Gorakhpur : रेसलिंग शूटिंग के बाद एथलेटिक्स में ओलंपिक मेडल का बरसों से अधूरा सपना 2016 ब्राजील में पूरा होगा. हालांकि किस्मत ने साथ दिया होता तो ओलंपिक में एथलेटिक्स का मेडल 1984 में ही इंडिया के खाते में पहुंच जाता. कुछ सेकेंड से मेडल चूक गया था. मगर अब यह ख्वाब पूरा होगा. क्योंकि यह अधूरा ख्वाब सिर्फ देश या फैंस का नहीं बल्कि वर्ल्ड में इंडिया को नई पहचान देने वाली उड़न परी या इंडियन एक्सप्रेस पीटी ऊषा का भी है. एशियन गेम्स में वर्ल्ड रिकार्ड बनाने वाली पीटी ऊषा ने हर साल नया इतिहास रचा मगर ओलंपिक में मेडल लेने से चूक गई. अब वह अपना अधूरा सपना अपनी एकेडमी में तैयार कर रही स्टूडेंट की आंखों से देख रही हैं. एक प्रोग्राम में शिरकत करने सिटी आई अर्जुन अवार्डी और पद्म श्री से सम्मानित पीटी ऊषा ने अपने बिजी शेड्यूल से कुछ समय निकाल कर खेल के विकास और टैलेंट के बारे में आई नेक्स्ट रिपोर्टर से चर्चा की.

क्या रीजन है कि कंट्री को दूसरी पीटी ऊषा नहीं मिली?
पीटी ऊषा - ऐसा नहीं है। गर्ल्स मेडल के लिए पूरी तैयारी कर रही हैं। अब प्रैक्टिस के लिए काफी सुविधा भी मुहैया है। बस अच्छे कोच की जरूरत है। नेक्स्ट ओलंपिक में हम कह सकेंगे कि दूसरी पीटी ऊषा मिल गई। इसके लिए कई गर्ल्स पूरी मेहनत से तैयारी कर रही हैं।
आपने जब मेडल जीता, तब सुविधा के नाम पर कुछ नहीं था। मगर अब सब है, फिर भी मेडल नहीं। क्यों?
पीटी ऊषा - मैंने कड़ी मेहनत की और हर गेम मेडल के लिए खेला। मेरा एम होता था, जिस टूर्नामेंट में पार्टिसिपेट करो, उसमें मेडल जरूर जीतों। मैंने मिïट्टी के साथ रेलवे ट्रैक पर रेगुलर प्रैक्टिस की। जिसका नतीजा मेडल है। अब एथलीट एक हार से निराश हो जाते हैं तो एक छोटे से मेडल को जीत खुशी में डूब जाता है।
मेडल न आने के पीछे क्या टैलेंट का खत्म होना रीजन है?
पीटी ऊषा - ऐसा बिल्कुल नहीं है। कंट्री में टैलेंट की भरमार है। बस इन टैलेंट को अच्छे कोच की जरूरत है। नार्थ के एथलीट शॉटपुट में माहिर है तो साउथ के खिलाड़ियों की लांग जंप बेहतर हैं।
किस एज में एथलेटिक्स की प्रैक्टिस स्टार्ट करनी चाहिए?
पीटी ऊषा - एथलेटिक्स की प्रैक्टिस शुरू करने के लिए अंडर-12 एज बेस्ट है। इस एज में कोच की देखरेख में प्रैक्टिस, खानपान और रूटीन फिक्स किया जाए, तो नेक्स्ट 5 से 6 इयर में खिलाड़ी से मेडल मिलना तय है।
क्या क्रिकेट के सामने एथलेक्टिस फीका गेम है?
पीटी ऊषा - बिल्कुल सही। क्रिकेट में पैसा है, शोहरत और रुतबा है, जो एथलेटिक्स में नहीं है। क्रिकेट के 12वें खिलाड़ी को भी लोग पहचानते हैं मगर एथलेटिक्स के इंटरनेशनल मेडलिस्ट को भी पहचान बतानी पड़ती है।
एथलेटिक्स को बढ़ावा देने के लिए क्या करना चाहिए?
पीटी ऊषा - एथलेटिक्स को बढ़ावा देने के लिए स्कूल में गेम शामिल होना जरूरी है। यह तब तक नहीं होगा, जब तक एनुअल एग्जाम में स्पोर्ट्स के अंक नहीं जुड़ेंगे। एथलेटिक्स नहीं बल्कि गेम को एक सब्जेक्ट बनाना चाहिए, जिसमें पासिंग जरूरी हो। यह नियम केरल में है। तब खिलाड़ी और मेडल दोनों बढ़ेंगे।
अक्सर एथलीट पर ड्रग्स लेने का आरोप लगता है, क्या रीजन है?
पीटी ऊषा - इस बात से नकारा नहीं जा सकता कि एथलीट ड्रग्स नहीं लेते है। मगर इससे कई अच्छे एथलीट अनजान भी हैं। ड्रग्स सफलता का शार्टकट तरीका है, मगर सेफ नहीं है। कुछ यूथ जल्द सफलता हासिल करने के लिए इस तरीके को अपनाते हंै, जो गलत है। एथलीट को कोई भी पेनकिलर डॉक्टर की एडवाइस के बिना नहीं लेनी चाहिए।
यूपी में एथलेटिक्स के गिरते क्रेज के पीछे क्या रीजन है?
पीटी ऊषा - यूपी में अभी भी सुविधा की कमी है। स्टेट में कम से कम एक सिंथेटिक ट्रैक जरूरी है। वैसे स्कूल लेवल पर भी ग्राउंड होने चाहिए। क्योंकि इस गेम की सही एज अंडर-12 है। साथ ही गवर्नमेंट भी सिर्फ सुविधा मुहैया करा रही है, मगर इसका यूज सही ढंग से नहीं हो रहा है।
1984 ओलंपिक में आप ब्रॉन्ज मेडल से चूक गई थी। क्या लगता है कि आपका यह अधूरा सपना कब पूरा होगा?
पीटी ऊषा - मेडल का सपना नेक्स्ट ओलंपिक में पूरा हो जाएगा। मैंने अपने इस अधूरे सपने को पूरा करने के लिए एकेडमी खोली और नई पौध तैयार कर रही हूं। एकेडमी में 17 गर्ल्स ट्रेनिंग ले रही हैं। मुझे अपनी दो स्टूडेंट तेंदुलका और जेसिका से नेक्स्ट ओलंपिक में मेडल की उम्मीद है। तेंदुलका 2012 ओलंपिक में 11वीं पोजीशन पर रही थी।

 

report by : kumar.abhishek@inext.co.in

Posted By: Inextlive