अगर आप नेट न्यूट्रैलिटी और उसके फायदे के बारे में नहीं जानते हैं तो आगे आपको बहुत काम की जानकारी मिलने वाली है। मान लीजिए कि भारत में नेट न्यूट्रैलिटी की व्‍यवस्‍था खत्म हो जाए तो आपको अपने WhatsApp डाटा पैक के लिए 60 रुपए तो ट्विटर वाले डाटा पैक के लिए 200 रुपए अलग से अदा करने पड़ सकते हैं। क्‍या ये व्‍यवस्‍था आपको पसंद आएगी?

हाल ही में अमेरिका में नेट न्यूट्रैलिटी को लेकर एक पुराने कानून को रद्द करने का फैसला लिया गया है और इस फैसले को लेकर अमेरिका ही नहीं दुनिया भर में तमाम बहस और विरोध शुरू हो गया है। वैसे तो नेट न्यूट्रैलिटी का मुद्दा अमीर और गरीब सभी यूजर्स से जुड़ा है लेकिन ज्यादातर लोग इसके बारे में सब कुछ नहीं जानते।

 

आखिर क्या है इंटरनेट न्यूट्रैलिटी?

किसी भी इंटरनेट यूजर को एक समान स्पीड और एक समान कीमत पर इंटरनेट सर्विस दिए जाने का कंसेप्ट ही कहलाता है 'इंटरनेट न्यूट्रैलिटी'। इंटरनेट सर्विस देने वाली कंपनियों में हर देश के टेलीकॉम ऑपरेटर्स मेन रोल अदा करते हैं। नेट न्यूट्रैलिटी के दौरान कोई भी कंपनी अलग-अलग वेबसाइट या अलग-अलग यूजर की डाटा जरूरतों के आधार पर डाटा की अलग-अलग कीमतें नहीं ले सकती और ना ही वो किसी वेबसाइट या ऐप के लिए इंटरनेट को ब्लॉक कर सकती हैं और ना ही उसकी नेट स्पीड कम कर सकती है। आसान भाषा में समझे तो किसी भी रोड पर चल रहे ट्रैफिक में साइकिल से लेकर मोटर कार और ट्रक शामिल होते हैं और ट्रैफिक सिस्टम में उन सबके साथ एक जैसा बर्ताव किया जाए तो वह नेट न्यूट्रैलिटी कहलाएगी।

 

 

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नेट न्यूट्रैलिटी के खिलाफ दिए जाते हैं ऐसे तर्क

तमाम टेलीकॉम एक्सपोर्ट नेट न्यूट्रैलिटी के खिलाफ एक तर्क बड़ी मजबूती से रखते हैं। उनका कहना है कि सरकारों को ओपन मार्केट सिस्टम में काम करने वाली कंपनियों के कामकाज में दखल नहीं देना चाहिए और कॉन्पिटिटिव ओपन मार्केट सिस्टम के बारे में यह कहा भी जाता है कि जो कंपनी सबसे कम कीमत पर बेहतर सेवाएं देगी, वही मार्केट लीडर बनेगी। तमाम टेल्कोज यह भी लॉजिक देते हैं कि उन्होंने करोड़ों रुपए खर्च करके अपने वायरलेस नेटवर्क यानी टावर्स को खड़ा किया है और आजकल यूजर फोन नेटवर्क से कॉलिंग की बजाए सस्ते इंटरनेट के साथ WhatsApp जैसी एप पर फ्री में वॉयस या वीडियो कॉल कर रहे हैं।

 

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इंटरनेट न्यूट्रैलिटी खत्म हो जाए तो क्या होगा

अगर अमेरिका ही नहीं बल्कि भारत में भी नेट न्यूट्रैलिटी खत्म हो जाए तो टेलिकॉम ऑपरेटर अलग अलग डाटा सर्विसेस के साथ-साथ कॉलिंग सर्विस के लिए भी एक्स्ट्रा पैसे वसूल कर सकेंगे। कहने का मतलब यह है कि हर एक सर्विस के लिए अलग अलग रेट चार्ट हो सकता है। यही नहीं टेलीकॉम कंपनियां ज्यादा डाटा कंज्यूम करने वाली सर्विसेस को ब्लॉक कर सकती हैं या उनके लिए इंटरनेट स्पीड को धीमा कर सकती हैं। या फिर कंपनियां किसी ऐसी ऐप के लिए फ्री डाटा भी दे सकती हैं जो कंपनी को अलग से पैसे दे रही हो। ऐसे तो मार्केट का हेल्थी कॉम्पटीशन ही खत्म हो जाएगा। कुछ साल पहले आया एयरटेल जीरो प्लान ऐसे ही सर्विस का नमूना था। नेट न्यूट्रैलिटी को लेकर देश में मचे घमासान के बाद कंपनी ने खुद ही इस प्लान को बंद कर दिया।


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Posted By: Chandramohan Mishra