दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की कैम्पेन में प्रतियोगी छात्रों, अधिवक्ताओं और आम शहरियों की दिखी पीड़ा

शहरी इलाका हो या ग्रामीण क्षेत्र केन्द्र और राज्य सरकार की ओर से उनकी सुविधाओं और समान न्याय देने के लिए बनाया जाने वाला कोई भी कानून सही ढंग से लागू नहीं हो पाता है। ग्रास रूट पर महज 20 फीसदी कानूनों का ही इम्प्लीमेंटेशन होता है। इम्प्लीमेंटेशन की राह में अवेयरनेस की कमी सबसे बड़ी बाधा बनी तो प्रशासनिक सिस्टम की लचर कार्यशैली को माना गया। यह पीड़ा शुक्रवार को दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की गर्मी है क्या कैम्पेन के तहत रोजमर्रा की जिंदगी में जूझते प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवाओं, अधिवक्ताओं व आम शहरियों के बीच दिखाई दी।

जीएन झॉ हॉस्टल: जानते ही नहीं लॉ

शुक्रवार को कैम्पेन का आगाज जीएन झॉ हॉस्टल से हुआ। देश में लॉ इम्प्लीमेंटेशन को लेकर प्रतियोगी छात्र ज्यादा मुखर रहे। सुरेश कुमार यादव ने बताया कि सरकार को कानून बनाने के साथ ही उसके बारे में भी सही तरीके से समाज को जानकारी देनी चाहिए। संसद तो कानून बना देती है लेकिन आम आदमी को उसकी समझ नहीं होती है। हाई प्रोफाइल केस न हो तो दहेज हत्या व दुष्कर्म जैसे संगीन जघन्य अपराधों में पीडि़त पक्ष जानकारी के अभाव में दर दर की ठोकरें खाता है। अरविंद पांडेय ने बताया कि आरबीआई ने अभी हाल ही में दस रुपए के सिक्के को लेकर गाइड लाइन जारी की लेकिन जहां देखो हर कोई उसको लेकर नोक-झोंक करता रहता है। ऐसा अवेयरनेस की कमी को लेकर हो रहा है। क्योंकि, प्रशासनिक अधिकारी इसका इम्प्लीमेंटेशन नहीं करा पा रहे हैं। शोध छात्र मुकेश कुमार यादव ने बताया कि कानून में लैक होने की वजह से ही विजय माल्या जैसे लोग बाहर घूम रहे हैं। सिर्फ कारर्पोरेट घरानों की सुविधाओं को लेकर ही कई कानून बनाए गए हैं।

डिस्ट्रिक्ट कोर्ट: कानून का पालन कराने वाले शिथिलता बरतते है

कैम्पेन के दूसरे चरण में दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम जिला अधिवक्ता संघ के लाइब्रेरी हाल में पहुंची। वरिष्ठ अधिवक्ता योगेश्वर अस्थाना ने बताया कि नगर निगम में दाखिल खारिज की कार्रवाई में कोई भी अधिकारी नगर निगम अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन नहीं करता। वे सिर्फ अपने विवेक का पालन न करते हुए दाखिल खारिज की कार्रवाई को करते हैं। स्वामित्व निर्धारण करने का क्षेत्राधिकार न होते हुए भी गैरकानूनी ढंग से स्वामित्व का निर्धारण किया जाता है। जिससे वादकारियों को अपील दाखिल करनी पड़ती है। निगम अधिकारियों को उनकी गलती के लिए दंडित किए जाने की कार्रवाई नहीं की जाती। अधिवक्ता डीके श्रीवास्तव ने बताया कि लॉ इम्प्लीमेंटेशन के लिए समय-समय पर पीठासीन अधिकारी और न्यायिक अधिकारियों की गोष्ठी व कान्फ्रेंस होना चाहिए। जिससे नए कानून की जानकारी विस्तृत रूप से हो सके। अधिवक्ता संजीव सिंह ने बताया कि कानून में दहेज लेना और देना दोनों ही संज्ञेय अपराध माना गया है। लेकिन दहेज लेने वालों को ही सजा मिलती है। आशुतोष तिवारी ने बताया कि रेवेन्यू के मामलों में कानून में लेखपाल को दंड देने का कोई प्रावधान नहीं है। चाहे वह अपनी मनमर्जी से कुछ भी कर ले। अधिवक्ता कैलाशनाथ श्रीवास्तव, सुशील कुमार, श्यामजी टंडन व विवेक कुमार मिश्रा ने बताया कि पुलिस विभाग में सुविधा शुल्क दिए बिना कोई कार्य नहीं किया जाता है। फाइनल रिपोर्ट के भी मामले में फाइनल रिपोर्ट कोर्ट भेजने के लिए सीओ कार्यालय में सुविधा शुल्क मांगा जाता है।

सरोजनी नायडू मार्ग: कानून से आम आदमी ही होता है परेशान

डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के बाद दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम वाईएमसीए स्कूल के पास पहुंची। आनंद बब्बर ने बताया कि कानून तो देश में बहुत बनाए गए हैं लेकिन हमेशा से उसके गिरफ्त में आम आदमी ही परेशान होता है। ट्रैफिक पुलिस के जवान अपनी ड्यूटी करने के बजाए नेताओं की रखवाली करते हैं। इसलिए ट्रैफिक नियम का पालन सही से नहीं हो पाता है। संजीव सिंह ने बताया कि ताकतवर इंसान के लिए कानून का कोई मायने नहीं है। उसका सारा इम्प्लीमेंटेशन सिर्फ आम आदमी के लिए होता है। चंदन कुमार बोस ने बताया कि कानून का अनुपालन न होने के लिए भ्रष्टाचार जिम्मेदार है। अगर भ्रष्टाचार को समाप्त कर दिया जाए तो कानून सही आकार से समाज में प्रभावी होगा। आशीष ने बताया कि गैस सब्सिडी छोड़ने के लिए सिर्फ आम आदमी को ही कहा जाता है लेकिन नेताओं और नौकरशाहों को इसमें क्यों नहीं शामिल किया जाता है।

समाज में किसी भी कानून के इम्प्लीमेंटेशन लागू कराने में सबसे ज्यादा जरूरी अवेयरनेस होता है। शहर हो या ग्रामीण इलाका अवेयरनेस प्रोगाम चलाया ही नहीं जाता है। अक्सर प्रशासनिक अधिकारी अपने कर्तव्यों को लेकर उदासीनता बरतते है।

अश्रि्वनी मौर्या, जीएन झॉ हॉस्टल

राजनैतिक व्यवस्था में सुधार किए बिना कोई भी कानून प्रभावी नहीं हो सकता है। पार्टियां अपने ढंग से कानून को बनाने का काम करती हैं लेकिन उसका अनुपालन कराने की जिम्मेदारी से हमेशा बचती हैं। ऐसा कब तक चलता रहेगा।

सनी कुमार सिंह, जीएन झॉ हॉस्टल

कानून के अनुपालन में पुलिस विभाग ही काफी हद तक जिम्मेदार है। जिसके चलते मुकदमें कई वर्षो तक चलते रहते हैं। मुकदमों का निस्तारण समय से नहीं हो पाता है। आरोप पत्र पेश करने के बाद वे भूल जाते हैं कि गवाही देने की जिम्मेदारी भी उनकी है।

राकेश कुमार तिवारी, अध्यक्ष जिला अधिवक्ता संघ

दंड प्रक्रिया संहिता में कही भी यह प्रावधान नहीं है कि 156 '3' में दी गई अर्जी को परिवाद में परिवर्तित किया जाए। अदालतें परिवाद में परिवर्तित करके स्वयं कोर्ट के लिए मुकदमों का अम्बार लगा देती हैं।

संतोष कुमार यादव, पूर्व उपाध्यक्ष जिला अधिवक्ता संघ

आम आदमी को ध्यान में रखकर कानून बनाया ही नहीं जाता है। अगर बनाया भी गया होगा तो उसका कार्यान्वयन प्रशासनिक स्तर पर ही दम तोड़ देता है। क्योंकि अवेयरनेस कराने के नाम पर सिर्फ कोरम पूरा करने का काम किया जाता है।

विशाल जायसवाल, वाईएमसीए के सामने

कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी जिन हाथों में सौंपी गई वे कही न कही से शिथिलता बरतते हैं। जिससे चलते कानून के पालन में निरंतर क्षीणता आती जा रही है। कानून के चलते जिनकी सुरक्षा चाही गई वे उस शिथिलता का शिकार होकर अभी भी दुखी हैं। अदालतें यथा स्थिति का आदेश देती हैं लेकिन उनका पालन नहीं हो पाता है। फरियादी अपनी एफआईआर थाने में देता है। थानेदार की मर्जी है कि वह लिखे या ना लिखे। उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम में इजरा की कार्रवाई कई साल चलती है। सिविल के मुकदमों में पक्षकार के निधन पर उनके वारिसान के सबस्टीट्यूटशन में अनावश्यक विलंब होता है। यातायात के नियमों को सुविधा शुल्क से तौला जाता है।

शंकर लाल गुप्ता,

वरिष्ठ अधिवक्ता

Posted By: Inextlive