दवाइयां बढ़ाएंगी सिरदर्द
- अब बगैर डॉक्टर के पर्चे के मेडिकल स्टोर से नहीं मिल सकेंगी 46 सॉल्ट शामिल दवाइयां
- भारत सरकार ने 1 मार्च से लागू किया शेड्यूल एच 1 - दवाइयां देते वक्त मेडिकल स्टोर्स को रखना होगा तीन साल तक रिकार्ड मैंटेन - इतने मुश्किल नियमों से डरे मेडिकल स्टोर संचालक nikhil.sharma@inext.co.in Meerut : सिर में हल्का दर्द है, जुकाम है या फिर खांसी। अब तक इन बीमारियों के लिए डॉक्टर्स के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ती थी, सीधे मेडिकल स्टोर से दवाई मिल जाती थी, लेकिन अब बिना सर्टिफाइड डॉक्टर के पर्चे के कोई भी दवाई मेडिकल स्टोर से नहीं मिल पाएगी। परेशानी मरीजों की ही नहीं मेडिकल स्टोर की भी बढ़ गई है, जिसमें मेडिकल स्टोर को दवाई देते वक्त तीन साल तक का रिकार्ड मैंटेन करना होगा। यानि अब दवाई मरहम नहीं सिरदर्द बन गई है।भारत सरकार का महत्वपूर्ण फैसला
भारत सरकार स्वास्थ्य मंत्रालय ने औषधि और प्रसाधन सामग्री (चौथा संसोधन) नियम 2013 में संसोधन किया है। इसके तहत सरकार ने दवाइयों में इस्तेमाल होने वाले 46 सॉल्ट को प्रतिबंधित श्रेणी में ला दिया है। अब बिना डॉक्टर के पर्चे के मेडिकल स्टोर ये दवाईयां मरीज को नहीं दे सकते हैं। इसके पीछे सरकार की सोच है कि लगातार एंटीबायोटिक्स का उपयोग बढ़ने के कारण लोग इसके आदी हो रहे हैं और इलाज के दौरान सामान्य दवाइयां तो उन पर असर ही नहीं कर रही हैं। ऐसे में हाई पावर ड्रग का इस्तेमाल करने के अलावा कोई चारा नहीं बच रहा। इसी बात को ध्यान में रखकर इनकी खुली बिक्री पर रोक लगाई जा रही है। मगर इसमें मेडिकल स्टोर्स संचालकों के लिए अनिवार्य की गई शर्ते परेशानी का सबब बन रही हैं।
केमिस्टों की ये है परेशानी केमिस्ट एसोसिएशन के पदाधिकारियों की मानें तो उन्हें कानून के मुताबिक रिकार्ड मैंटेन करना होगा। जिसमें अतिरिक्त कागजी कार्रवाई का बोझ बढ़ जाएगा। ऐसे में तीन साल तक का रिकार्ड तो रखना ही होगा, साथ ही डॉक्टर्स का नाम, रिकार्ड, क्वांटिटी, बैच नंबर आदि भी लिखना होगा। वापसी की दवाईयों पर फंसेगा पेच अभी तक मरीज बची हुई दवाईयों को मेडिकल स्टोर्स पर वापिस कर देते थे, जिनके बदले में उन्हें पैसे मिल जाते थे, लेकिन अब जब पूरा रिकार्ड मैंटेन करना होगा, तो ऐसे में ये दवाइयां वापिस करना बेहद मुश्किल हो जाएगा। मरीजों की बढ़ गई मुश्किलशेड्यूल एच 1 में शामिल हुई 46 ड्रग्स में से कई ऐसी हैं जो डॉक्टर्स पहले से लिखते रहे हैं। मगर कुछ ऐसी हैं जो मरीज सीधे ही खरीद लेते हैं। बहुत बार डॉक्टर द्वारा लिखी गई दवाई का नाम मरीज याद कर लेते हैं और मेडिकल स्टोर से सीधा खरीद लेते हैं। जबकि फैमिली डॉक्टर्स से फोन पर कंसल्ट करने के बाद भी मरीज दवाई मेडिकल स्टोर से ले लेते थे, लेकिन अब नया कानून आने से मरीज को हर बार डॉक्टर को दिखाना होगा और उनके पर्चे से ही दवाई लेनी होगी। ऐसे में दवाई से महंगा डॉक्टर की फीस हो जाएगी।
देहात के मरीज तो फंस गए गौरतलब है कि देहात में सर्टिफाइड डॉक्टर नहीं मिलते हैं। जहां झोलाछाप डॉक्टर को दिखाकर मरीज मेडिकल स्टोर से दवाइयां लेते रहे हैं। लेकिन अब देहात में मरीजों के लिए परेशानी हो जाएगी, उन्हें इलाज के लिए शहर ही आना होगा और सर्टिफाइड डॉक्टर को दिखाकर दवाई लेनी होगी। ऐसे में देहात का मरीज अगर क्रिटिकल होता है तो उसे दिखाने भी इमरजेंसी में सिटी ही आना होगा। बॉक्स डॉक्टर्स से हो सकती थी शुरुआतकेमिस्ट एसोसिएशन के पदाधिकारियों की मानें तो इन ड्रग्स पर बैन की शुरुआत डॉक्टर्स से ही हो सकती थी, अगर डॉक्टर ही मरीजों को ऐसी दवाईयां नहीं लिखकर देंगे तो मेडिकल स्टोर ये दवाईयां दे ही नहीं पाएंगे।
अब क्या होगा दरअसल, 1 मार्च 2014 से मैन्यूफैक्चर होने वाली हर दवाईयों पर शेड्यूल एच 1 लिखना अनिवार्य हो जाएगा। जिन भी दवाईयों में ये 46 साल्ट मौजूद होंगे वो बिना किसी डॉक्टर के पर्चे के नहीं मिल सकेंगी जबकि इनका रिकार्ड भी मेडिकल स्टोर्स को रखना होगा। शेड्यूल एच 1 के कानून में मेडिकल स्टोर को रिकार्ड मैंटेन करना होगा। इसका बोझ सीधा मेडिकल स्टोर्स पर पडे़गा। दवाइयों के प्रतिबंध की शुरुआत डॉक्टर्स से भी हो सकती थी। कई डॉक्टर्स के पास रजिस्ट्रेशन नंबर नहीं होता, ऐसे में कहां से उनका रजिस्ट्रेशन नंबर का रिकार्ड मैंटेन करेंगे। -रजनीश कौशल, महामंत्री मेरठ केमिस्ट एसोसिएशन तीन साल तक रिकार्ड मैंटेन रखना तो किसी भी केमिस्ट के लिए मुश्किल साबित होगा। प्रतिबंधित दवाइयां तो पहले ही लोग सीधे खरीद लेते थे। लेकिन डॉक्टर ही नहीं लिखकर देते तो ये अच्छा होता। -इंद्रपाल सिंह, अध्यक्ष मेरठ केमिस्ट एसोसिएशनसरकार का ये नियम 1 मार्च से लागू हो गया है। इस तारीख से मैन्यूफैक्चर होने वाली हर दवाई को बेचते वक्त स्टोर्स को रिकार्ड मैंटेन करना होगा। बिना पर्चे के दवाई बेचना गैर कानूनी होगा। पकड़े जाने पर जुर्माना और जेल तक हो सकती है।
-संदीप चौधरी, ड्रग इंस्पेक्टर बैन 46 साल्ट के नाम - alprazolam - balofloxacin - buprenorphine - capreomycin - cefdinir - cefditoren - cefepime - cefetamet - cefixime - cefoperazone - cefotaxime - cefpirome - cefpodoxime - ceftazidime - ceftubuten - ceftizoxime - ceftriaxone - chlordiazepoxide - clofazimine - codeine - cycloserine - diazepam - diphenoxylate - doripenem - ertapenem - ethambutol hydrochloride - ethionamide - feropenem - gemifloxacin - imipenem - isoniazid - levofloxacin - meropenem - midazolam - moxifloxacin - nitrazepam - pentazocine - prulifloxacin - pyrazinamide - rifabutin - rifampicin - sodium para-aminosalicylate - sparfloxacin - thiacetazone - tramadol - zolpidem