बॉलीवुड की बायोपिक फैक्ट्री में एक और कमजोर फिल्म का निर्माण। गुल मकई सबसे कम उम्र की नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला पर फिल्म है। एक बात समझ से परे है कि आप अगर किसी इंसान की बायोपिक बना रहे हैं तो सबसे अव्वल शर्त तो यही होनी चाहिए कि उनके किरदार के साथ जस्टिफाई हो सके। वरना बायोपिक की फैक्ट्री में एक और कबाड़ जमा करने की क्या जरूरत थी। हम ऐसा क्यों कह रहे हैं। पढ़ें पूरा रिव्यू


फिल्म : गुल मकईकलाकार: रीमा शेख, अतुल कुलकर्णीनिर्देशक : अमजद खानकहानीफिल्म की कहानी लड़कियों के एजुकेशन की वकालत करने वाली मलाला की जिंदगी पर आधारित है। वो अपने हौसले से उन्होंने कैसे आतंक वादियों के मंसूबों को हराने में कामयाब रही। उनके सफर और कामयाबी पर आधारित है फिल्म। कहानी स्वात वैली से शरू होती है। वहां आतंकवादी महिलाओं के पढ़ाई के खिलाफ हैं। ऐसे में मलाला कैसे ठोस कदम उठाती है। फिल्म उसकी ही दास्तां है। निर्देशक से मगर एक ही सवाल है कि क्या ऐसे विषयों पर फिल्म बनाने के लिए विषय को बोरिंग ट्रीटमेंट देना जरूरी था।क्या है अच्छाकंसेप्ट अच्छा है।क्या है बुरा
कहानी का बोरिंग ट्रीटमेंट। फिल्म को फीचर फिल्म रूप देना ही नहीं था। फिल्म एंगेज नहीं कर पाती है। बेहतर होता कि फिल्म को डॉक्युमेंट्री का रूप दिया जाता। फिल्म देखने के बाद लगता है कि दुनिया में अच्छी बायोपिक देखने के तो कई विकल्प हैं। हम दिन के तीन घंटे क्यों बर्बाद करें।एक्टिंग


रीमा गुल के रूप में बिल्कुल फिट नहीं बैठती हैं। अतुल कुलकर्णी भी अपने किरदार से प्रभावित नहीं कर पाते हैं। फिल्म में रीमा साहसी कम, बेबस जैसी अधिक नजर आईं हैं। ऐसा लगता है निर्देशक ने केवल लुक की समानता को देख कर उनका चुनाव किया है, ।वर्डिक्टऐसे भी इस फिल्म के बारे में लोगों को खास जानकारी नहीं है। फिल्म का बोरिंग ट्रीटमेंट फिल्म को खास दर्शक नहीं दिला पाएगा।बॉक्स ऑफिस प्रीडिक्शन : 5 करोड़रेटिंग : 2 स्टारReviewd By : Anu

Posted By: Vandana Sharma