा, बंगाल और दक्षिण पूर्व के राज्यों तक ही फैला है. इसकी मेज़बानी से भारत पूरे देश में इसकी जागृति फैला सकता है.अंडर-17 विश्व कप फ़ुटबॉल टूर्नामेंट की मेज़बानी भारत कम से कम 8 राज्यों में करेगा. इनमें दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, कोच्चि, चेन्नई, गुवाहाटी, मझगांव और बेंगलुरू शामिल हैं.

इसे लेकर कपाड़िया कहते हैं, "दिल्ली में अगर मुक़ाबले हों तो वह नेहरू स्टेडियम की जगह अंबेडकर स्टेडियम में हो, ताकि अधिक से अधिक लोग मैच देख सकें. ऐसा नेहरु स्टेडियम में नहीं हो सकता, क्योंकि इतने बड़े स्टेडियम में 5-6 हज़ार दर्शकों की भीड़ का पता भी नहीं चलेगा. इस टूर्नामेंट के लिए बड़े-बड़े स्टेडियम बनाने से लाभ की जगह नुकसान होगा."स्टेडियम का ध्यान"इंग्लैंड या फिर जर्मनी या फिर जिनकी लीग टेलिविज़न पर आती हैं वह अधिकतर इसमें कम ही भाग लेते हैं. इस स्तर पर सबसे अच्छा खेलने वालो में अर्जेंटीना, ब्राज़ील और नाइजीरिया. एशियाई देशों में केवल सऊदी अरब ने इसे एक बार अपने नाम किया हैं.""अधिक से अधिक लोग भारत के मैच देखने आएंगे या फिर अगर फ़ाइनल अर्जेंटीना और ब्राज़ील के बीच हो तो कुछ अधिक दर्शक आ सकते हैं. अब ऐसा तो नहीं है कि कोलकाता का साल्ट लेक स्टेडियम एक लाख 20 हज़ार लोगों से भर जाएगा.विश्व कप के लिए अगर नए स्टेडियम बने तो यह भी देखना होगा कि उनका इस्तेमाल भविष्य में लगातार हो न कि राष्ट्रमंडल खेलों की तरह हो कि बाद में ताले ही लगे रहें.
अंडर-17 विश्व कप से जुड़ी एक ख़ास बात नोवी बताते हैं, "इंग्लैंड या फिर जर्मनी या फिर जिनकी लीग टेलीविज़न पर आती हैं, वह अधिकतर इसमें कम ही भाग लेते हैं. इस स्तर पर सबसे अच्छा खेलने वालो में अर्जेंटीना, ब्राज़ील और नाइजीरिया हैं. एशियाई देशों में केवल सऊदी अरब ने इसे एक बार अपने नाम किया है."समय बहुत कम है, शायद अधिक से अधिक साढ़े तीन साल. ऐसे में स्टेडियमों और खिलाड़ियों को तैयार करना भारतीय फ़ुटबॉल संघ की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी हैं.

Posted By: Subhesh Sharma