पिछले दिनों बिहार के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल पीएमसीएच में एक एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के साथ कथित तौर पर भेदभाव करने और इलाज में बेरुखी दिखाने का मामला सामने आया था.


इस मरीज की बाद में मौत हो गई. इसके बाद मीडिया में आई ख़बरों के दबाव में राज्य के स्वास्थ्य विभाग की ओर से मामले की जांच के लिए एक टीम का गठन किया था.जांच टीम की रिपोर्ट में उस मरीज के साथ पीएमसीएच के डॉक्टरों की ओर से किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किए जाने की बात सामने आई है.साथ ही अस्पताल प्रबंधन का ये भी दावा है कि पीएमसीएच में एचआईवी संक्रमित मरीजों का हर मुमकिन इलाज किया जाता है.लेकिन पिछले कुछ महीनों से अपने इलाज के लिए पीएमसीएच का चक्कर काट रहे तीन एचआईवी संक्रमित मरीजों की पीड़ा कुछ दूसरी ही कहानी बयान करती है."हर हफ्ते चक्कर"जानकी देवी (बदला हुआ नाम) बिहार की राजधानी पटना से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर सगुना मोड़ के पास एक मोहल्ले में रहती हैं.


पति की मौत के बाद बेटे ने एचआईवी संक्रमित होने के कारण घर से निकाल दिया है. अब वो मजदूरी कर किसी तरह अपना गुज़ारा करती हैं.इस बीच कुछ दिनों पहले बीमार होने के बाद जांच के दौरान पता चला कि ऑपरेशन कर उनका गर्भाशय निकालना पड़ेगा.

इसके बाद करीब दो महीने पहले वह भी बाकी दूसरे कई मरीजों की तरह एचआईवी संक्रमित होने की बात छुपाकर पीएमसीएच में भर्ती हुईं. जांच के बाद डॉक्टर ऑपरेशन के लिए तैयार भी हो गए.जानकी के अनुसार उन्हें ऑपरेशन थिएटर के अंदर भी ले जाया गया. लेकिन ऑपरेशन से ठीक पहले किए जाने वाले जरूरी एचआईवी और हेपेटाइटिस टेस्ट के बाद जब उनका राज़ खुला तो उनका ऑपरेशन नहीं किया गया.उनके अनुसार डॉक्टरों ने ऑपरेशन न करने की वजह ये बताई कि उनकी धड़कनें अचानक काफी तेज़ चलने लगी थीं.जानकी बताती हैं कि ऑपरेशन थिएटर से बाहर निकालने के बाद उन्हें फिर से ओपीडी में भेज दिया गया और इसके बाद दस से ज़्यादा चक्कर लगाने के बाद भी अब तक उनका ऑपरेशन नहीं हो पाया है.जानकी के अनुसार डॉक्टर कभी ऑपरेशन के लिए ज़रूरी सामान नहीं होने का बहाना बनाते हैं तो कभी कुछ और.एचआईवी संक्रमित मरीजों के लिए काम करने वाली संस्था बीएनपी प्लस के अध्यक्ष ज्ञानरंजन मेडिकल रिपोर्ट्स का हवाला देकर बताते हैं कि जानकी देवी का गर्भाशय निकाला जाना एकदम ज़रूरी हो गया है, नहीं तो उनकी मौत भी हो सकती है."एंडोस्कोपी को तैयार नहीं"

तीन साल पहले 2010 में बिहार के आरा ज़िले के जगमोहन तिवारी (बदला हुआ नाम) को ये पता चला कि वे एचआईवी संक्रमित हैं. इसके कुछ दिनों बाद पीएमसीएच के एंटी रिट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) सेंटर में उनका इलाज शुरू हुआ.तिवारी अपना दर्द सुनाते हैं, "लगभग चार महीने पहले भोजन निगलने और पानी पीने में परेशानी शुरू हो गई और भूख लगना भी कम हो गई. इसके बाद पीएमसीएच के ही मेडिसिन विभाग में जांच कराई. डॉक्टर ने एंडोस्कोपी कराने के लिए दूसरे मेडिकल स्टाफ के पास भेजा.""मेडिकल स्टाफ ने एचआईवी संक्रमित होने के कारण न सिर्फ एंडोस्कोपी करने से मना किया बल्कि धक्के मारकर बाहर भी निकाल दिया. इसके बाद दो बार और मेडिसिन विभाग में एंडोस्कोपी कराने की कोशिश कर चुका हूँ लेकिन अब तक असफल ही रहा हूँ.""अस्पताल में एचआईवी संक्रमित मरीजों के साथ कोई भेद-भाव नहीं किया जाता है और उनका हर मुमकिन इलाज होता है."-डॉक्टर विमल कारक, पीएमसीएचएचआईवी संक्रमित होने के साथ-साथ खान-पान अनियिमित हो जाने के कारण अब काफी कमज़ोर हो चुके जगमोहन की एक और परेशानी ये है कि उन्हें आरा से आकर अपने इलाज के लिए दौड़ लगानी पड़ रही है. 12 सितंबर को आरएमआई मीटिंग में आरा से देर से पहुंचने के कारण वो उपस्थित नहीं हो पाए थे.
नियम के मुताबिक मीटिंग में मरीज की उपस्थिति अनिवार्य है और इसके बगैर उस दिन उनके मामले पर विचार नहीं किया गया. ऐसे में अब उन्हें अपने इलाज की आशा आंखों में लिए अगले महीने की मीटिंग का इंतज़ार करना पड़ेगा.हालांकि पीएमसीएच प्रबंधन मरीजों से भेदभाव के सभी आरोपों को पूरी तरह नकार रहा है. पीएमसीएच के उपाधीक्षक डॉक्टर विमल कारक का कहना है, "अस्पताल में एचआईवी संक्रमित मरीजों के साथ कोई भेद-भाव नहीं किया जाता है और उनका हर मुमकिन इलाज होता है."अपने दावे के पक्ष में वे कहते हैं कि पिछले हफ्ते ही सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष ने एक एचआईवी संक्रमित मरीज का ऑपरेशन किया है.

Posted By: Satyendra Kumar Singh